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मुंबई में एक बैचलर की कहानी! ऐसी होती है ज़िन्दगी!

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2) चलो कुछ जुगाड़ करके, हाथ-पाँव जोड़कर घर मिल गया तो दिक्कत आती है कामवाली की! उनके भाव बढ़ जाते हैं कि बैचलर हो, घर गन्दा रखोगे, मेरा काम बढ़ जाएगा तो पैसे भी मैं ज़्यादा लूंगी! बेचारे बैचलर के पास कोई चारा नहीं होता क्योंकि बिना कामवाली के मुंबई में एक क़दम भी चलना नामुमकिन है!

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