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ओह! तो इस वजह से लोगों की नजरों में विलेन है धोनी!

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फीका प्रदर्शन, बांग्‍लादेश जैसी कमजोर टीम और फिर दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ घरेलू जमीन पर टी-20 व वन-डे सीरीज में हार से टीम इंडिया के कैप्‍टन कूल की छवि को नुकसान पहुंचा है।

भारतीय क्रिकेट में महेंद्र सिंह धोनी की छवि वैसी ही है जैसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीति में। दोनों को उनकी लाख अच्‍छाइयों के बावजूद किसी न किसी कारण से आलोचनाओं का ही सामना करना पड़ा है और लगातार वे इस संघर्ष से दो-चार हो रहे हैं।

नि:संदेह धोनी भारतीय क्रिकेट में ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्‍होंने टीम इंडिया को बुलंदियों पर पहुंचाया। उनकी सरपरस्‍ती में ही भारत 2007 आईसीसी टी-20 विश्‍व कप, 2011 आईसीसी क्रिकेट विश्‍व कप, 2013 चैंपियंस ट्रॉफी और टेस्‍ट में शीर्ष रैंकिंग जैसी उपलब्धियां हासिल कर सका। वह भारत के सबसे सफल कप्‍तान भी रहे। बावजूद इसके धोनी को बदले में बुराइयां ही मिली हैं। वर्ष 2004 में अंतरराष्‍ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण करने के बाद टीम इंडिया के सीमित ओवर के कप्‍तान का क्रिकेट में सफर उतार-चढ़ाव से भरा रहा है। हद तो यह है कि धोनी को अपने व्‍यक्तित्‍व के कारण भी काफी आलोचनाएं झेलना पड़ी।

आईए जानते हैं कि वो कौन से कारण हैं जिसकी वजह से विलेन है धोनी …

प्रैक्टिकल अप्रोच सही जाए ना…

भारत में क्रिकेट को धर्म माना जाता है। यहां उन क्रिकेटरों को बहुत सम्‍मान मिलता है, जिनका बर्ताव भावनात्‍मक हो। मगर टीम इंडिया के कैप्‍टन कूल महेंद्र सिंह धोनी के साथ यह बात ठीक नहीं बैठती। क्रिकेट में धोनी अपने प्रैक्टिकल फैसलों के कारण मशहूर है। जहां दुनिया में उन्‍हें इस सोच के लिए काफी सराहा जाता है वहीं देश के क्रिकेट प्रेमियों से उन्‍हें इसी बात पर आलोचना झेलना पड़ती है। धोनी मैच हारने पर  भी हंसते हुए ही बात करते हैं, जो कि भावनात्‍मक क्रिकेट प्रेमियों को सहन नहीं। वे अगर क्रिकेट को धर्म मानते हैं तो हार कतई स्‍वीकार नहीं। अगर पूर्व खिलाडि़यों की बात माने तो धोनी शानदार व्‍यक्ति हैं। किसी से उन्‍हें कोई परेशानी नहीं है। मगर प्रशंसकों की सोच खिलाडि़यों से बिलकुल विपरीत है। उनकी नजर में धोनी विलेन है, जो सिर्फ खुद का भला सोचते हैं।

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