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सवा रुपये के लिए यहाँ लगती है जान की बाजी !

सवा रुपये के लिए जान की बाजी – वैसे तो दुनिया में कई तरह की अजीब अजीब घटनाएं होती हैं जिन्हें देख या सुन आप दांतो तले ऊंगली दबा लेते हैं।

पर कई ऐसी भी अजीब घटनाएं या चीजें होती हैं जिन्हें आप सुन कर या पढ़ कर सोचेंगे कि क्या पागलपन है।

जी हैं कई ऐसे भी लोग होते हैं जो पागलपन से भरे हुए करतब दिखाते हैं जिनसे कोई फायदा नहीं होता है और ना ही मजा आता है।

हां ये जरूर है कि जान जरूर चली जाती है।

ऐसे ही करतबों में से एक है मध्यप्रदेश में आयोजित होने वाला खेल । ये खेल होली के तीसरे दिन आयोजित होता है। इस खेल में प्रतिभागी नशे में चूर होकर 50 फीट लंबे खंभे में चढ़कर एक पोटली को तोड़ते हैं। हैरानी की बात ये है कि यहां की परंपरा बने इस खेल में अब तक कई लोग नीचे गिरकर जान गंवा चुके हैं या फिर विकलांग हो चुके हैं। लेकिन मजाल है कि पुलिस इस खेल को बंद करा दे। निराशा की बात तो ये है कि यहां की ग्राम पंचायत भी कुछ नहीं करती और ना लोग कुछ बोलते हैं। अगर कोई एक -दो लोग बोलते हैं तो उन्हें परंपरा के खिलाफ जाने की दुहाई देने लगते हैं।

इसलिए इस खेल को बंद करना तो दूर, लोग इस सवा रुपये के लिए जान की बाजी के खेल के लिए सुरक्षा का इंतजाम तक करना जरूरी नहीं समझते।

सवा रुपये के लिए जान की बाजी

जैरी है खेल का नाम

इसे खेल में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागी का लक्ष्य होता है खंभे के सबसे ऊपरी छोर पर बंधी छोटी पोटली जिसमें सवा रुपये और नारियल रखे होते हैं। जिसे जैरी कहा जाता है। इस जैरी को लेने के लिए ही लोग यहां अफनी जान की परवाह किए बिना पोटली को तोड़ने के लिए चले जाते हैं।

दिया जाता है 11 रुपये का इनाम

खंभे पर चढ़कर पोटली तोड़कर जीतने वाले प्रतिभागी को 50 रुपये या 21 या 11 रुपये का इनाम दिया जाता है। खेल में हिस्सा लेने के लिए नातो प्रतिभागी का कोई बीमा बहोता है और ना ही कोई उसकी जिम्मेदारी लेता है। मतलब की आपकी जान की जिम्मेदारी आपके हाथ में है। मतलब की इस खेल में जोभाग ले रहा है और अगर उसकी जान चली जाती है तो उसकी जिम्मेदारी खेल आयोजित करने वाली की नहीं होगी।

उपचार तक की सुविधा नहीं

पंचायत के जन प्रतिनिधी से लेकर सचिव तक इस खेल में सुरक्षा इंतजामों को लेकर बेहद गैर जिम्मेदार है। अगर कोई प्रतिभागी खेल के दौरान इतनी ऊंचाई से गिरकर घायल हो जाए तो उसके प्राथमिक उपचार तक के लिए कोई इंतजाम नहीं किए जाते। हैरानी की बात यह हैकि इस खेल में कई बार ऊंचाई से गिरने पर कई प्रतिभागी विकलांग हो चुके हैं। लेकिन फिर भी बिन सुरक्षा के ये खेल हर साल आयोजित किया जाता है।

सवा रुपये के लिए जान की बाजी – केवल पंचायत स्तर पर ही नहीं बल्कि प्रशासनिक स्तर पर भी इस खेल को लेकर सुरक्षा इंतजामों भारी चूक नजर आती है। पुलिस खुद इस खेल में दर्शकों के रुप में शामिल होती है लेकिन उन्हें इसमें कोई लापरवाही या खतरा नजर नहीं आता। ऊपर से ये दर्शकों की भीड़ में खड़े लोग प्रतिभागियों को प्रतो्साहित करते हैं। जरा सोचिये अगर लोगों की रक्षा करने वाले ही लोगों की सुरक्षा को परे रख मूक दर्शक बन जाएंगे तो आम जनता का क्या होगा।

Tripti Verma

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