धर्म और भाग्य

कड़ी ध्‍ूाप में भी नहीं मिटता जगन्‍नाथ रथ यात्रा में शामिल होने का भक्‍तों का जुनून !

जगन्‍नाथ रथ यात्रा – उडीसा राज्‍य के पुरी में स्थित जगन्‍नाथ मंदिर हिंदुओं का पवित्र धार्मिक स्‍थल है। मान्‍यता है कि इस मंदिर में स्‍थापित भगवान जगन्‍नाथ की मूर्ति में स्‍वयं भगवान कृष्‍ण का ह्रदय वास करता है।

जगन्‍नाथ पुरी के मंदिर में भगवान जगन्‍ना थ के साथ उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की मूर्ति भी स्‍थापित है। जगन्‍नाथ मंदिर अपने अनेक चमत्‍कारों के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है। पुरी मंदिर की रथ यात्रा भी बहुत लो‍कप्रिय है और देशभर के कोने-कोने से भक्‍त और श्रद्धालु इस रथयात्रा में शामिल होने के लिए आते हैं।

रथ यात्रा का आरंभ

आषाढ़ मास की शुक्‍ल पक्ष की द्वितीय तिथि को जगन्‍नाथ पुरी की रथ यात्रा निकाली जाती है। इसे उड़ीसा का सबसे भव्‍य पर्व भी कहा जाता है। हर साथ्‍ल जगन्‍नाथ पुरी के मंदिर से भगवान जगन्‍नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और उनकी बहन सुभद्रा की मूर्तियों को रथ में चढ़ाकर पूरे नगर की यात्रा करवाई जाती है। ये यात्रा नौ दिनों तक पूरे जोश और उत्‍साह के साथ निकाली जाती है।

जगन्‍नाथ रथ यात्रा 2018

इस साल पुरी में जगन्‍नाथ रथ यात्रा का शुभारंभ 14 जुलाई को शनिवार के दिन से हो रहा है। इस शुभ अवसर पर देशभर के कोने से श्रद्धालु इस यात्रा में हिस्‍सा लेने के लिए आते हैं।

जगन्‍नाथ रथयात्रा में क्‍या होता है

साल में एक बार आषाढ़ के महीने में निकलने वाली इस यात्रा में तीन देवताओं की मूर्ति को रथ में स्‍थापित करके यात्रा निकाली जाती है। जगन्‍नाथ मंदिर से तीनों देवताओं के सजाए गए रथ को खींचते हुए दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित गुंडिचा मंदिर तक ले जाया जाता है और नौंवे दिन रथ की वापसी होती है। इस शुभ अवसर पर सुभद्रा, बलराम और भगवान कृष्‍ण का नौ दिनों तक पूजन किया जाता है।

जगन्‍नाथ रथ यात्रा की प्राचीन मान्‍यता

मान्‍यता है कि इस जहां पर जगन्‍नाथ मंदिर स्थित है वहां पर आदि शंकराचार्य ने गोवर्धन पीठ की स्‍थापना की थी। सदियों से पुरी संतों, महात्‍माओं के लिए धार्मिक और आध्‍यात्मिक केंद्र रहा है। पुरी को चार धामों की यात्रा में से एक का स्‍थान प्राप्‍त है।

जगन्‍नाथ रथ यात्रा

भगवान जगन्‍नाथ की मूर्ति के लिए 45 फुट ऊंचा रथ बनाया जाता है। इनका रथ सबसे पीछे होता है और इस यात्रा के दौरान भगवान जगन्‍नाथ को पीले रंग के वस्‍त्रों से सजाया जाता है। पुरी यात्रा की ये मूर्तियां अन्‍य देवी देवताओं जैसी नहीं होती हैं। रथ यात्रा में सबसे आगे बड़े भाई बलराम और उनके पीछे बहन सुभद्रा और फिर अंत में भगवान जगन्‍नाथ का रथ होता है। बलराम जी का रथ 44 फुट ऊंचा नीले रंग का होता है और सुभद्रा जी के रथ की ऊंचाई 43 फुट होती है और वह काले रंग का होता है।

रथ यात्रा के आरंभ वाले दिन की सुबह से ही रथ यात्रा को नगर के मुख्‍य मार्गों पर घुमाया जाता है। सांयकाल में ये रथ मंदिर तक पहुंचता हैं और मूर्तियों को मंदिर में ले जाया जाता है।

यात्रा के अगले दिन तीनों मूर्तियों को सात दिनों तक यहीं रखा जाता है। सात दिनों के बाद सभी भक्‍त और श्रद्धालु रथ की रस्‍सी खींचकर तीनों भगवानों की मूर्तियों को वापिस जगन्‍नाथ मंदिर में लाते हैं।

जगन्‍नाथ रथ यात्रा भीषण गर्मी में निकलती है लेकिन फिर भी श्रद्धालुओं की आस्‍था इससे कम नहीं होती है। हजारों-करोड़ों की संख्‍या में श्रद्धालु यहां दर्शन करने के लिए आते हैं और कड़ी धूप में भी रथ यात्रा में शामिल होते हैं।

Parul Rohtagi

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