धर्म और भाग्य

शिव परिवार के वो रोचक तथ्य जिनसे आप हैं बेखबर

मानो तो भगवान और न मानो तो पत्थर. बात यहां सिर्फ मानने की है. हम जो कुछ भी मानते हैं वो सब हम अपनी सुविधानुसार ही मानते हैं. ये तो हमपे निर्भर करता है हम किसी में बुराइयां खोजकर उससे नफरत करते रहें या फिर उसकी अच्छाइयों से प्रेरणा लेते रहें. हम चाहें तो शंकर जी को मूर्ति मानकर पूजें या फिर उनके गुणों को जीवन में उतार लें. भगवान शंकर ही नहीं बल्कि उनका पूरा परिवार आज के इस प्रतियोगितात्मक युग में काफी प्रेरणा प्रदान करता है. उनसे एक आम इंसान घर चलाने का हुनर सीख सकता है, तो वहीं एक सी.ई.ओ कंपनी चलाने के टिप्स भी ले सकता है.

भगवान शंकर के परिवार में जितनी विभिन्नता है, उतनी ही एकता भी. ठीक वैसे ही, जैसे किसी घर में अलग-अलग स्वभाव के सदस्य होते हैं या फिर किसी कंपनी में विभिन्न प्रकार के लोग कार्य करते हैं. परिवार के मुखिया भगवान शिव भोलेनाथ के रूप में जाने जाते हैं. उनके शरीर, पहनावे में किसी प्रकार का आकर्षण नज़र नहीं आता. वहीं, माता पार्वती अपने दोनों पुत्र, शिव गण और उनके भक्त उन्हें स्वामी मानते हैं. यानी बाहरी रूप और सौंदर्य से ज़्यादा महत्वपूर्ण है आतंरिक गुण.

आम दिनों में ध्यान में खोए रहने वाले शिव, परिवार के मुखिया को ज़्यादा विचारमग्न रहने का संदेश देते हैं. उनकी ध्यानावस्था में शिव परिवार का हर सदस्य अपने कर्म में लीन रहता है. माता पार्वती से लेकर श्रीगणेश और नंदी बैल तक. जैसे कंपनी का सीईओ कंपनी के विकास के बारे में चिंतन करे और कर्मचारी अपनी ड्यूटी कंपनी के कार्य करने में लगाएं. शिव ने विषधर सर्प के साथ समुद्र मंथन से निकला विष भी अपने गले में सहेजा है. कुटिल प्रकृति वाले लोगों को अपने पास रखकर, उन्हें शांत रखने का गुण उनसे सीखा जा सकता है. संयुक्त परिवार के मुखिया के लिए भी परिवार की भलाई के लिए विष जैसी कड़वी बातों को अपने भीतर दबाकर रखना ज़रूरो हो जाता है.

पार्वती जी पारंपरिक भारतीय पत्नी की तरह पति की सेवा में तत्पर हैं. लेकिन वे स्त्री के महत्व को भी बता रही हैं. शिव की शक्ति वे स्वयं हैं. बिना उनके शिव अधूरे हैं और शिव का अर्धनारीश्वर रूप उनके अटूट रिश्ते का परिचायक है.

बुद्धि के देवता गणेश अपने से बेहद छोटी काया वाले चूहे की सवारी करते हैं. ये इस बात का संकेत है कि अगर आपमें बुद्धि है तो कमज़ोर समझे जाने वाले व्यक्ति से भी बड़ा कार्य करवा सकते हैं. इसी तरह गृहस्वामी भी अपने परिवार के लोगों की और कंपनी का अधिकारी अपने स्टाफ के लोगों की कार्यकुशलता को अपने बुद्धिकौशल से बढ़ा सकता है.

भगवान शंकर के परिवार में भातीं-भातीं के लोग हैं. उनके परिवार में भारतीय संस्कृति के ‘वसुधैव कुटुंबकम’ का संदेश निहित है. वैसे ही हर घर, परिवार, प्रांत अजुर देश को शिव परिवार से संयुक्त रहने और खामोशी से अपने कर्तव्य पालन की सीख लेने की आवश्यकता है.

वर्तमान अन्तरराष्ट्रीय माहौल में ये बात और भी प्रासंगिक हो जाती है. भगवान शंकर के परिवार में ऐसे पशु हैं, जिनमें सोचने-समझने की शक्ति नहीं है. इसके बावजूद सभी प्रेम से एक साथ रहते हैं. क्या हम मनुष्यों में इतनी भी समझ नहीं है कि जाति, धर्म और भाषा के भेद भुलाकर एकता के सूत्र में बंधे रहें?

Devansh Tripathi

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