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स्वागत है ऐसे भारत में जहाँ सच्चाई और ईमानदारी की सजा है मौत!

corruption

सत्येन्द्र दुबे

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  जब सत्येन्द्र दुबे की हत्या की गई तब उनकी उम्र सिर्फ 30 साल थी और उनका गुनाह था ईमानदारी. अपनी हत्या के समय सत्येन्द्र भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण में परियोजना निदेशक के पद पर कार्यरत थे.

सत्येन्द्र दूबे द्वारा स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना में व्याप्त भ्रष्टाचार को जनता के सामने लाये जाने के कारण उनकी हत्या 27 नवम्बर 2003 में गया जिले में हो गई थी. जब सत्येन्द्र को अपने विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार का पता चला तो उन्होंने अपने से ऊपर वाले अधिकारियों को इस बारे में शिकायतें की.

लेकिन उन शिकायतों का नतीजा ये निकला कि सत्येन्द्र अपने बेईमान अधिकारियों और भूमाफिया की आँख में चुभने लगे. सत्येन्द्र का तबादला गया में कर दिया गया. वहां जाकर भी सत्येन्द्र दुबे ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखी. सत्येन्द्र ने उनके विभाग में चल रहे गोरखधंधे के बारे में प्रधानमंत्री को विस्तृत पत्र लिखा और अपना नाम गोपनीय रखने की बात कही. लेकिन बेईमानी के पैर प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुंचे थे वह से सत्येन्द्र का नाम अलग अलग विभागों में जारी आर दिया गया. 27 नवम्बर 2007 को जब सत्येन्द्र बनारस से एक विवाह समारोह से लौट रहे थे तो उनकी हत्या कर दी गयी. भारत का एक ईमानदार और होनहार युवा भेंट चढ़ गया बेईमानी और लालच की.

ये तो बस कुछ ही नाम है जो बेरहमी से मार दिए गए सिर्फ इस वजह से कि वो ईमानदार थे. इनमें से किसी को भी अब तक सच्चा इन्साफ नहीं मिल सका है और इनकी हत्या करने वाले आज भी खुले घूम रहे है.

अब बताइए कैसे खत्म होगा हमारे देश से भ्रष्टाचार और बेईमानी का धंधा जब ईमानदारी करने पर इनाम नहीं मौत मिलती हो.

जरा बताएँगे कि “जिन्हें अब भी नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ है?”

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