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उल्टी दिशा में घूमती है आदिवासियों के घड़ी की सुई

आदिवासी – समय बताने के लिए हम सभी घड़ी का उपयोग करते हैं. हर घर में घड़ी होती है.

आजकल तो लोग अपने मोबाइल से भी समय देख लेते हैं. लेकिन आज भी गाँव में घड़ी देखने के लिए लोग दीवार की ही तरफ देखते हैं. जिस घर में घड़ी नहीं होती लोगों को बहुत अटपटा लगता है. समय तो आप भी देखते होंगे.

आपकी घड़ी सीधी चलती होगी, लेकिन एक जगह ऐसी है जहाँ के लोगों की घड़ी उलटी चलती है.

जी हाँ, ये हमारे यहाँ के ही लोग हैं. समाज से दूर इनका एल अलग समाज है.

हम जिस घड़ी की बता कर रहे हैं वो महानगरों में नहीं बल्कि जंगली इलाकों में पाई जाती है. एक ऐसी दुनिया जहाँ के लोगों को हम आदिवासी कहते हैं. समय बताने वाली घड़ी की सुई भले ही बायीं से दायीं ओर घूमती हो पर छत्तीसगढ़ के कोरबा स्थित आदिवासी शक्ति पीठ से जुड़े गोंड आदिवासी परिवारों की घड़ी उलटी यानी दायीं से बायीं ओर चलती है. जबसे इन्होंने घड़ी का इस्तेमाल शुरू किया है, यह सिलसिला तभी से इसी तरह चला आ रहा है. ये दुनिया से उलटी दिशा में चलते हैं.

आप इनसे समय पूछेंगे तो ये आपको बता भी देंगे. सही  ही होगा. आपको आश्चर्य होगा. लेकिन हैं ये ऐसे ही. गोंड़ समुदाय के आदिवासी परिवारों ने इसे प्राकृतिक क्रम बताते हुए गोंडवाना टाइम्स का नाम दिया है. केवल कोरबा में ही हजारों परिवार इस अनोखी घड़ी का प्रयोग हर रोज वक्त देखने के लिए करते हैं. गोंडवाना टाइम्स की इस उलटी घड़ी के कांसेप्ट के पीछे की वजह भी अनोखी है. इसके पीछे की कहानी भी बड़ी ही दिलचस्प है. आपको सुनकर मज़ा आएगा.

आम घड़ी के मुकाबले इनकी घड़ी हमारे लिए उलटी घूमती है, लेकिन ये लोग इसका सही अर्थ समझाते हैं. इनका कहना है कि पृथ्वी भी दायीं से बायीं ओर घूमती है. सूर्य, चंद्रमा और तारे भी उसी दिशा में घूमते हुए अंतरिक्ष की सैर कर रहे हैं. जल स्त्रोतों में पड़ने वाली भंवर हो या किसी पेड़ के तले से लिपटी बेल, उन सभी की दिशा यही होती है. इतना ही नहीं शादी के समय फेरे लेते समय भी अग्नि के समक्ष दूल्हा- दुल्हन के सात फेरे भी दाहिने से बायीं ओर घूमकर पूरे किए जाते हैं. ऐसे में अगर हमारी घड़ी भी इसी दिशा में घूमती है तो हर्ज़ ही क्या है. बात तो सही है. इस तरह से हमारी ही घड़ी उलटी दिशा में घूम रही है.

जब ये दुनिया की सभी चीज़ें दायीं से बायीं ओर घूम रही हैं तो फिर घड़ी का उलटी दिशा में घूमना कहाँ तक सही है. इन आदिवासियों की जिंदगी अलग होती है. महुआ, परसा व अन्य वृक्ष की ही ये लोग पूजा करते हैं क्योंकि इन्हीं के नीचे उनकी जिंदगी चलती है. अगर इस घड़ी की बात करें तो आदिवासी समाज के करीब 32 समुदायों में यही घड़ी प्रचलित है, जिसका इस्तेमाल वे दशकों से करते आ रहे हैं.  गोंडवाना टाइम्स घड़ी में कुछ मंत्र भी लिखे गए हैं. इनकी घड़ी सच में अलग है.

घड़ी की इस सोच को सुनने के बाद तो यही लगता है कि ये लोग आदिवासी होकर भी कितने सही दिशा में सोचते हैं. इनसे बेकार तो हम लोग हैं जो प्रकृति के उल्टे ही सारे काम करते हैं.

Shweta Singh

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