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रिक्शे वाली की बेटी ने देश को दिलाया गोल्ड मेडल

गोल्ड मेडल

गोल्ड मेडल – हौसले अगर बुलंद हो तो कोई भी मुश्किल आपका रास्ता नहीं रोक सकती और इस बात क सच कर दिखाया है स्वप्ना बर्मन ने.

एशियन गेम्स में हेप्टाथलन स्पर्धा में देश को गोल्ड मेडल दिलाने वाली स्वप्ना ने तमाम अभावों के बावजूद अपने सपनों को पूरा किया और गोल्ड मेडल जीतकर देश का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया. हेप्टाथलन स्पर्धा गोल्ड जीतने वाली वो पहली महिला खिलाड़ी हैं.

गरीबी और मुफलिसी में जिंदगी गुज़ारने वाली स्वप्ना के लिए ये राह इतनी आसान नहीं थी, मगर कहते हैं न जब कुछ कर गुज़रने की चाहत होती है तो इंसान पहाड़ से भी रास्ता निकाल लेता है.

क्या होता है हेप्टाथलन

हेप्टाथलन में ऐथलीट को कुल 7 स्टेज में हिस्सा लेना होता है. पहले स्टेज में 100 मीटर फर्राटा रेस होती है. दूसरा हाई जंप, तीसरा शॉट पुट, चौथा 200 मीटर रेस, 5वां लॉन्ग जंप और छठा जेवलिन थ्रो होता है. इस इवेंट के सबसे आखिरी चरण में 800 मीटर की रेस होती है. इन सभी खेलों में ऐथलीट को प्रदर्शन के आधार पर पॉइंट मिलते हैं, जिसके बाद पहले, दूसरे और तीसरे स्थान के ऐथलीट का फैसला किया जाता है.

स्वप्ना ने सात प्रतियोगिताओं में कुल 6026 अंकों के साथ पहला स्थान हासिल किया और गोल्ड जीता. आपको बता दें कि पिछले साल एशियाई ऐथलेटिक्स चैंपियनशिप में भी वह गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं.

संघर्ष भरा जीवन

स्वपना के पिता पश्चिम बंगाल की जलपाईगुड़ी में रिक्शा चलाते हैं, लेकिन पिछले कुछ समय से वो बीमार चल रहे हैं. बेटी के पदक जीतने के बाद माता-पिता सहित सभी घरवालों की खुशी का ठिकाना नहीं है. स्वप्ना की मां का कहना है, ‘मैंने उसका प्रदर्शन नहीं देखा. मैं दिन के दो बजे से प्रार्थना कर रही थी. मैं काली मां को बहुत मानती हूं. मुझे जब उसके जीतने की खबर मिली तो मैं अपने आंसू रोक नहीं पाई.’ इस लेवल तक पहुंचना स्वप्ना के लिए आसान नहीं था, एक समय ऐसा भी था कि स्वप्ना को अपने लिए सही जूतों के लिए संघर्ष करना पड़ता था, क्योंकि उनके दोनों पैरों में छह-छह उंगलियां हैं. पांव ज़्यादा चौड़े होने की वजह से खेलों में उन्हें लैंडिंग में मुश्किल आती थी इसी कारण उनके जूते जल्दी फट जाते हैं.

जीत के बाद स्वप्ना के बचपन के कोच सुकांत सिन्हा ने कहा कि उसे अपने खेल के लिए महंगे उपकरण खरीदने में काफी परेशानी होती है. वह काफी गरीब परिवार से आती है और उसके लिए अपनी ट्रेनिंग का खर्च उठाना मुश्किल होता है. जब वह चौथी क्लास में थी तब ही मैंने उसमें प्रतिभा देख ली थी. इसके बाद मैंने उसे ट्रेनिंग देना शुरू किया.’

स्वप्ना उन लोगों के लिए एक मिसाल है जो आगे नहीं बढ़ पाने पर हमेशा कमी का रोना रोते रहते हैं या फिर किस्मत को कोसते हैं.