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याकूब मेमन हो या गुजरात के अपराधी सब है सजा के अधिकारी, उनको बचाना अपने आप में है अपराध

आइये करते है आपका स्वागत हिंदुस्तान में,

एक ऐसा देश जिसे बाहरी दुश्मनों की कोई ज़रूरत नहीं, एक ऐसा देश जिसमे संकट की घडी में राजनेता और बुद्धिजीवी साथ खड़े नज़र नहीं आते, एक ऐसा देश जहाँ व्यक्तिगत स्वार्थ सर्वोपरि है.

एक ऐसा देश जो अगर किसी अपराधी को पकड़ भी ले तो उसके साथ देने वाले हजारों खड़े हो जाते है, पर उस अपराधी के कारण खोयी जिंदगी और उजड़े परिवारों की सुध लेने को खड़े होने वाला कोई नहीं.

84 के दंगों के अभियुक्त

2002 गुजरात में खुलेआम कत्ले आम करने वाले

93 में दंगे करवाने वाले

मुंबई में धमाके कराने वाले

संसद में घुस जाने वाले

या फिर ट्रेन धमाके करने वाले

या मुंबई में 26 नवम्बर को हमला करने वाले

हमारे यहाँ इन सबसे सहानुभूति रखने वाले और इनको बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने वाले लोगों की कोई कमी नहीं है.

अगर ओसामा को भी यहाँ पकड़ा जाता तो वो ना जाने कितने सालों तक किसी जेल में आराम से रह रहा होता और अगर गलती से उसे फांसी की सजा सुना भी दी जाती तो भी उसके समर्थन में लोग खड़े हो जाते.

अक्सर ऐसे दुर्दांत हत्यारों और अपराधियों के समर्थन में खड़े होने वाले लोग मानवाधिकारों की दुहाई देते नज़र आते है.

इन तथाकथित मानवाधिकार के मसीहाओं की जुबान असली पीड़ितों के लिए शायद ही कभी खुली हो.

आपको लग रहा होगा कि अचानक ये सारी बातें क्यों ?

याकूब मेमन फिर से सुर्ख़ियों में है….

अब ये मत कहना कि कौन याकूब मेमन.

हमारी मीडिया और महान लोगों का धन्यवाद कि याकूब अब किसी परिचय के मोहताज़ नहीं है.

याकूब मेमन, मुंबई बम धमाकों के प्रमुख अभियुक्त टाइगर मेमन का छोटा भाई.

याकूब को 2007 में तत्कालीन टाडा कोर्ट ने फंसी की सजा सुनाई थी, उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी सजा बरकरार रखी और 2013 में राष्ट्रपति ने भी माफ़ी की अर्ज़ी खारिज़ कर दी.

फांसी का दिन निश्चित हुआ 30 जुलाई 2015 .

जिस दिन ये दिन घोषित हुआ उसी दिन से अचानक याकूब की फांसी को गलत ठहराने वालों की बाढ़ सी आ गयी.

कोर्ट के पूर्व जज, रॉ के पूर्व अधिकारी, समाजसेवक यहाँ तक की सेलेब्रिटी भी.

2007 में बी रमण का लिखा एक अप्रकाशित पत्र जब हाल ही में एक वेबसाइट पर प्रकाशित हुआ तो ये हंगामा और भी बढ़ गया.

याकूब की माफ़ी चाहने वालों का कहना है कि वो एक संधि/समझौते के तहत भारत आया था इसलिए उसे अब फांसी देना गलत है.

वहीँ कुछ लोग तो इस से भी आगे जाकर कहते है कि याकूब का इन धमाकों में कोई प्रत्यक्ष हाथ नहीं था और वो बेक़सूर है.

अगर ये सब भी काफी नहीं तो आगे सुनिए कुछ स्वयम्भू महान बुद्धिजीवी और घृणा पर अपनी रोज़ी रोटी चलाने वाले लोगों का तो ये भी कहना है कि याकूब को फांसी इसलिए दी जा रही है क्योंकि वो मुसलमान है.

चलिए मान लेते है इन सबकी ये सब बातें सही है फिर कुछ सवाल उठते है जेहन में जिनका जवाब भी इन लोगों को ही देना चाहिए न

ऐसे ही कुछ सवालों पर नज़र डालिए

पहला सवाल – जब बी रमण जानते थे या यूँ कहे ऐसा मानते थे कि याकूब का अपराध फांसी जितना जघन्य नहीं है तो उन्होंने 2007 या उसके बाद ऐसा क्यों नहीं कहा?

दूसरा सवाल – सब जानते है दाऊद और टाइगर की ताकत को और उन्होंने याकूब को बचाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया होगा तो फिर इतने सालों तक वो इतने महत्वपूर्ण दस्तावेज को कोर्ट में क्यों नहीं पेश कर सके जिसे एक वेबसाइट ने 8 साल के बाद प्रकाशित कर दिया.

तीसरा सवाल – मुंबई माफिया की ताकत से सब वाकिफ है, क्या ऐसा नहीं हो सकता जो लोग याकूब की फांसी पर रोक की मांग कर रहे है वो ये काम किसी लालच या दबाव में नहीं कर रहे?

चौथा सवाल– लोगों का कहना है कि प्रत्यक्ष हाथ नहीं था, इसका मतलब अपराधी तो टाइगर और दाऊद भी नहीं उन्होंने भी तो बम नहीं रखे थे. साजिश ही तो रची थी.

पांचवा सवाल – अगर याकूब इतना ही भला है तो वारदात से पहले क्यों खबर नहीं की. रिपोर्ट और सूत्रों के अनुसार याकूब ने ही हवाला के ज़रिये पूरे पैसे का लें दें किया था और हथियारों की सप्प्लाई भी करवाई थी. तो क्या ये सब अपराध नहीं है ? क्या इसी वजह से 257 लोगों की जान नहीं गयी.

छठा सवाल – कहा जा रहा है कि याकूब ने आत्मसमपर्ण इस समझौते पर किया था कि वो मुंबई बम काण्ड से जुड़े महत्वपूर्ण सुराग देगा. जिस तरह आज भी मुख्य अभियुक्त कानून की पकड़ से दूर है उस हिसाब से ये तो नहीं लगता कि कुछ महत्वपूर्ण बताया है याकूब ने .

सातवाँ सवाल – वो लोग जो याकूब की फांसी को धर्म से जोड़ रहे है क्या ये वही लोग नहीं है जो चिल्लाते फिरते है कि आतंकवाद का कोई मज़हब नहीं. अब बताइए अगर आतंकवाद का मज़हब नहीं तो फिर एक आतंकवादी के मज़हब को लेकर नाटक क्यों ? सिर्फ वोट बैंक के लिए ?

याकूब मेमन हो या गुजरात के अपराधी सब है सजा के अधिकारी, उनको बचाना अपने आप में है अपराध

कोई आशा नहीं कि इनमें से एक भी सवाल का जवाब मिलेगा, शोर मचाने वाली और खुद का फायदा देखकर रंग बदलने वाली इस तथाकथित बुद्धिजीवियों और मानवाधिकारियों की भीड़ हमेशा से ही सवालों से कन्नी काटती रही है.

अब कुछ कारण जिनके लिए याकूब को फांसी दी जानी चाहिए

पहला – हर तरह से वो भी उन 257 लोगों की मौत का जिम्मेदार है जितना की टाइगर. साजिश का न सिर्फ पता था अपितु उसने मदद भी की थी.

दूसरा – याकूब की फांसी D कंपनी के लिए झटका होगी.

तीसरा – अगर याकूब को फांसी नहीं होती तो ये उन सब पीड़ितों के साथ नाइंसाफी होगी और कानून भरोसे के लायक नहीं रह जाएगा.

चौथा – अपराधियों में खौफ पैदा होगा अगर याकूब को फांसी होती है तो, जब फांसी के नाम से अफज़ल और कसाब जैसे ढीले हो गए थे और रोने लगे थे तो याकूब क्यों नहीं.

पांचवा – याकूब की फांसी से दुनिया में ये सन्देश जाएगा की भारत भी मज़बूत देश है और वो भी अपराधियों को कड़ी सजा दे सकता है.

याकूब मेमन सिर्फ एक प्रतीक है, याकूब की तरह ही 84 के दंगे हो या गुजरात सभी को सजा मिलनी चाहिए.

फांसी से कम कोई भी सजा इन जैसे अपराधियों के लिए फूलों की सेज ही तो होगी. खासकर के जैसी न्याय प्रणाली और जेल में भ्रष्टाचार भारत में है वैसे हालातों में

अगर ये कारण भी काफी नहीं है समझने के लिए तो शायद आपको तभी समझ आएगा जब फिर से कोई ऐसा ही धमाका होगा और सिर्फ बचेंगे आप अपने परिवार,साथियों,बच्चों की जली अधजली लाश के पास अपने उजड़े आशियाने को ताकते हुए.  

Yogesh Pareek

Writer, wanderer , crazy movie buff, insane reader, lost soul and master of sarcasm.. Spiritual but not religious. worship Stanley Kubrick . in short A Mad in the Bad World.

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Yogesh Pareek

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