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सिर्फ एक अंग्रेज़ ही देख पाया था रानी लक्ष्मीबाई का चेहरा, आखिर क्या था पूरा माजरा?

वीरांगना लक्ष्मीबाई

जब भी महिलाओं की वीरता और शौर्य की बात होती है तो सबसे पहला नाम वीरांगना लक्ष्मीबाई का ही आता है.

झांसी की रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई ने अपने राज्य को बचाने के लिए प्राण दे दिए, मगर अंग्रेज़ों के सामने नहीं झुकीं. रानी के बारे में कहा जाता है कि लक्ष्मीबाई को केवल एक ही अंग्रेज देख पाया था.

कौन था वो अंग्रेज़ और क्या ता पूरा मामला जानने के लिए पढ़िए पूरी स्टोरी.

वीरांगना लक्ष्मीबाई

कहा जाता है कि ऑस्ट्रेलिया के रहने वाले जॉन लैंग वकील ब्रिटेन में रहते थे और वो ब्रिटेन की सरकार के खिलाफ कोर्ट में मुकदमें भी लड़ा करते थे. रानी लक्ष्मीबाई ने जॉन को अपना केस लड़ने के लिए नियुक्त किया था. रानी लक्ष्मीबाई को जब मेजर एलिस ने किला छोड़ने का फरमान सुनाया तो रानी किला छोड़कर दूसरे महल में रहने लगी. ऐसे में किला वापस पाने के लिए उन्होंने केस लड़ने का मन बनाया और तो और अंग्रेजों से बैर रखने वाले जॉन लैंग को सोने की पट्टी में पत्र लिखकर मिलने को बुलवाया. अकेली रानी ने अंग्रेज़ों से टक्कर लेने की ठान ली थी और इसलिए उन्होंने जॉन लैंग को बुलावा भेजा था.

वीरांगना लक्ष्मीबाई

जॉन को केस लड़ने के लिए वीरांगना लक्ष्मीबाई से मिलने भारत आना पड़ा. जॉन ने अपनी भारत यात्रा पर एक किताब लिखी है जिसमें सारा विवरण दिया है. इसमें उन्होंने रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई की खूबसूरती और उनसे मिलने की घटना ज़िक्र किया है. जॉन की किताब का नाम है, ‘वांडरिंग्स इन इंडिया’.

ऐसा कहा जाता है कि रानी लक्ष्मीबाई ने महल के ऊपरी कक्ष में जॉन लैंग को मिलने के लिए बुलवाया.

वीरांगना लक्ष्मीबाई

रानी और लैंग के बीच में एक पर्दा था जिसमें से रानी की शक्ल बिल्कुल भी नहीं दिख रही थी. तभी अचानक रानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र दामोदर राव ने पर्दा हटा दिया और लैंग ने रानी का चेहरा देख लिया. अपनी किताब में लैंग ने रानी की खूब तारीफ की है. लैंग ने रानी के चेहरे की बनावट को बेहतरीन बताया. उन्होंने लिखा कि रानी की आवाज रुआंसी और फटी सी थी.

साल 2014 के ऑस्ट्रेलिया दौरे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लैंग का जिक्र किया था. उनके मुताबिक लैंग की मदद ने भारत-ऑस्ट्रेलिया के संबंधों को पुराने दौर से मजबूत बनाया था. लैग की कब्र को मशहूर लेखक रस्किन बॉन्ड ने 1964 में मसूरी में ढूँढ़ी थी. इसके बाद भारत में लैंग के बारे में लोगों को पता चल पाया था.

जॉन लैंग कभी मसूरी आए भी थे या नहीं, इसकी अभी कोई पुष्टि नहीं हुई है. इससे संबंधित कोई दस्तावेज भी नहीं मिले.

जॉन लैंग ने एक तरफ तो रानी लक्ष्मीबाई की मदद की मगर दूसरी तरफ उनकी लिखी किताब आज भी लोगों को रानी लक्ष्मीबाई के बारे में जानने के लिए मददगार है. इसके लिए इतिहास उन्हें हमेशा याद रखेगा.

वीरांगना लक्ष्मीबाई ने अपने राज्य को अंग्रेज़ों से बचाने की पूरी कोशिश की, यहां तक की बेटे को पीठ पर बांधकर अकेले ही अंग्रेज़ों से लड़ाई भी की, मगर अपने राज्य को नहीं बचा पाई और इस कोशिश में उनगी जान चली गई. रानी लक्ष्मीबाई को इतिहास हमेशा एक वीरांगना के रूप में याद रखेगा.