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ये 6 बातें बताती है सोनिया – राहुल के गले की हड्डी बना नेशनल हेरल्ड केस आखिर है क्या?

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इस अखबार का पतन राजीव गांधी की हत्या के बाद और ज्यादा होने लगा.

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1998 में नेशनल हेराल्ड प्रकाशन की संपत्तियों की नीलामी होने लगी. आने वाले समय में ये अखबार मज़ाक बन गया. लोगों का कहना था कि इस अखबार की उतनी प्रतियाँ भी नहीं बिकती जितने लोग इस अखबार के दफ्तर में काम करते है.

इस अखबार की मुश्किल से 5000 प्रतियाँ छपती थी वो भी अधिकतर कांग्रेस ऑफिस, सरकारी कार्यालयों में मुफ्त भेजी जाती थी.

2008 में इस अखबार का प्रकाशन बंद हो गया.

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