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कैसे ठोकती है दुनिया हिंदी को सलाम?

हाल ही में अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के भारत दौरे पर उन्होने राष्ट्रपति भवन में हिन्दी में नमस्ते कह कर सबको संबोधित किया और पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. जब भी हम किसी विदेशी से कुछ शब्द हिन्दी के सुनते हैं तो हम यह सोचकर ही गद-गद हो जाते हैं कि कोई विदेशी हमारी मातृभाषा का ज्ञान रखता है.

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जहाँ आज के युग में देश की ज़्यादातर जनता पश्चिमीकरण के आगोश में है और अंग्रेज़ी भाषा का पूर्ण ज्ञान रखती है वहीं एक ओर आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि विदेशों में ऐसे कईं लोग हैं जो हिन्दी भाषा में अपना मन लगाकर बैठे हैं. विदेशी ज़मीन पर आप ऐसे कई लोगों से रु-ब-रु होंगे जो हिन्दी भाषा में पारंगत हैं और साथ ही वहां के विद्यार्थियों को यह भाषा सिखाने का कार्य भी कर रहे हैं.

हिन्दी हमारी मातृभाषा है परंतु हम सभी इस बात से सहमत होंगे कि हम अभी भी काफी हद तक अंग्रेज़ी भाषा पर निर्भर हैं जबकि हज़ारों मील दूर, ऐसे कई लोग हैं जो हिन्दी भाषा, साहित्य एवं भारतीय संस्कृति में बेहद दिलचस्पी रखते हैं.

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रूस, जापान, दक्षिण अफ्रीका, फिजी, लंदन, कोरिया ऐसे कई बड़े-बड़े देश है जहाँ वही के लोग हिन्दी भाषा को बड़ी ही निष्ठा एवं धैर्य के साथ सीख रहे हैं और सिखा भी रहे हैं. यदि आप बाहर के कुछ विश्वविद्यालयों पर नज़र डालें तो आप ये जानेंगें कि इन सभी जगहों पर हिन्दी भाषा और साहित्य पर कई पाठ्यक्रम उपलब्ध हैं.

हिन्दी न सिर्फ भारत की राष्ट्रीय भाषा है बल्कि फिजी की भी आधिकारिक भाषा है. आंकड़ों के अनुसार हिन्दी दुनिया में चौथी सबसे ज़्यादा बोली जाने वाली भाषा है और 310 मिलियन की आबादी इस भाषा को बोलती है. जब हम बात करते हैं विदेशों में हिन्दी की पढ़ाई की, तो दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल के हानकुक विश्वविध्यालय में हिन्दी भाषा को पाठ्यक्रम में जोड़ा गया है. इस पाठ्यक्रम में हिन्दी भाषा सिखाने के साथ ही उसके साहित्य के बारे में भी पढ़ाया जाता है. रूस की भी स्टेट यूनिवर्सिटी में भी हिंदी भाषा के कई पाठ्यक्रम पढ़ाये जाते हैं और इसी के साथ कई विनिमय कार्यक्रम किये जाते हैं जिससे की वहां के लोग भारतीय भाषा और संस्कृति को और करीब से समझ पायें. अमेरिका में भी कईं विध्यालयों में हिन्दी को दूसरी भाषा का दर्जा देकर, पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है. अब छात्र फ्रेंच, जर्मन के साथ ही हिन्दी भी सीख सकते हैं.

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यह जानकर लगता है कि भारत में भले ही हमारी मातृभाषा हिन्दी को इतनी तवज्जो ना मिलती हो लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी ने अपनी पैठ बना ली है. इसे और आगे बढाने में कई विदेशी लोग पूरी निष्ठा से काम कर रहे हैं.

Prachi Karnawat

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