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5 जानदार कवि जिन की देशभक्ति से भरी ये कविताएँ सीना चौड़ा कर देती हैं

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आज़ादी!

एक ऐसा सपना जिस ने हज़ारों लाखों आँखों की नींदें उड़ा दीं और सैकड़ों स्वतंत्रता सैनानियों की जान की बलि भी माँगी!

लेकिन बलि देने से हमारे निडर, निर्भय, और जांबाज़ लड़ाके डिगे नहीं और लगा दी जान, आन, और शान की बाज़ी देश को आज़ादी की सुबह दिखाने के लिए! जहां देश में कई लड़ाके तलवार और बन्दूक से आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे थे, वहीँ कई शब्दों के लड़ाके, कवि, अपनी कलम के ज़ोर पर उस लड़ाई का साथ दे रहे थे

आज हम आज़ाद हैं, खुले आसमान के नीचे बिना किसी का चाबुक खाए सांस लेते हैं!

इसी आज़ादी का आज़ादी दिलाने वालों के नाम हिंदुस्तान के दिग्गज कवियों का ये प्यार भरा सलाम!

आईये ध्यान देते हैं इन 5 नामवर कवियों की तरफ जिन्हों ने लिखी देशप्रेम की कवितायें और जो रग-रग में जोश और स्वतंत्रता का उजाला भर देती हैं!

1)   गिरिजा कुमार माथुर:

शुरुआत करते हैं गिरिजा कुमार माथुर की कविता से जिस का शीर्षक है “15 अगस्त 1947”!

गिरिजा कुमार माथुर का जन्म 22 अगस्त 1919  को गुना, मध्यप्रदेश में हुआ। स्वतंत्रता प्राप्ति के दिनों में हिंदी साहित्यकारों में जो उदीयमान कवि थे उनमें  ‘गिरिजा कुमार माथुर’ का नाम भी सम्मिलित है।

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“15 अगस्त 1947″

आज जीत की रात
पहरुए! सावधान रहना
खुले देश के द्वार
अचल दीपक समान रहना
2
प्रथम चरण है नये स्वर्ग का
है मंज़िल का छोर
इस जन-मंथन से उठ आई
पहली रत्न-हिलोर
अभी शेष है पूरी होना
जीवन-मुक्ता-डोर
क्यों कि नहीं मिट पाई दुख की
विगत साँवली कोर
ले युग की पतवार
बने अंबुधि समान रहना।
3
विषम शृंखलाएँ टूटी हैं
खुली समस्त दिशाएँ
आज प्रभंजन बनकर चलतीं
युग-बंदिनी हवाएँ
प्रश्नचिह्न बन खड़ी हो गयीं
यह सिमटी सीमाएँ
आज पुराने सिंहासन की
टूट रही प्रतिमाएँ
उठता है तूफान, इंदु! तुम
दीप्तिमान रहना।
4
ऊंची हुई मशाल हमारी
आगे कठिन डगर है
शत्रु हट गया, लेकिन उसकी
छायाओं का डर है
शोषण से है मृत समाज
कमज़ोर हमारा घर है
किन्तु आ रहा नई ज़िन्दगी
यह विश्वास अमर है
जन-गंगा में ज्वार,
लहर तुम प्रवहमान रहना
पहरुए! सावधान रहना।।

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