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सुप्रीम कोर्ट 28 सितंबर को बता सकता है मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं

मस्जिद में नमाज पढ़ना – एक भी साल ऐसा नहीं गया होगा जब अयोध्या विवाद से जुड़ा कोई मामला सुर्खियों में रहा नहीं होगा। ये जितना बड़ा विवाद है उतना ही बड़ा ये धर्मनरिपेक्ष नाम से दुनिया में प्रसिद्ध भारत के ऊपर कालिख भी है।

इससे जुड़े कई मामले आए दिन हर साल आते रहते हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के सामने इस मामले से जुड़ा एक सवाल आया था कि मुस्लिमों का मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है कि नहीं?

कोर्ट के सामने सवाल – मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है या नहीं?

28 सितंबर हो सकता है फैसला

इस जवाब का फैसला 28 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट दे सकता है। इस जवाब से जुड़ा फैसला 1994 को आया था जिस पर समीक्षा करते हुए आगामी 28 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुना सकता है कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का हिस्सा है कि नहीं। दरअसल 1994 के सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है।

1994 में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने फैसला दिया था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का इंट्रीगल पार्ट नहीं है और राम जन्मभूमि में यथास्थिति को बरकरार रखने का निर्देश दिया गया था। ताकि हिंदू धर्म के लोग वहां पूजा कर सकें।

टाइटल सूट के मुद्दे पर फैसले की संभावना

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसला सुनाने के बाद ही टाइटल सूट के मुद्दे पर फैसला आने की संभावना है। लेकिन अभी यह नहीं कहा जा सकता कि इस सीमित सवाल को संवैधानिक बेंच भेजा जाएगा कि नहीं। इस मामले में फैसला फिलहाल सुरक्षित रख लिया गया है। दरअसल, मुस्लिम पक्षकारों की ओर से दलील दी गई है कि “1994 में इस्माइल फारुकी केस में सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में कहा है कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है। जबकि यह गलत है। मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का हिस्सा है और वे इसका पालन करने के लिए बाधित है।”

इस कारण ही इस फैसले की समीक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई थी।

20 जुलाई को सुरक्षित रख लिया गया था फैसला

कोर्ट ने इस बारे में अपना फैसला 20 जुलाई को सुरक्षित रखा था। बता दें कि टाइटल सूट से पहले ये फैसला काफी बड़ा हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट की एडवांस सूची के मुताबिक ये फैसला लिस्ट में शामिल है।

पांच जजों की पीठ ने दिया था फैसला

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 1994 का यह फैसला पांच जजों की पीठ ने दिया था। इस पीठ ने कहा था कि मस्जिद में नमाज पढ़ना इस्लाम का इंट्रीगल पार्ट नहीं है। मुस्लिम पक्षकारों के अनुसार इस फैसले पर फिर से समीक्षा किए जाने की जरूरत है।

इस पर 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला देते हुए एक तिहाई हिंदू, एक तिहाई मुस्लिम और एक तिहाई रामलला को दिया था। बीते दिनों संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अयोध्या में जल्द से जल्द राम मंदिर के निर्माण की बात कही थी जिसकी सराहना शिवसेना ने की थी।

Tripti Verma

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