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क्या सफल हो पाएगा रेप रोको आंदोलन ?

रेप रोको आंदोलन

रेप रोको आंदोलन – फेसबुक पर एक पोस्ट देखा जिसमें किसी ने लिखा था कि लड़कियां हमारे देश की संस्कृति को भुलती जा रही है ।

उनके कपड़ो के साइज कम होता जा रहा है ।और फिर कहते है कि रेप हो रहे हैं । ऐसे में रेप नहीं होंगे तो क्या होगा पहले खुद ही तो आकर्षित करती है । तब मेरे मन में भी ख्याल आया कि अच्छा तो ये प्रॉब्लम है । मतलब देश में होने वाले रेप के अपराध के लिए लड़कियां ही जिम्मेदार है ।

12 साल की बच्ची के साथ रेप होता है तो उसमें बच्ची का दोष है वो भी लड़के को अपनी ओर आकर्षित कर रही होगी ।

6 महीने की बच्ची जिसे बोलना नहीं आता यहां तक कि अपनी जगह से पलटना में भी नहीं आता । लेकिन उसे लड़को को आकर्षित करना है । वरना उस बच्ची के साथ रेप कैसे होता ?

देश में रोजाना कई लड़कियां रेप के अपराध का शिकार होती है ।

रेप रोको आंदोलन

जिनमें गुनहेंगार कई बार अनजान होता है । तो कई बार कोई अपना । और देश बदलने की बात करने वाले केवल बयानबाजी ,सोशल मीडिया पर पोस्ट करके अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लेते हैं । कानून और प्रशासन भी रेप को केवल एक अपराध की तरह देख रहा है  । इसलिए केवल सजा के प्रवाधान पर जोर देर है । वो भुल जाता है कि रेपिस्ट रेप सिर्फ शरीर का नहीं करता बल्कि एक लड़की अंरतात्मा का भी करता है । पर कहते हैं जिस अपराध को 100 लोग नजरअंदाज करते है उसे 101 वां व्यक्ति तो जरुर रोकने की कोशिश जरुर करता है । 

रेप रोको आंदोलन

 ऐसी ही एक कोशिशि दिल्ली की महिला आयोग कि अध्यक्ष स्वाती मालीवाल ने भी पिछले महीने की थी । पिछले महीने 8 मार्च को महिला दिवस के मौके पर जब हमारे देश के बुद्धीजीवी सोशल मीडिया पर पोस्ट डालकर वुमनस के लिए रिस्पेक्ट दिखा रहे थे स्वाती मालीवाल ने दिल्ली के कनॉट प्लेस से रेप रोको आंदोलन की शुरुआत की ।  वुमनस डे होने की वजह से इलक्टोनिक मीडिया , प्रिंट मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक सभी ने इस आंदोलन को खूब हवा दी । लेकिन जैसे जैसे वक्त बीता बाकी चीजों की तरह लोग इसे भी भूलने लगे । और लोगों के रेप रोको आंदोलन वाले पोस्ट फनी जोक्स और लव शायरी में बदल गई । वो क्या कहते है जब तक जख्म था दर्द का एहसास था लेकिन अब जख्म भरने लगे है तो लोग दर्द भी भुलने लगे है ।  

रेप रोको आंदोलन

हालांकि दिल्ली की महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाती मालीवाल अपने इस आंदोलन को उसी  ताकत के साथ आगे बढ़ा रही है जिस ताकत के साथ उन्होने एक महीने पहले इस आंदोलन की शुरुआत की थी ।  

पर क्या रेप रोको आंदोलन सच में रेप रोकने में कामयाब हो पा रहा है ।

क्या महिला आयोग की अध्यक्ष का ये आंदोलन दिल्ली को कैपिट ऑफ रेप के टैग से छुटकारा दिला पाएगा । आपको बता दें स्वाती मालीवाल ने इस रेप रोको आंदोलन का फैसला दिल्ली की रेप की उस घटना के बाद लिया जिसने पूरे देश को नींद से जागने पर मजबूर कर दिया था और ये घटना थी एक 8 महीने की बच्ची के साथ रेप के अपराध को अंजाम देने की । पर जब एक 8 महीने के साथ रेप हुआ उसके बाद महिला आयोग की नींद खुली जबकि दिल्ली में इसे पहले भी हजारों रेप के अपराध को अंजाम दिया गया । लेकिन चलो देर से ही सही किसी की नींद तो टूटी । पर अब सवाल ये उठाता है कि क्या रेप रोको आंदोलन का कोई असर दिल्ली वालों पर देखने को मिल रहा है क्या इस आंदोलन के बाद लोगों की सोच में कोई बदलाव आया है क्या पिछले एक महीने में रेप के अपराध कम हुए हैं नहीं ।

रेप रोको आंदोलन की हवा ने दिल्ली में कुछ बदलाव करने की भले ही कोशिश की हो, लेकिन अभी भी बहुत कुछ बदलना बाकी है जिसके लिए जरुरी है कि लव शायरी, जोक्स पोस्ट करने की बजाय लोग इस कैंपन को लेकर सोशल मीडिया पर एक्टिव हो और उसे भी जरुरी अपने आप में बदलाव लाने की कोशिश करें । क्योंकि रेप रोको आंदोलन एक 8 महीने की बच्ची के साथ हुए अपराध के लिए उसके आरोपियों को शायद कड़ी से कड़ी सजा दिलवा भी दे । लेकिन वो समाज में पैदा हो रहे उन जैसे अपराधियों को पैदा होने से रोकने में अभी असमर्थ है ।