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उस रात एक फोन कॉल के बाद खूब रोए थे राहुल गांधी, जानिए आखिर क्यों?

राहुल गांधी की ज़िंदगी

राहुल गांधी की ज़िंदगी – कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी उन नेताओं में से हैं जिनकी बात आज तक किसी ने गंभीरता से नहीं ली और 48 साल के होने के बावजूद आज भी उन्हें बेवकूफ बच्चा ही समझा जाता है.

एक ऐसा बच्चा जिसे जबरन राजनीति में लाया गया, सिर्फ इसलिए ताकि वो गांधी परिवार की परंपरा को आगे बढ़ा सके.

पता नहीं असलियत में राहुल की राजनीति में कोई दिलचस्पी है भी या नहीं?

वैसे एक राजनेता से अलग अगर एक आम इंसान के रूप में राहुल गांधी की ज़िंदगी को देखा जाए तो उनकी ज़िंदगी में बहुत कठिनाइयां नहीं. अच्छे से ज़्यादा उन्होंने बुरे दौर देखे. ऐसी ही एक बुरी रात को जब उन्हें एक फोन आया तो उस फोन कॉल ने उनकी सारी ज़िंदगी ही बदल डाली. किसका था वो फोन और क्या कहा था उनसे फोन पर?

राहुल गांधी की ज़िंदगी – राहुल गांधी ऐसे परिवार से आते हैं जिनका राजनीति में कभी बहुत रुतबा हुआ करता था, आज भले ही कांग्रेस हंसी का पात्र बन चुकी है, लेकिन कभी यही देश की इकलौती बड़ी राजनीतिक पार्टी हुआ करती थी.

राहुल गांधी ने बचपन से ही बहुत मुशकिलें देखी हैं. जब वो 10 साल के थे तो उनके चाचा संजय गांधी की प्लेन क्रैश में मौत हो गई. वो 14 साल के हुए तो दादी इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई. इंदिरा की हत्या के वक्त राहुल और प्रियंका गांधी दून स्कूल में पढ़ते थे. तब उन्हें भारी सुरक्षा के बीच वहां से वापस लाया गया था.

एक इंटरव्यू के दौरान राहुल गांधी ने बताया था कि वो बचपन से ही बहुत सुरक्षा व्यवस्था के बीच रहे हैं.

राहुल ने इंटरव्यू में बताया था कि 1985 में दादी इंदिरा की हत्या के बाद परिवार को आभास हो गया था कि किसी न किसी दिन कोई पापा राजीव गांधी को भी मार देगा. और ये डर सच साबित हुआ 21 मई 1991 में राजीव की भी हत्या कर दी गई.

तब राहुल गांधी हावर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे थे. राहुल के मुताबिक, ‘उस रात पापा के एक दोस्त के भाई का फोन आया और उन्होंने कहा कि आपके लिए एक बुरी खबर है. इसके बाद मैंने पूछा क्या वो मर गए. उन्होंने कहा-हां और फोन कट गया. इसके बाद मैं खूब रोया.’

पहले दादी और फिर पिता की हत्या के बाद राहुल की ज़िंदगी पटरी से उतर गई.

राजीव गांधी की हत्या के बाद उन्हें फिर से पढ़ाई छोड़नी पड़ी थी. उसके बाद में उन्होंने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से एमफिल किया और उसके बाद उन्होंने लंदन के मॉनीटर ग्रुप के लिए तीन साल काम भी किया था. इस दौरान उन्होंने अपनी पहचान को पूरी तरह से छुपाकर रखा था. उनके कुछ दोस्तों के मुताबिक राहुल कभी राजनीति में नहीं आना चाहते थे.

ये है राहुल गांधी की ज़िंदगी –  साफ है कि परिवार की विरासत के नाम पर राजनीति उन पर थोपी गई है. शायद इसलिए 48 साल की उम्र होने के बाद भी उनमें राजनीतिक परिपक्वता नहीं दिखती, क्योंकि इंसान जो काम बेमन से करता है उसमें कभी सफल नहीं हो सकता.

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