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किस्सा उस दौर का जब नेहरू ने फूलों के गुलदस्ते से मारा था कैमरामैन को

जवाहर लाल नेहरू

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री रहे जवाहर लाल नेहरू के किस्से बेहद अलग और उम्दा रहे है।

बच्चों के प्यारे चाचा नेहरू का स्वभाव जितना हंसमुख था, उतने ही वे जिद्दी और गुस्सैल भी थे। जिसके चलते वह अपने स्वभाव को लेकर अक्सर चर्चा का विषय भी बना करते थे।

ये किस्सा उस वक्त का है जब भारत-पाक के हुए अलगाव के दौरान दोनों देशों के बीच संबध बेहद बिगड़े हुए थे।

उस समय पाकिस्तान के प्रधानमंत्री भारत कई मुद्दों को लेकर चर्चा करने आये थे। अब जैसा कि मीडिया का हमेशा से काम रहा है। देश-विदेश से जुड़ी खबरों को जन-जन तक पहुंचाना। तो वो अपना थैला और कैमरा उठा दिल्ली हवाई अड्डे पहुंच गई थी, और ये खबर तो भारत-पाकिस्तान से जुड़ी थी, फिर मीडिया इस से दूर कैसे रह लेती।

जवाहर लाल नेहरू

ये वो दौर था जब हर देश भारत के अलगाव पर अपनी रोटियां सेक रहा था। हर कोई दोनों देशों के बीच हो रही एक-एक मीटिंग का ब्यौरा पढ़ना और सुनना चाहता था। उस वक्त के एक-आध खुले हर चैनल, हर अखबार के कैमरामैन और रिपोर्टर को इस खबर के हर पहलू की तस्वीर अपने साचे में उतारने की होड़ लगी थी।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का स्वागत करने जवाहर लाल नेहरू दिल्ली हवाई अड्डे पर पहुंचे।

वहां पर भीड़ देख उनके होश उड़ गए, लेकिन भीड़ को देखकर उन्होंने जरा भी अंदाजा नही लगा कि आगे क्या होने वाला है। पाक प्रधानमंत्री ने भारत की सरज़मी पर कदम ही रखा था कि पत्रकारों ने पहले खबर दिखाने और तस्वीर लेने की होड़ में अपना आपा खो दिया। फिर क्या था जब मीडिया ने अपना आपा खोया तो उन्हें देख प्रधानमंत्री नेहरू का गुस्सा आसमान चढ़ गया और उन्होंने पत्रकारों को फटकार ही नहीं लगाई, बल्कि जो फूलों का गुलदस्ता वो पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के स्वागत के लिए लाये थे, वे उसी गुलदस्ते से उन्हें मारने दौड पड़े थे।

जवाहर लाल नेहरू

नेहरू के बारें में ऐसे और कई दिलचस्प किस्सें है जो उन्हें एक लोकप्रिय नेता, एक शौकिन मिजाज़ व्यक्ति, दोस्ताना स्वभाव और एक जनटलमैन के आकड़े में फिट करते है। नेहरू अपने समय के दुनिया के पांच टॉप अग्रेंजी लेखक भी रह चुके है। उनके इसी शौक के चलते उनके हर दिन का आधा समय पढ़ने, लिखने, डिक्टेट करने और अपना भाषण तैयार करने में जाता था।

दुसरों के लिखे भाषण को पढ़ना या उनके लिखे पत्र-पत्रिकाओं पर नेहरू अपने साइन करना भी अपनी शान के खिलाफ समझते थे।

अपने इसी स्वभाव के चलते गांधी जी की अचानक से हुई हत्या पर जब वह अपना दुख जताने जवाहर लाल नेहरू आकाशवाणी के स्टूडियों पहुंचे, तब उन्होंने कोई भाषण तैयार नहीं कर रखा था। उस दौरान उन्होंने बिना किसी तैयारी के एका-एक आकाशवाणी पर अपना भाषण “द लाइट हैज गॉन आउट ऑफ अवर लाइफ” बोलना शुरू कर दिया। आकाशवाणी पर दिये उनके इस भाषण के एक-एक शब्द ने उनके इस टाइटल को सार्थक किया और जताया था कि सच में जवाहर लाल नेहरू की दुनिया में किसी ने लाइट बंद कर एकदम अंधकार ही भर दिया हो।