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साल में सिर्फ एक बार ही खुलते हैं इस मंदिर के दरवाजे, आखिर क्यों?

उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर

उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर – हिंदू धर्म में नागों का विशेष महत्व है, वो भगवान शिव का आभूषण भी हैं.

हमारे देश में नागों के कई मंदिर है जहां उनकी पूजा की जाती है, मगर इन सबसे से उज्जैन का मंदिर बहुत खास और अलग है, क्योंकि इस मंदिर के कपाट साल में सिर्फ एक दिन ही खुलते हैं. आखिर ऐसा क्यों, चलिए आपको बताते हैं.

उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर नाग देवता को समर्पित है. यह मंदिर, महाकाल मंदिर के तीसरी मंजिल पर स्थित है. इस मंदिर का निर्माण राजा भोज ने 1050 में करवाया था. इस मूर्ति की सबसे बड़ी खासियत है दस फन वाले नाग देवता है और फन के नीचे भगवान शंकर, देवी पार्वती और गणेश विराजमान हैं. इस मूर्ति को नेपाल से लाया गया था.

उज्जैन का नागचंद्रेश्वर मंदिर जिसके दरवाजे साल में केवल एक बार नाग पंचमी के दिन ही खुलते हैं. मंदिर के दरवाजे साल में एक बार खुलने के पीछे एक कहानी है. कहा जाता है कि तक्षक नाम के नाग ने भगवान शिव की तपस्या की और भगवान शिव ने प्रसन्न होकर तक्षक को अमरता का वरदान दिया। उसके बाद तक्षक साधना के लिए महाकाल वन चले गए ताकि कोई साधना के दौरान उन्हें कोई परेशान न करें. ऐसे में सालों से यही प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं. मंदिर में स्थापित मूर्ति को तक्षक (नागदेवता) के रूप में पूजा की जाती है.

सिर्फ नागपंचमी के दिन मंदिर के दरवाजे खुलने के बाद बाकी पूरे समय ये बंद रहता है. ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है, इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है. इस मंदिर में लगभग दो लाख से ज्यादा भक्त एक ही दिन में नागदेव के दर्शन करते हैं.

नागचंद्रेश्वर के दर्शन के लिए एक दिन पहले ही रात 12 बजे मंदिर के पट खोल दिए जाते हैं. दूसरे दिन नागपंचमी को रात 12 बजे मंदिर में फिर आरती होती है और मंदिर के दरवाज़े पुनः बंद कर दिए जाते हैं.

भारत जैसे देश में जहां सैंकड़ों मंदिर है वहां हर मंदिर के पीछे कोई न कोई कहानी जुड़ी हुई है. अब ये कहानियां कितनी सच है ये तो पता नहीं लेकिन लोग बरसों से इन पर विश्वास करते आ रहे हैं.