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खाड़ी देश में औसतन रोज मरते हैं 10 भारतीय मजदूर !

भारतीय मजदूर

भारतीय मजदूर – इस बात की हर किसी को जानकारी है कि हर साल हजारों भारतीय मजदूर रोजगार की खोज में खाड़ी देशों में जाते हैं।

इन खाड़ी देशों में मजदूरों को काफी दयनीय स्थिति में रहना पड़ता है और इनसे 12 से 16 घंटे काम करवाए जाते हैं। सबसे बुरी बात है कि इनसे यहां पासपोर्ट भी ले लिया जाता है जिससे कि वे वापस भी अपनी मर्जी से नहीं आ पाते हैं। छ दिन लगातार 16 घंटे काम करने के कारण इनकी स्थिति काफी खराब हो जाती है जिसके कारण ये काफी बीमार रहने लगते हैं।

ऊपर से उन्हें एक छोड़े से बड़ेनुमा कमरे में पांच-पांच लोगों के साथ रहना पड़ता है जहां ना बिजली की सुविधा होती है ना पानी की। इन सब हालातों के बारे में हर किसी को मालूम होता है लेकिन पेट की भूख को शांत करने के लिए जाना ही पड़ता है।

भारतीय मजदूर

यह पेट की भूख ही है जिसके कारण हर दिन औसतन 10 भारतीय मजदूरों की मौत खाड़ी देशों में हो रही है लेकिन फिर भी हजारों की तादाद में हर साल भारतीय मजदूर खाड़ी देश जाने के लिए वीजा एप्लाई करते हैं।

भारतीय मजदूर

खाड़ी देशों में मर रहे भारतीय मजदूर

पिछले छह वर्षों के आंकड़ों पर नजर डालें तो खाड़ी देशों में रोज औसतन 10 भारतीय मजदूरों की मौत हुई है। यह सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त की गई है। सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त की गई जानकारी के अनुसार एक स्वयंसेवी समूह ने कहा खाड़ी देशों में रोज औसतन 10 भारतीय मजदूरों की मौत होती है।

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आधे से अधिक धनराशि खाड़ी देशों से आती

भारत में हर साल विदेशों से आने वाली सबसे अधिक धनराशि खाड़ी देशों से ही है। वर्ष 2012-2017 के बीच देश को विश्वभर से जो धनराशि प्राप्ति हुई उसमें खाड़ी देशों में काम कर रहे भारतीयों का योगदान आधे से अधिक है। विदेश मंत्रालय ने 26 अगस्त 2018 को राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में कहा था कि वर्ष 2017 में छह खाड़ी देशों में काम करने वाले भारतीयों की संख्या लगभग 22.53 लाख थी।
कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव के वेंकटेश नायक ने विदेश मंत्रालय से बहरीन, ओमान, कतर, कुवैत, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में एक जनवरी 2012 से मध्य 2018 तक हुई भारतीय मजदूरों की मौत का ब्योरा मांगा था।

उन्होंने बताया कि बहरीन, ओमान, कतर और सऊदी अरब स्थित भारतीय दूतावासों ने ब्योरा उपलब्ध करा दिया, लेकिन संयुक्त अरब अमीरात स्थित दूतावास ने सूचना देने से इनकार कर दिया। कुवैत स्थित भारतीय दूतावास ने अपनी वेबसाइट पर उपलब्ध ब्योरे का संदर्भ दिया, लेकिन यह 2014 से था।

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नायक ने कहा, भारत को विश्वभर से 410.33 अरब डॉलर की राशि मिली। इसमें खाड़ी देशों से मिलने वाली राशि 209.07 अरब डॉलर थी। उन्होंने कहा कि मौतों से संबंधित ब्योरे में अंतर को पाटने के लिए उन्होंने लोकसभा और राज्यसभा में सवालों के जवाब में दिए गए ब्योरे का इस्तेमाल किया। नायक ने कहा, उपलब्ध ब्योरा संकेत देता है कि 2012 से मध्य 2018 तक छह खाड़ी देशों में कम से कम 24,570 भारतीयों की मौत हुई। यदि कुवैत और संयुक्त अरब अमीरात के समूचे आंकड़े उपलब्ध होते तो मौतों की संख्या ज्यादा होती। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार इस अवधि में हर रोज 10 से ज्यादा भारतीय मजदूरों की मौत हुई।

फिलहाल तो इन हालातों में कोई सुधार देखने को नहीं मिलेगा। लेकिन देखना यह है कि बीतते वक्त के साथ इसमें कितना सुधार आता है और खाड़ी देशों में भारतीय मजदूरों की स्थिति में सुधार आता है कि नहीं?