धर्म और भाग्य

भंडारा क्यों करवाते हैं लोग? जानिए भंडारे का इतिहास

भंडारा – वैदिक ग्रंथों में बताया गया है कि धर्म के चार चरण होते है – सत्य, तप, पवित्रता और दान. सतयुग में तो धर्म के चार चरण थे.

 फिर त्रेतायुग में सत्य चला गया द्वापर में सत्य और तप नहीं रहे और कलियगु में सत्य और तप के साथ पवित्रता भी चली गई. कलियुग में केवल दान और दया ही धर्म रह गया है. इसलिये कलिकाल में लोग धर्म के रूप में दान को बहुत महत्व देते हैं.

आमतौर पर लोग किसी पूजा-पाठ, शुभ अवसर, जागरण, हवन के बाद प्रीतभोज या भंडारे का आयोजन करते हैं. लोग धार्मिक कार्यक्रम के बाद भंडारा कराते हैं ताकि उन्हे उस धार्मिक आयोजन का पुण्य मिल सके. वैसे भी धर्म कोई भी हो दान को सबसे ऊपर माना गया है. माना जाता है कि दान परोपकार भी होता है और इससे आपकी कुंडली के ग्रह भी शांत रहते हैं.

दान करना है जरूरी

वैदिक धर्म में ब्राह्मण और गरीबों को दान देना विधान माना गया है. दान के कई रूप होते हैं  जैसे- अन्नदान, वस्त्रदान,विद्यादान, अभयदान और धनदान. इसमें में किसी भी चीज का दान करने से आपको पुण्य की प्राप्ति होती है और आपको परलोक में वहीं चीज मिलेगी जिसका आपने दान किया होता है. दान में सबसे बड़ा दान अन्नदान माना जाता है. इसलिए लोग सबसे ज्यादा भंडारा करवाते हैं ताकि ज्यादा से ज्यादा अन्न का दान किया जा सके.भारत में तो कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं जहां पर 24 घंटे भंडारा चलता रहता है.

भंडारे की खासियत

भंडारे की खासियत है कि यहां पर लोग जाति-पाति, अमीर-गरीब, ऊंच-नीच से ऊपर उठकर एक साथ भोजन ग्रहण करते हैं. भंडारे में कोई भेदभाव नहीं होता है. लेकिन कई बार हमारे मन में यह सवाल उठता है कि भंडारा कब शुरू हुआ होगा और इसके पीछे की कहानी क्या होगी?

तो चलिए हम आज आपकी इस जिज्ञासा को शांत कर देते हैं आपको बताते है भंडारा  का इतिहास…

भंडारा क्यों किया जाता है?

दरअसल पौराणिक काल में राजा-महाराज जब किसी यज्ञ या अनुष्ठान का आयोजन करवाते थे तो वह बाद में अन्नदान और वस्त्रदान किया करते थे. वह अपनी प्रजा को बुलाते थे औऱ उन्हें अन्न तथा वस्त्र दान दिया करते थे. लेकिन समय के बदलाव के साथ अन्नदान की परंपरा भंडारे में परिवर्तित हो गई. अब लोग खाना बनवाकर लोगों को बांटने लगे. वहीं हिंदू धर्म में दुनिया का सबसे बड़ा दान अन्नदान माना गया है. इसके पीछे की मान्यता है कि यह ब्रह्माण्ड अन्न से बना है, औऱ अन्न से ही इसका पालन पोषण हो रहा है. यदि अन्न न हो तो मनुष्य जीवित नहीं रह सकता है. अन्न हमारे शरीर और आत्मा दोनों को प्रसन्नता और संतुष्टि प्रदान करता है. इसलिये सभी दानों में से अन्नदान को सर्वोपरि माना गया है.

भंडारे का इतिहास

भंडारा क्यों किया जाता है इसके बारे में दो कथाएं काफी प्रचलित हैं. पद्मपुराण के सृष्टिखंड में इससे संबंधित एक कथा वर्णित है. एक बार ऋृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी और विदर्भ के राजा श्वेत के बीच संवाद हो रहा था. इस संवाद में ब्रह्मा जी ने कहा कि जो व्यक्ति अपनी जीवन में जिस भी वस्तु का दान करता है उसे मृत्यु के बाद  वहीं चीज परलोक में मिलती है. राजा श्वेत कठोर तपस्या करके परलोक चले जाते हैं लेकिन उन्होंने अपने जीवनकाल में कभी भी भोजन का दान नहीं किया होता है इसलिये उन्हे ब्रह्मलोक में भोजन नहीं मिलता है.

दूसरी कथा

वहीं दूसरी कथा पुराणों में दर्ज है. जिसके अनुसार एक बार भगवान भोलेनाथ, ब्राह्मण का वेश धारण करके पृथ्वी पर विचरण करने पहुंच जाते हैं. पृथ्वीलोक पर पहुंचकर वह एक विधवा स्त्री से दान मांगते हैं. उस वक्त कंजूस विधवा उपले बना रही होती है. महिला कहती है कि वह अभी दान नहीं दे सकती है क्योकि वह गोबर के उपले बना रही है. जब भोलेबाबा हठ करते हैं तो वह स्त्री गोबर उठाकर दे देती है. लेकिन जब महिला मरकर परलोक पहुंचती है तो उसे खाने के रूप में गोबर मिलता है. जब महिला पूछती है तो उसे बताया जाता है कि जो उसने दान में दिया था यहीं उसी का नतीजा है.

तो दोस्तों, आप अपने जीवनकाल में एक बार भंडारा जरूर करवाएं ताकि आप भी अन्नदान कर सकें. दान करने से आपका मन और आत्मा दोनों संतुष्ट हो जाती है. दान करने से भगवान भी खुश हो जाते हैं.

Deeksha Mishra

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