भारत

तो इन कसौटियों से गुज़र कर अंग्रेजी की जगह हिंदी बन सकती है लोगों की जुबानी भाषा !

हिन्दी भाषा – जैसा की हम जानते हैं भारत जैसे विशाल देश में सात अलग-अलग धर्म के लोग १२२ भाषाओं के साथ-साथ 1600 बोलियां बोलते हैं.

अतः इसलिए भारत को विविधता में एकता वाला देश भी कह कर पुकारा जाता है.

चूँकि किसी भी समाज की विविधिता के लिए सबसे ज्यादा उत्तरदाई वहां की भाषा होती है, इसीलिए आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से बात करने वाले हैं उत्तर भारत की सबसे प्रिय हिन्दी भाषा के बारे में. इतिहास में हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दिलाने के लिए बिभिन्न प्रधानमन्त्री द्वारा प्रयास किये गए जिसके कारण मुख्यतः दक्षिण भारत के राज्यों में सैकड़ो विरोध भी हुए, यहाँ तक की आँध्रप्रदेश के नेता पोट्टी श्रीरामलू की अनशन करते हुए म्रत्यु भी हो गई.

अंततः लोकतंत्र की गरिमा को देखते हुए हमारे नेताओं ने हिन्दी भाषा को राष्ट्रभाषा मानने का फैसला भविष्य की भावी पीढ़ी पर छोड़ दिया गया.

जैसा कि सभी जानते हैं बदलते हुए दौर में आज हिन्दी भाषा की जगह हिन्दुस्तानी भाषा ने ले ली है. जो मुख्यतः हिंदी+उर्दू +फारसी+अरबी+अंग्रेजी+संस्कृत+पुर्तगाली+डच इत्यादि भाषाओँ का मिश्रण है. कुछ उदाहरण के माध्यम से इन भाषाओँ के शब्दों को समझते हैं-

फ़ारसी- जहाज, खजाना, निशान

अरबी- कागज, कानून, तकदीर

तुर्की- कुली, बीबी, खजांची

पुर्तगाली- तौलिया, गोदाम, तम्बाकू, मिस्त्री, पिस्तौल

अंग्रेजी- साईकिल, पेन्सिल, बस, ट्रेन इत्यादि

इसके साथ ही वैकल्पिक तौर पर अंग्रेजी भाषा भी हमारी जुबान पर रहती है. इसलिए आज हम अंग्रेजी के ही माध्यम से जानने का प्रयास करेंगे कि अगर इस तरह हिन्दी भाषा एक व्यवस्थित ढंग से गुजरती तो वह राष्ट्रभाषा बन जाती.

एक व्रिटिश चिन्तक (लगभग सन 1885) जॉर्ज अब्राहम ग्रियसन के अनुसार हिंदी बोलचाल की महाभाषा है उन्होंने अपने ग्रन्थ “लिंग्विस्ट सर्वे ऑफ़ इंडिया” में भारतीय भाषाओँ का सूक्ष्म अध्ययन किया है  इस ग्रन्थ में भारत की 179 भाषाओँ तथा 544 बोलियों का सविस्तार सर्वे है. जिसमें मुख्य रूप से हिन्दी भाषा को तबज्जो दी गई है.

अगर अंग्रेजी के विकास की बात करें तो उस समय ब्रिटेन में अमीरों के द्वारा इंग्लिश की जगह फ़्रांसिसी बोली को प्राथमिकता दी जाती थी वहां उस समय अंग्रेजी कुछ कम पढेलिखे लोग ही बोला करते थे, ऐसे ही फ्रांस में फ़्रांसिसी की जगह लेटिन और जर्मन जैसी भाषाओँ को तबज्जो दी जाती थी.

आज जो हम अंग्रेजी बोलते हैं वह खुद सम्रद्ध नहीं हुई बल्कि वह जर्मन, डच, हिब्रू, संस्कृत, जापानी, हिंदी, उर्दू जैसी भाषाओँ का उसकी सम्रद्धि में पूरा योगदान है. अंग्रेजी जहाँ से भी गुजरी उसने परिस्थितियों के हिसाब से किसी दूसरी भाषा के शब्दों को नकारने की बजाय उन्हेंस्वीकार किया और नए शब्दों के साथ समर्द्ध होती चली गई.  उदाहरण के लिए – बॉस: 19वी सदी में जन्मा डच शब्द, शिट : जर्मन भाषा का शब्द.

इसी तरह हिंदी भाषा का विकास भी किया जा सकता है चूँकि समस्या यह रही है कि हिंदी को बढाने और सम्रद्ध बनाने के लिए हमने केवल संस्कृत भाषा के शब्दों का प्रयोग किया, चूँकि संस्कृत एक सम्रद्ध साहित्यिक भाषा रही है, ऐसे में जनसाधारण हिंदी के कठिन शब्दों से तालमेल नहीं बैठा पाए.  अतः हिंदी को सम्रद्ध करने तथा अखिल भारतीय भाषा बनाने के लिए जरूरी है कि उसका तालमेल सबसे ज्यादा दक्षिण भारत की भाषाओँ के साथ बैठाया जाए तथा इस तरह एक भाषा एक राष्ट्र के पुराने सपने का साकार करने की दिशा में कदम बढाया जाए.

Kuldeep Dwivedi

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