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आपकी खुशियां आपके हाथ में ही हैं….ज़रा ढूंढिए

खुशियां

खुशियां यानी की एक ऐसी चीज़, जिसे हम सभी पाना चाहते हैं जिसके पीछे हम सभी भागते रहते हैं लेकिन असल में हम जान नहीं पाते कि आखिर हमें ये खुशी मिलेगी कहां?

आखिर हमारी खुशियां है किसमें?

बेशक खुशियों की चाहत और खुशियों की खोज में हम अपनी पूरी ज़िदंगी निकाल देते हैं लेकिन ना तो खुशियों का असली फलसफा समझ पाते हैं और ना ही किस रास्ते पर चलकर हमें खुशियों की मंज़िल मिलेगी, हम ये जान पाते हैं और इसलिए इस उधेड़बुन में हम खुद ही हमारी खुशियों को खुद से दूर कर देते हैं।

खुशियां

हम अक्सर अपनी खुशी किसी काम में या फिर किसी इंसान में तलाशते हैं, हमें लगता है कि ये काम हो जाएगा तो हमें ढ़ेर सारी खुशियां मिल जाएगी या फिर अगर वो इंसान हमारे करीब रहेगा तो हमारी खुशियां कम ही नहीं हो सकती, वैसे ये बात भी ग़लत नहीं है। हमारी खुशियां हम जिन लोगों या जिन कामों से जुड़े होते हैं उन पर भी निर्भर करती हैं लेकिन हमारी खुशियां असल में हम पर निर्भर करती हैं, हमसे जुड़ी होती हैं और इनका ख्याल भी हमारी ही ज़िम्मेदारी होती है।

खुशियां

कईं बार हम ज़िदंगी की भागदौड़ में इस कदर उलझ जाते हैं कि जो चीज़ें, जो बातें, जो लोग हमें असल में खुशी देते हैं हम उन्ही से मुंह मोड़ लेते हैं या उन्ही को खुद से दूर कर देते हैं। हम अपनी ज़िदंगी में कईं लक्ष्य निर्धारित कर लेते हैं, बड़े-बड़े सपने देख लेते हैं लेकिन ये भूल जाते हैं कि छोटी सी एक बात भी हमारे चेहरे की मुस्कुहारट का सबब बन सकती है।

खुशियां

ये ज़िदंगी है, इसमें लोग जुड़ते भी हैं और पीछे भी छूट जाते हैं, अपने भी अजनबी बन जाते हैं और अजनबी भी अपनों से खास हो जाते हैं, एक वक्त पर जो चीज़, जो बात या जो इंसान हमारे जीने की वजह रहा होता है अचानक से हमे ऐसा लगता है मानो उसकी मौजूदगी हमारे लिए ज़रूरी ही नहीं, जिस चीज़ को पाने के लिए हमने एक लंबे वक्त तक स्ट्रगल किया होता है उसके मिलने पर भी शायद वो खुशी नहीं मिल पाती जिसकी हम उम्मीद कर रहे हैं।

खुशियां

कभी हमारे आज में हमारे पास बेशुमार खुशियां होती हैं लेकिन अपने बीते हुए कल की परेशानियों को सोच कर हम परेशान रहते हैं तो वहीं कईं बार अपने आने वाले कल की चिंताएं हमे खुश नहीं रहने देती लेकिन यहां एक बार फिर हम ये समझने में चूक कर देते हैं कि हमारी खुशी हमारे आज में है।

खुशियां

कुल मिलाकर, हम अपनी खुशी में जितने बंधनों, दायरों और कायदों में बांध कर रखते हैं वो उतनी ही बेपरवाह, आज़ाद और अल्हड़ है, कईं बार एक छोटे से लम्हे में मिल जाती है तो कईं बार ज़िदंगी को भी अपने आगे कम साबित कर देती है।

खुशियां

ये खुशी जिसको हम पूरी दुनिया में तलाशते रहते हैं असल में हमारी खुशियां हम में ही है, बस हमें उसे ढूंढने की ज़रूरत है और एक बार जब हम उसे ढूंढ लेंगे तो फिर उसे खोने नहीं देंगे।