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पति को युद्धभूमि में निशानी के तौर पर अपना सिर काट कर भेज दिया था इस रानी ने

हाड़ी रानी

हाड़ी रानी की वीरता – राजस्थान का नाम सुनते ही दिमाग में एक तस्वीर उभर कर आती है.

उस तस्वीर में होते हैं, रेगिस्तान की मिट्टी के टीले, पहाड़ जैसे नज़र आते महल और किले, कानों में गूंजता मधुर संगीत, हर तरफ़ फैले चटक सांस्कृतिक रंग और दुश्मन को ललकारती वीर योद्धाओं की नंगी तलवारें. मरुधरा का पूरा इतिहास शौर्य गाथाओं से भरा पड़ा है. अपनी जुबान के लिए अपनी जान तक दाव पर लगाने वाली इस पावन धरा को इसके बेटों ने ही नहीं बल्कि इसकी बेटियों ने भी अपने खून से सींचा है.

इतिहास के अनगिनत पन्नों में छिपी सैकड़ों गाथाओं में एक गाथा है, हाड़ी रानी की. वो रानी जिसने अपने पति को उसका कर्तव्यबोध याद दिलाने के लिए अपना शीश काट कर भेंट कर दिया.

हाड़ी रानी और उनका विवाह

बूंदी रियासत के हाड़ा सरदार की बेटी थी हाड़ी रानी. हाड़ी रानी का विवाह मेवाड़ के सलूम्बर ठिकाने के रावल रतन सिंह चूंडावत से हुआ था.

हाड़ी रानी

विवाह के चंद रोज बाद ही युद्धभूमि से आया पैगाम-

रतन सिंह और हाड़ी रानी शादी के बाद नए जीवन के सपने बुनने में लगे हुए थे. दोनों ही जीवन के उन ख़ुशनुमा पलों को हमेशा चलते हुए देखना चाहते थे. इतने में ही चंद रोज बाद एक सिपाही रतन सिंह के पास मेवाड़ के राणा राजसिंह का ख़त लेकर आया. उस ख़त में राजसिंह ने मेवाड़ की तरफ़ बढ़ती हुई औरंगजेब की सेना को बीच मार्ग में रोक देने का कार्य रतन सिंह को सौंपा था.

ख़त पाते ही रणभूमि की तरफ़ बढ़ चले रावल के कदम

ख़त पाकर रतन सिंह केसरिया लिबाज़ पहने रानी से विदाई लेने उनके पास गए. रानी के हाथ की अभी मेहंदी भी नहीं उतरी थी और ऐसे में अपने पति को रणभूमि में जाते देख वो कुछ पलों के लिए रुक सी गई. मगर कुछ ही पलों बाद क्षत्राणी को अपने कर्तव्य का आभास हुआ और वो दौड़ी-दौड़ी जाकर अंदर से पूजा का थाल सजा कर लाई. भीगी पलकों से ठाकुर सा को तिलक लगाते हुए रानी ने कहा कि आपका और हमारा साथ तो जन्म-जन्मांतर का है. वीर सुपुत्रों को एक क्षत्राणी इसी दिन के लिए पाल पोस कर बड़ा करती है कि एक दिन वो माटी की लाज़ बचाने के काम आए. मुझे पूरा विश्वास है आप युद्ध के क्षेत्र में डट कर लोहा लेंगे. मेरा स्नेह और समर्पण सदैव आपकी रक्षा करेगा.

इन शब्दों को अपने ज़हन में लेकर रतन सिंह लड़ाई के मैदान की और बढ़ चले.

युद्ध के मैदान में भी रावल का मन अटका हुआ था रानी की याद में

युद्ध के मैदान में पहुंचने के बाद दुश्मन से लड़ते हुए भी रावल रतन सिंह के दिमाग में रह-रह कर रानी का चेहरा सामने आ जा रहा था. उन्हें लग रहा था कहीं रानी मुझे भूल न जाये. जब बार-बार कोशिश करने के बावजूद भी रतन सिंह इस ख़्याल को दिमाग से न हटा पाए तो उन्होंने एक विश्वासपात्र सैनिक को रानी के पास यह संदेशा देकर भेजा कि तुम मुझे भूलना मत, मैं लौट कर आऊंगा.

रतन सिंह ने सैनिक से रानी की उनकी कोई प्रिय निशानी भी लेकर आने को कहा.

सैनिक का पैगाम पाकर रानी ने उठाया यह साहसी कदम

हाड़ी रानी सैनिक का पैगाम पा कर हैरानी में पड़ गई. वह सोचने लगी कि अगर वो मेरी याद में यूं ही खोए रहे तो युद्धभूमि में लड़ कैसे पाएंगे. यह तो मातृभूमि की रक्षा के फ़र्ज़ में बेईमानी होगी. उन्होंने इतना सोच कर सैनिक से कहा- मैं तुम्हें अपनी सबसे प्रिय वस्तु दे रही हूं, इसे थाल में सजा कर चुनर से ढक कर ले कर जाना. साथ ही मेरा ये ख़त भी स्वामी तक पहुंचा देना.’

यह कह कर रानी ने तलवार उठा कर अपना सिर धड़ से अलग कर दिया. सैनिक अवाक खड़ा बस देखता रह गया. कृतव्य अनुसार सैनिक ने सिर उठा कर थाल में सजाया और रणभूमि की तरफ बढ़ चला.

हाड़ी रानी

रानी का जवाबी ख़त पाकर चौंक पड़े रतन सिंह

रानी ने जवाबी ख़त में लिखा, ‘हे स्वामी, मैं तुम्हें अपनी अंतिम और प्रिय निशानी भेज रही हूं. तुम्हारे सभी बंधनों को दूर कर रही हूं. अब तुम आज़ाद होकर अपने कर्तव्य का पालन करो. तुम्हारी…हमारी मुलाकात अब स्वर्ग में होगी.’

हाड़ी रानी

रानी का बलिदान देख कर दुश्मनों पर कहर बन के टूट पड़ा रतन सिंह-

कृतव्य बोध कराने के लिए रानी द्वारा दिये गए बलिदान को देख कर रतन सिंह शत्रु पर टूट पड़ा. बहादुरी और जोश-खरोश के दम पर अपनी जान की बाज़ी रावल ने रणभूमि में लगा डाली. औरंगजेब की सेना को हार कर पीछे हटना पड़ा.

इतिहास के जानकार उस जीत का श्रेय रानी द्वारा किये गए बलिदान को देते हैं. मेवाड़ के लोकगीतों में हाड़ी रानी के लिए कहा जाता है…

‘ चूंडावत मांगी सैनाणी,

सिर काट दे दियो क्षत्राणी.’

वर्तमान समय में राजस्थान पुलिस ने हाड़ी रानी की वीरता को नमन करते हुए अपनी एक महिला बटालियन का नाम ‘हाड़ी रानी बटालियन’ रखा हुआ है. हाड़ी रानी जैसी वीरांगनाएँ हमें यह संदेश देती है कि निजी स्वार्थ में आकर कभी भी अपनी मातृभूमि की रक्षा से पीछे नहीं हटना चाहिए.

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इतिहास