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भारत का एक ऐसा शहीद सैनिक, जो आज भी सरहद पर करता है ड्यूटी

बाबा हरभजन सिंह

अगर आज हम अपने घरों में चैन से सो रहे हैं तो उसकी वजह हैं हमारे सैनिक, जो सरहद पर रात-दिन पहरा देते रहते हैं.

वे हमारी और हमारे देश की रक्षा में 24 घंटे तत्पर हैं. वह अपने देश के लिये जान लेते भी हैं और जान देते भी हैं. उनके लिये सबसे पहले उनकी मां भारत माता हैं. ऐसे में कई बार मां के लिये जवान शहीद भी हो जाते हैं. लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि शहादत के बाद भी कोई सैनिक देश सेवा में डटा रहा हो और मरने के बाद भी अपनी मातृभूमि पर आंच तक नहीं आने दी हो शायद नहीं.

शहीद सैनिक करता है देश की सेवा

जी हां, यह बात सच है आज हम आपको एक ऐसे जवान की कहानी बताने जा रहे हैं, जिसने शहादत के बाद भी अपने देश की रक्षा का बीड़ा उठा रखा है.

इस शहीद सैनिक की पदोन्नति भी होती है. इस भारतीय सैनिक का नाम है ‘बाबा हरभजन सिंह’, जिनकी आत्मा हमेशा भारतीय सेना को चीन की तरफ से होने वाली गतिविधियों के बारे में सपने में आकर आगाह कर देती है. जिसकी वजह से भारतीय सैनिकों को चीन द्वारा किए जाने वाले मोमेंट के बारे में पहले से ही पता चल जाता है और भारतीय सैनिक चीनी सैनिकों के साथ मिलकर कोई न कोई हल जरूर निकाल लेते हैं, जिसकी वजह से दोनों सरहदों पर शांति कायम रहती है. आपको बता दें कि भारतीय सैनिक ही नहीं बल्कि चीनी सैनिक भी बाबा हरभजन सिंह पर विश्वास करते हैं. क्योंकि उन्होंने घोड़े पर सवार होकर रात में बाबा के गश्त लगाने की पुष्टि की है. इसलिये हर बार भारत और चीन के बीच होने वाले ‘फ्लैग मीटिंग’ में हरभजन सिंह के नाम की एक खाली कुर्सी लगाई जाती है ताकि बाबा वहां बैठकर मीटिंग अटैंड कर सकें.

बाबा हरभजन सिंह

तो चलिए आपको बताते हैं बाबा हरभजन सिंह के बारे में…

बाबा हरभजन सिंह की 1968 में हो गई थी मृत्यु

30 अगस्त 1946 को जन्मे बाबा हरभजन सिंह का जन्म गुजरावाला में हुआ था.  9 फरवरी 1966 को भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट में सिपाही पद पर नियुक्त हुए थे. मात्र 2 साल बाद यानि 1968 में वह 23वें पंजाब रेजिमेंट के साथ पूर्वी सिक्किम में सेवारत थे. 4 अक्टूबर 1968 को खच्चरों का काफिला ले जाते वक्त पूर्वी सिक्किम के नाथू ला दर्रे के पास उनका पैर फिसल गया और घाटी में गिरने से उनकी मृत्यु हो गई. पानी का तेज बहाव होने के कारण उनका शव सेना को नहीं मिल पा रहा था, लगभग 3 दिन तक तलाश करने के बाद भी उनका शव नहीं मिला.

फिर एक दिन उन्होंने अपने साथी सैनिक के सपने में आकर अपने शव के बारे में जानकारी दी. खोजबीन करने पर तीन दिन बाद भारतीय सेना को बाबा हरभजन सिंह का पार्थिव शरीर उसी जगह मिला जहां पर बाबा हरभजन सिंह ने बताया था.

नाथू ला दर्रे के पास बना है बाबा हरभजन सिंह का मंदिर

हरभजन सिंह का शव मिलने के बाद उनका अंतिम संस्कार पूरे राजकीय सम्मान के साथ किया गया.

माना जाता है कि बाबा हरभजन सिंह ने एक बार फिर अपने साथी सैनिक के सपने में आकर उनकी समाधि बनाई जाने की इच्छा जाहिर की. बाबा की बात मानते हुए सेना ने उनकी एक समाधि भी बनवाई. समाधि के साथ-साथ बाबा हरभजन सिंह (Baba Harbhajan Singh) की एक फोटो और उनका सामान रखा गया. बाबा हरभजन सिंह को नाथू ला का हीरो भी कहा जाता है. यह मंदिर ‘जेलेप्लाथ दर्रे और नाथू ला दर्रे’ के बीच में 13000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है.

बाबा हरभजन सिंह

इस मंदिर को बाबा हरभजन सिंह मंदिर कहा जाने लगा है. यहां हर साल हजारों श्रद्धालु आकर बाबा के दर्शन करते हैं. उनकी समाधि के बारे में मान्यता है कि यहाँ पानी की बोतल को 3 दिन रखने पर उसमें चमत्कारिक गुण आ जाते हैं और इसका 21 दिन सेवन करने से श्रद्धालु अपने रोगों से छुटकारा पा जाते हैं. इस दौरान मांसाहार और शराब का सेवन निषेध होता है.

सीमा पर घोड़े से रात में करते हैं गश्त

गौरतलब है कि बाबा की मृत्यु को 48 साल हो चुके हैं लेकिन वह आज दिन तक अपनी ड्यूटी पर रहते हैं. बाबा के मंदिर में बाबा के जूते,वर्दी और बाकी सामान वैसे ही रखे गये हैं. भारतीय सेना में जब किसी नये सैनिक की भर्ती होती है तो वह इस मंदिर में आकर माथा टेकता है. बाबा के मंदिर की पहरेदारी भारतीय जवान ही करते हैं. और रोजाना उनके जूते में पॉलिश करते हैं, उनकी वर्दी साफ करते हैं, और उनका बिस्तर भी लगाते हैं. लेकिन उनके साफ किए हुए जूतों पर कीचड़ लगी होती है और उनके बिस्तर पर सिलवटें देखी जाती हैं, जो उन्हें बाबा हरभजन सिंह के होने का एहसास दिलाती है.

आज भी मिली है तनख्याह और होती है पदोन्नति

सारे भारतीय सैनिकों की तरह बाबा हरभजन को भी हर महीने तनख्वाह दी जाती है. सेना के पेरोल में आज भी बाबा का नाम लिखा हुआ है. सेना के नियमों के अनुसार ही उनका प्रमोशन भी होता है इसलिये बाबा हरभजन सिंह सिपाही से कैप्टन के पद पर आ चुके हैं.

हर साल बाबा को 15 सितंबर से 15 नवंबर तक दो महीने की छुट्टी पर रहते थे और बड़ी श्रद्धा के साथ स्थानीय लोग और सैनिक एक जुलुस के रूप में उनकी वर्दी, टोपी, जूते और साल भर का वेतन दो सैनिकों के साथ, सैनिक गाड़ी में नाथुला से न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन तक ले जाते थे. वहाँ से डिब्रूगढ़ अमृतसर एक्सप्रेस से उन्हें जालंधर (पंजाब) लाया जाता था. ट्रेन में बाबा हरभजन सिंह के नाम का टिकट भी बुक कराया जाता था. स्टेशन से सेना की गाड़ी उन्हें उनके गाँव तक छोडऩे जाती थी. वहाँ सेना के जवान बाबा के सामान को उनकी मां के हाथों में सौंप देते थे. फिर छुट्टी पूरी समाप्त होने पर उसी ट्रेन से बाबा को आस्था और सम्मान के साथ उनकी समाधिस्थल पर वापस लाया जाता था. लेकिन कुछ साल पहले इस आस्था को अंधविश्वास कहा जाने लगा, तब से यह यात्रा बंद कर दी गई. अब बाबा हरभजन सिंह 12 महीने छुट्टी पर रहते हैं.

वैसे तो दोस्तों, सेना में किसी भी प्रकार के अंधविश्वास की मनाही है. फिर भी भारतीय सैनिकों का मानना है कि मरने के बाद भी बाबा हरभजन सिंह अपने देश की सेवा में जुटे हुए हैं इस शक्ति की अनुभूति उन्हें हर पल होती है.