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गोलगप्पों के टेस्ट के तो आप दीवाने होंगे लेकिन जानते हैं कि ये बिहार से कैसे जुड़ा है ?

गोलगप्पा

कहीं गोलगप्पा, कहीं पानीपुरी, कहीं बताशा , कहीं फुल्की तो कहीं इसे पुचका के नाम से पुकारा जाता है लेकिन एक बात जो कॉमन है वो ये है कि इसका नाम सुनते ही सभी के मुंह में पानी आ जाता है।

आपका भी फेवरेट होगा ना ये, वैसे हमें उम्मीद है कि आपका जवाब हां ही है।

गोलगप्पा

इसके स्वाद के तो लगभग सभी दीवाने हैं और देश के अलग-अलग हिस्सों में इसे अलग नामों के साथ बड़े ही स्वाद के साथ खाया जाता है। अलग जगहों के हिसाब से इसके टेस्ट में भी हल्का-फुल्का बदलाव ज़रूर आता है लेकिन आटे या सूजे की पूरी के साथ चटनी, आलू या चने की स्टफिंग और इमली पुदीने का पानी, ये मज़ा अपने आप में एक सा ही है।

वैसे इसका टेस्ट तो आपको पसंद होगा और अक्सर ही दोस्तों के साथ आप इसका लुत्फ भी उठाते होंगे लेकिन क्या आप इसके इतिहास के बारे में जानते हैं ? अगर नहीं जानते हैं तो बिना देर किए झटपट इस आर्टिकल को पढ़िए और जानिए कि किस प्रकार आपका पसंदीदा गोलगप्पा बिहार और महाभारत से जुड़ा है।

गोलगप्पा

अगर इतिहास के पन्नों को पलटेंगे तो पानीपुरी का इतिहास आपको महाभारत काल से जुड़ा हुआ मिलेगा, दरअसल, किवदन्तियों में ये प्रचलित है कि जब द्रौपदी पांडवों की पत्नी बन, हस्तिनापुर आईं थी तब कुंती ने उनकी पाक कला और मुश्किल परिस्थितियों में एक गृहणी के तौर पर किस तरह घर-परिवार संभाल पाएंगी और परिवार के लोगों के लिए अन्नपूर्णा बन पाएंगी, इस बात की परीक्षा लेने के लिए कुंती ने द्रौपदी से कुछ विशेष पकवान बनाने के लिए कहा, जिसके लिए उन्होने, द्रौपदी को बचे हुए आलू की सब्ज़ी और बहुत ही थोड़ा आटा दिया, जिससे बमुश्किल एक पूरी ही बनाई जा सकती थी। उन्होने द्रौपदी से कुछ ऐसा बनाने को कहा जिससे की पांचों पांडव संतुष्ट हो जाए और तब अपनी पाक कला और ज्ञान का इस्तेमाल कर द्रौपदी ने गोलगप्पा बनाया, इस बात से प्रसन्न हो, कुंती ने उन्हे अमरता का वरदान दे दिया। इस तरह गोलगप्पे के बनने की कथा महाभारत से जुड़ी है।

गोलगप्पा

इसके अलावा गोलगप्पा से एक और कहानी जुड़ी हुई है जो बिहार से इसका रिश्ता बताती है। जी हां, देश के भिन्न-भिन्न प्रान्तों में चाव से खाए जाने वाले गोलगप्पे का बिहार से गहरा ताल्लुक है। ग्रीक इतिहासकारों की एक किताब में इस बात का ज़िक्र है कि पानीपुरी जिसे पहले फुल्की कहा जाता था इसे सबसे पहले मगध साम्राज्य में बनाया जाता था, जिस जगह का ज़िक्र इस किताब में है आज वो बिहार में मौजूद है।

गोलगप्पा

तो अगली बार गोलगप्पा / पानीपूरी खाते वक्त अगर आपसे कोई इसका इतिहास पूछे तो बिहार से जुड़ी ये कहानी बताना बिल्कुल मत भूलना और हां, साथ ही द्रौपदी को धन्यवाद भी कहना, आखिर उन्ही की वजह से तो आज हम सब इस लज़ीज डिश का लुत्फ उठा पा रहे हैं। वैसे, अगर ये स्टोरी पढ़कर आपका मन भी पानीपूरी खाने का हो गया है तो खुद को रोकिए मत और इसका लुत्फ उठाइए।