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धर्म के लिए किया गया गलत काम भी हो जाता है सही

धर्म के लिए

धर्म के लिए – सत्‍य वही है जो हम मानते हैं और इस संसार में झूठ इंसान की बनाई हुई ही एक रचना है।

हमारे विश्‍वास के आधार पर ही सत्‍य टिका होता है। हम जो देखते हैं, सुनते हैं और जिस पर यकीन करते हैं वही सत्‍य है और जो दिखता नहीं है वो मिथ्‍या यानि की झूठ बन जाता है।

कहते हैं कि कुछ काम ऐसे होते हैं जिन्‍हें करना गलत माना जाता है लेकिन इन कामों को करन से अगर किसी का भला होता है तो ऐसे काम करने में कोई गलती नहीं है। इस संबंध में रामायण में भी उल्‍लेख मिलता है।

जी हां, इस कथन के अनुसार गलत कार्यों की श्रेणी में रखे गए कुछ विशेष कार्यों से अगर किसी की भलाई होती है तो उसे गलत नहीं माना जाता है।

आइए जान लेते हैं धर्म के लिए इस कथन के पीछे छिपा सार।

धर्म के लिए

बाली का वध

राजा बाली ने जब अपने भाई सुग्रीव को राज्‍य से बाहर निकालकर उसकी पत्‍नी तक को हथिया लिया था तो सुग्रीव की सहायता हेतु श्रीराम ने बाली का वध किया था। प्राण त्‍यागते समय बाली ने श्रीराम से कहा था कि आपने धरती पर धर्म की रक्षा के लिए जन्‍म लिया है तो फिर एक शिकारी तरह छिपकर मेरा वध क्‍योंकिया, जबकि मेरी तो आपसे कोई शत्रुता भी नहीं थी।

बाली के इस प्रश्‍न के उत्तर पर श्रीराम ने कहा था जो व्‍यक्‍ति अपने भाई की पत्‍नी, पुत्र की पत्‍नी या बेटी या बहन पर बुरी नज़र डालता है उसे मारने में कोई पाप नहीं है।

इस घटना का वर्णन रामायण में किष्किंधा कांड में किया गया है। बाली ने सुग्रीव को राज्‍य से निकाल कर उसकी पत्‍नी को छीन लिया था और इसी गलत काम के लिए भगवान को बाली पर क्रोध था कि वोस्‍त्री का सम्‍मान नहीं करता। ऐसे व्‍यक्‍ति को सामने से मारने या छिपकर मारने में कोई अंतर नहीं है।

धर्म के लिए

बाली के अपराध कि लिए भगवान राम ने उन्‍हें दंड दिया और जब बाली की मृत्‍यु होने वाली थी तब श्रीराम ने उसे उसकी गलती का आभास करवाया और कहा कि तुम्‍हे तुम्‍हारे अपराध के लिए मैंने दंड दिया है ना कि किसी शत्रुता के कारण। जैसी गलती तुमने की है वो क्षमा के लायक नहीं है।

अंत में श्रीराम ने कहा कि धर्म के लिए, धर्म की रक्षा के लिए अगर कोई गलत काम या गलत रास्‍ता अपनाया जाए तो वो भी सही हो जाता है और उसे करने वाले व्‍यक्‍ति को पाप का भागी नहीं समझा जाता है।

ये तो वही बात हो गई कि अगर धर्म के लिए, किसी की भलाई के लिए झूठ बोला जाए तो वो झूठ नहीं कहलाता है बल्कि सत्‍य से भी ऊपर हो जाता है। सत्‍य कड़वा होता है और इससे दिल को इेस ही पहुंचती है लेकिन अगर आपके झूठ से किसी की जान बच जाए या किसी बेसहारा को मदद मिले तो इससे आपको झूठ का पाप झेलना नहीं पड़ता है।

स्‍वयं रामायण में भी इस तरह की बातों का वर्णन किया गया है। लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि धर्म के लिए आप हर बात पर झूठ का सहारा लें और उसे दूसरों की भलाई का अंगोछा पहना दें।