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जिंदगी में डर की हो नो इंट्री !

डर के आगे

डर के आगे – खुशियां चीज़ों में नहीं, जीवन की उपलब्धियों में छिपी होती हैं.

रोमांच में होती हैं. हमारी जिंदगियों में प्रायः ऐसे पल आते हैं जब हमारे एक राह पर चलते-चलते हमें सबकुछ रुका सा लगने लगता है. फिर जिंदगियों के रंग अक्सर ब्लैक और व्हाइट में सिमटे से लगते हैं. हम अपनी जिंदगियों में बदलाव चाहते तो हैं पर खुदको बदलने से डरते हैं. हम किसी बाहरी बदलाव के इंतज़ार में बैठ जाते हैं. हमारे पास चाहे अच्छी नौकरी हो या घर या कैसी भी सुख-सुविधाएं क्यों न हो फिर भी खुशियां हमारी जिंदगियों से गायब रहतीं हैं.

आप चाहें छात्र हों, नौकरी पेशा हों या मार्केटिंग प्रोफेशनल आप किसी नई सोच के बिना जिंदगी में रोमांच नहीं ला पाएंगे.

डर के आगे

जोखिम लिए बिना कोई बदलाव नहीं आ सकता. अपने हर सपने को कल पर थोप देने से हमारी जिंदगियों के बेशकीमती साल ऐसे ही बेमतलब होकर गुज़र जाते हैं. आज दुनियाभर के न्यूरो विज्ञानी सिद्ध कर चुके हैं कि हमारे भीतर इतना ज्ञान का भण्डार है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते. हम पहाड़ चीर सकते हैं, समुद्र लांघ सकते हैं और आकाश भेद सकते हैं. लेकिन ये सारी ताकत डर के कच्चे स्वरुप के कारण नष्ट भी हो सकती है. दरअसल हमारा मन नकारात्मक बातों को जल्दी पकड़ता है. बेमतलब की डरावनी और भयावह स्थितियों की कल्पनाएं करता है.

दिलचस्प बात ये भी है कि हमारा सारा साहस, जज़्बा और जुनून भी डर के आगे नतमस्तक हो जाता है. गौरतलब है कि डर का कोई अस्तित्व ही नहीं होता. ये बस एक मानसिक अवस्था होती है और कुछ नहीं. एक बार अगर कोई अपने डर के आगे खड़ा भी हो जाए तो डर फिर कभी मुड़कर नहीं देखता. हम डर से इतना खौफ खाते हैं कि हम डर की चर्चा भी नहीं करते. बल्कि अमूमन हम उसे छुपाने के नए-नए बहाने बनाते रहते हैं.

डर के आगे

इसी बहाने बाज़ी में हम सारी उम्र खुद को ही नहीं जान पाते. हमारे अंदर क्या छुपा है, इसे भी पहचान नहीं पाते.

देखा जाए तो जब हम अपने कम्फर्ट ज़ोन से बाहर आते हैं तभी हम खुद को खोज पाते हैं.

कम्फर्ट ज़ोन में रहते हुए हम कभी विकास नहीं कर सकते. जितना हम खुद से बाहर आते हैं, हमारा दायरा उसी अनुपात में बढ़ता भी जाता है. अपनी जिंदगी में जोखिम उठाने से हमारा आत्मविश्वास बढ़ता है. यही आत्मविश्वास आगे चलकर हमारे सपनों को पूरा करने की ऊर्जा को शक्ति में बदलता है. तब फिर हमारे मन में उठने वाली सारी डरावनी आवाज़ें शांत हो जातीं हैं.

डर के आगे

परीक्षा के समय बच्चों को एक ही डर होता है, फेल होने का. लेकिन हमें ये याद रखना चाहिए विफलता ही सफलता की कुंजी है. ये आपको एक अनुभव देकर जाती है. इसलिए अगर आपको जिंदगी में सफल होना है तो सब्र करना सीखिए और लगातार कोशिश करते रहना चाहिए. इतिहास इस बात का गवाह है कि ऐसी कई बड़ी हस्तियां हुईं हैं जो कई बार विफल होकर भी सफलता की नई ऊचाईयों पर पहुंचीं हैं. तो एक कदम आप भी आगे बढ़ाईए और डर के आगे खड़े रहिये और अपने डर पे जीत हासिल करिए क्योंकि आखिर में जिंदगी भी उन्हीं के नाम की होती है जो अपने साहस से हर मुश्किल को जीत लेने का माद्दा रखते हैं.