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ये रहा फ़ैजाबाद से लेकर अयोध्या तक का इतिहास !

फ़ैजाबाद

फ़ैजाबाद – भारत जैसे देश में विकास के कई पैमाने और बिंदु हो सकते हैं।

लेकिन अभी कुछ समय से एक नई लहर चली है जिसके सामने भौतिक विकास, अवसंरचना विकास जैसे मुद्दे गौण होते प्रतीत हो रहे हैं, आजकल इन्ही मुद्दों में से एक है “नाम बदलो अभियान”

खैर जैसा हम जानते हैं भारत जैसे देश में राजनीती के नए पहलू सामने आते रहते हैं, ख़ास तौर पर भारतीय जनता पार्टी द्वारा धर्म के मुद्दे उठाये जाते रहे हैं लेकिन आजकल ऐसे मुद्दे पुराने पड़ जाने के कारण एक नया मुद्दा सामने है “नाम बदलो अभियान” और इसमें दिलचस्प तथ्य यह है कि इस अभियान से जनता भी खुश है अतः अगर व्यापक रूप से सरल शब्दों में कहें तो यही इस नए मुद्दे की सफलता भी है।लेकिन हमें समझना चाहिए नाम बदलने जैसे मुद्दों की जगह अगर शहर के हालात बदलने पर ध्यान केन्द्रित किया जाये तो सारी समस्या खुद वा खुद सोल्व हो जाए।

फ़ैजाबाद

खैर ख़ुशी कहें या गम लेकिन पहले इलाहाबाद का नाम प्रयागराज हुआ और अब फ़ैजाबाद बना अयोध्या।

इसी के साथ आज हम शेयर करने जा रहे हैं फ़ैजाबाद के फ़ैजाबाद से अयोध्या बनने तक के सफ़र की कहानी।

फ़ैजाबाद जनपद सरयू नदी के किनारे का एक नगर है जिसकी स्थापना का श्रेय बंगाल के नवाब सआदत अली खान को जाता है। शुरुआत में यह नगर व्यापार का केंद्र और राजाओं के मुख्य पसंदीदा नगरों में शुमार होने के कारण अति सम्रद्ध नगर की सूची में आता था साथ ही सुजौद्दलुआ ने यहाँ एक किले का निर्माण भी करवाया  किन्तु तत्पश्चात धीरे-धीरे शासकों का रुझान इस शहर से हटता और इसका परिणाम यह हुआ कि फ़ैजाबाद में स्थित अवध की राजधानीको लखनऊ स्थानांतरित कर दिया गयातत्पश्चात कालांतर में फैजाबाद जैसे रंगीन शहर की रंगीनी को ग्रहण लग गयाl

इसके साथ अगर पौराणिक रूप से बात करें तो कहा जाता है श्री राम की खडाऊं ले कर भरत ने अपने वनवास के 14 साल यही विताए थे जिस कारण रामायण की कथा से सीधे रूप से जुड़े होने के कारण इस नगर का महत्व कई गुना बढ़ जाता है।

फ़ैजाबाद

किन्तु हमें शुक्रिया कहना चाहिए माननीय मुख्यमंत्री श्री योगी आदित्यनाथ का जिन्होंने अपने नाम बदलो अभियान का हिस्सा फ़ैजाबाद को बनायाऔर एक फिर से इस बेरंग हो चुके शहर में सुर्ख़ियों के रंग भर दिए और रंग भी ऐसे भरे जो पूरी तरह परमानेंट है।

आज फ़ैजाबाद जैसा शहर रेल, बस और हवाई संपर्क के माध्यम से पूरी दुनिया की पहुँच में है लेकिन आज के इस लेख के बाद सोचने का सबसे जरूरी मुद्दा यह है कि आखिर क्यों भारतीय राजनीतिज्ञों द्वारा भारत के संविधान में वर्णित “पंथ निरपेक्ष, धर्म निरपेक्ष” जैसे शब्दों की प्रासंगिकता को अप्रासंगिक किया जाता रहा है।जवाहर लाल नेहरु ने जिस धर्म निरपेक्ष की भावना को हिन्दुस्तान की एकता के लिए जरूरी माना ऐसे में धर्म के मुद्दे उठाये जाना निश्चित ही भारतीय लोगों के मन में अब अलगाव के भाव पैदा कर सकता है इसलिए आवश्यकता है कि प्रशासन की शक्ति को विकास में खर्च किया जाए ताकि देश का भला हो और उसकी प्रजा का कल्याण।

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