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कभी लोगों को खाने का डिब्बा देता था आज बना बेहतरीन डॉक्टर

सुहास सोनवाने

सुहास सोनवाने – हौसला है तो उड़ान भी भर लेंगे.

हौसला है तो कमज़ोर पंख भी हमें लम्बी उड़ान भरा सकते हैं. बस एक हौसला और कड़ी मेहनत ही तो है जो सबको कहाँ से कहाँ पहुंचा देती है. है अगर आप में दम तो बस, जम जाइए अपने सपने को पूरा करने में.

फिर देखिए दुनिया की कोई भी ताकत आपको रोक नहीं सकेगी.

इसी जोश और जज्बे ने तो बड़े से बड़ा काम किया. मामूली सी रस्सी भी पत्थर को काट देती है.

भले ही वक्त लगता है, लेकिन पत्थर तो कट ही जाता है. ठीक उसी तरह अगर लगातार मेहनत कर रहे हैं तो सफलता ज़रूर मिलेगी. ऐसी ही सफलता है एक ऐसे इंसान की जो कभी डब्बा पहुँचाया करता था. ये कहानी है मुंबई के सुहास सोनवाने. आपको प्रेरित करने के लिए ये कहानी काफी है.

मुंबई के सुहास सोनवाने किसी अमीर बाप के बेटे नहीं हैं. बल्कि उनके पिता तो छोटा मोटा व्यवसाय करते थे. मुंबई के सुहास सोनवाने कहते हैं, ” बहुत पहले की बात है. मैं उनके हॉस्टल के कमरों में टिफिन रख रहा होता और वे आपस में बातें कर रहे होते, बीमारियों की, इलाज की. उनके सफेद कोट और आवाजें मेरे जहन में देर तक तैरती रहतीं. मैं उन चेहरों को गौर से देखता. उनकी बातें सुनता. हाईस्कूल पहुंचते-पहुंचते मैं पक्का कर चुका था कि मुझे डॉक्टर बनना है. एक चाय की दुकान और घर से ही टिफिन सेंटर चलाने वाले के बच्चे के लिए ये सपना थोड़ा बड़ा था लेकिन शुरुआत हो चुकी थी.”

मुंबई के सुहास सोनवाने का सपना मुश्किल ज़रूर था, लेकिन वो हिम्मत नहीं हारें और आज उस सपने को सच कर दिखाया. अपने एक इंटरव्यू में मुंबई के सुहास सोनवाने ने कहा, ” बड़े शहरों के अपने नर्क होते हैं, खासकर उनके लिए जिनकी जेबें हल्की हों. नीची छतें, तंग गलियां, दूरियां, पेट भरने के लिए हर दिन एक जंग लड़नी होती है. मैं भी इससे अलग नहीं था.पापा एक छोटा सा टिफिन सेंटर चलाया करते. मां और हम सब भाई-बहन मिलकर खाना पकाते और टिफिन में भरते. मैं मेडिकल कॉलेज के बच्चों को भी टिफिन पहुंचाता था. धीरे-धीरे मैं डॉक्टरी के उनके टर्म्स समझने लगा.”

मुंबई के सुहास बड़े ही बहादुर निकले. उन्हें डॉक्टर बनने के रास्ते में कई तरह की मुश्किलें आयीं, लेकिन वो डगमगाए नहीं. बस आगे बढ़ते गए. डॉक्टर की पढ़ाई कर रहे उन बच्चों को रोज़ टिफ़िन पहुंचाते हुए सुहास उनसे घुलमिल  गए और आगे की पढ़ाई के बारे में जानने लगे. हालाँकि सुहास को कई तकलीफों का सामना करना पड़ा. बीच में कई मुश्किलें आईं. मेरी गॉलब्लैडर की सर्जरी हुई, जिसके बाद मैं काफी कमजोर हो गया. इसी दौरान मेरी गर्लफ्रेंड मुझसे अलग हो गई. मैं डिप्रेशन में चला गया और सालभर कुछ नहीं किया. ऐसा नहीं है कि सुहास का रास्ता बहुत आसन था.

बड़े शहरों में रहने वालों की लाइफ जितनी सुंदर दिखती है उतनी होती नहीं. दिखावे की जिन्दगी के पीछे लोगों की कड़ी मेहनत छुपी होती है. ये दूसरा नहीं देख पाता. सुहास की लाइफ भी कुछ ऐसी ही थी. सुहास ने कहा, ”कई हेड ऑफ डिपार्टमेंट्स के पास भी टिफिन लेकर जाता और वो मुझसे इस बारे में बातें करते. हाईस्कूल पहुंचते हुए मैं जान गया था कि आगे मुझे क्या करना है. मैं डॉक्टर बनना चाहता था.” सुहास आगे बढे और सफल हुए क्योंकि उन्होंने अपना साथ दिया.

अगर आप भी खुद का साथ दें तो बड़े से बड़ा सपना आपका पूरा हो सकता है.