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मार्शलआर्ट और भगवान् विष्णु में क्या संबंध हैं?

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हम सब ने चीनी और तिब्बती संतो को मार्शलआर्ट के कई बेहतरीन करतब करते तो देखा ही होगा, कभी वह अपने सर से दस ईट की दीवार तोड़ देते हैं, तो कभी वह तलवार की नोक पर लेट जाते हैं और यह सब तभी संभव होता हैं जब मार्शलआर्ट की विद्या में आप निपूर्ण हो जाते हैं.

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भगवान् परशुराम द्वारा शुरू की गयी कलरीपायट्टू नाम की इस विद्या में मनुष्य को शरीर और मन दोनों से मजबूत किया जाता हैं. कलरीपायट्टू की इस विद्या में यह बताया जाता हैं कि यदि आप के पास शस्त्र न भी हो तो भी आप अपने शरीर के इस्तेमाल से आत्मरक्षा कर सकते हैं.

मार्शल आर्ट जिसे पुराने ज़माने में कलरीपायट्टू भी कहा जाता था का मूल उद्देश्य ही आत्मरक्षा करना होता हैं.

परशुराम द्वारा शुरू की गयी इस विद्या को सप्तऋषि अग्तस्य उनके साथ मिलाकर भारत के दक्षिण इलाके में ले गए फिर वहां से बोधीधर्मन ने इसे पुरे एशिया में फैलाया. बौद्ध धर्म को मानने वाले बोधीधर्मन ने चीन जापान जैसे देशों में इसका परिचय करवाया और आज उन देशों  में यह विद्या इतनी महत्वपूर्ण मानी जाने लगी कि उन लोगों ने इसे पूरी तरह अपना लिया और नतीजा यह हुआ कि पूरी दुनिया को यही लगा कि मार्शल आर्ट की यह विद्या चीन से ही आई हैं.

मन और मस्तिष्क को शक्तिशाली बनाने की इस विद्या को आज भी चीन की सओलिन मंदिर में सिखाया जाता हैं.

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