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मार्शलआर्ट और भगवान् विष्णु में क्या संबंध हैं?

बात जब भी मार्शलआर्ट की होती हैं, तो हम सब को ब्रुश ली की ही याद आती हैं.

हमें यही लगता हैं कि मार्शलआर्ट की यह विद्या चीन से ही आई हैं, लेकिन इस विद्या से जुड़ी एक सच्चाई जानकर आप सचमुच अचंभित हो जायेंगे कि मार्शलआर्ट की यह विद्या चीन से नहीं बल्कि भारत की देन हैं.

अगर हिन्दू पुराणों को खंगाला जाये तो इस तथ्य की पुष्टि होती हैं कि मार्शलआर्ट हिन्दू धर्म में भगवान् परशुराम ने  पूरी दुनिया में सबसे पहले इजाद किया था.

मार्शलआर्ट की विद्या के अंदर वैसे तो कई तरह विधाएं होती हैं, लेकिन इसके अंतर्गत आने वाली एक विधा कुंग्फु ही पूरी दुनिया में सबसे अधिक प्रचलित हैं और युवाओं को कुंग्फु में खास रूचि होती हैं. लेकिन यह बात सच हैं कि लोगों के बीच मार्शलआर्ट को लोकप्रिय बनाने का श्रेय यदि किसी को जाता हैं, तो वह ब्रुश ली ही हैं. 60-70 के दशक में हॉलीवुड के सुपरस्टार ब्रुश ली ने अपनी इस कला के दम पर इस विद्या को लोगो तक तो पहुचाया ही साथ ही ब्रुश ली ने इतनी लोकप्रियता हासिल करी कि लोगो को मार्शलआर्ट और ब्रुश ली एकदूसरे के पूरक लगने लगे.

भगवान् परशुराम द्वारा सबसे पहले इस विद्या की खोज की गयी थी. जब परशुराम ने इस कला का अविष्कार किया था तो उस वक़्त इस विद्या को “कलरीपायट्टू” के नाम से जाना जाता था.

यह बात सत्य हैं कि भगवान् परशुराम एक ब्राहमण थे, लेकिन उनके शस्त्रज्ञान के कारण वह हमेशा क्षत्रिय ही कहे जाते थे.

परशुराम ने शस्त्र विद्या में इतनी कुशलता प्राप्त कर ली थी कि पितामह भीष्म, गुरु द्रोण और कर्ण जैसे महारथी भी भगवान् परशुराम को शस्त्र विद्या में अपना गुरु मानते थे. परशुराम के अनुसार शस्त्रविद्या तो आवश्यक थी लेकिन उनके अनुसार मनुष्य को अपने शरीर के अलावा मन से मजबूत होना ज्यादा ज़रूरी हैं और जब हम मन से मजबूत होकर अपनी उर्जा का शारीरिक रूप में इस्तेमाल करते हैं तो शारीरिक रूप से भी हम इतने शक्तिशाली हो जाते हैं कि  उसकी कल्पना करना भी मुश्किल होता हैं.

हम सब ने चीनी और तिब्बती संतो को मार्शलआर्ट के कई बेहतरीन करतब करते तो देखा ही होगा, कभी वह अपने सर से दस ईट की दीवार तोड़ देते हैं, तो कभी वह तलवार की नोक पर लेट जाते हैं और यह सब तभी संभव होता हैं जब मार्शलआर्ट की विद्या में आप निपूर्ण हो जाते हैं.

भगवान् परशुराम द्वारा शुरू की गयी कलरीपायट्टू नाम की इस विद्या में मनुष्य को शरीर और मन दोनों से मजबूत किया जाता हैं. कलरीपायट्टू की इस विद्या में यह बताया जाता हैं कि यदि आप के पास शस्त्र न भी हो तो भी आप अपने शरीर के इस्तेमाल से आत्मरक्षा कर सकते हैं.

मार्शल आर्ट जिसे पुराने ज़माने में कलरीपायट्टू भी कहा जाता था का मूल उद्देश्य ही आत्मरक्षा करना होता हैं.

परशुराम द्वारा शुरू की गयी इस विद्या को सप्तऋषि अग्तस्य उनके साथ मिलाकर भारत के दक्षिण इलाके में ले गए फिर वहां से बोधीधर्मन ने इसे पुरे एशिया में फैलाया. बौद्ध धर्म को मानने वाले बोधीधर्मन ने चीन जापान जैसे देशों में इसका परिचय करवाया और आज उन देशों  में यह विद्या इतनी महत्वपूर्ण मानी जाने लगी कि उन लोगों ने इसे पूरी तरह अपना लिया और नतीजा यह हुआ कि पूरी दुनिया को यही लगा कि मार्शल आर्ट की यह विद्या चीन से ही आई हैं.

मन और मस्तिष्क को शक्तिशाली बनाने की इस विद्या को आज भी चीन की सओलिन मंदिर में सिखाया जाता हैं.

Sagar Shri Gupta

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