ENG | HINDI

अंग्रेजों की जासूस थी भारत की ये राजकुमारी, हिटलर भी कांप उठा था

अंग्रेजों की जासूस

अंग्रेजों की जासूस – बॉलीवुड की कई हीरोइन हॉलीवुड में अपनी जगह बना चुकी है और अब उनमें एक और नाम जुडने जा रहा है, प्रियंका और दीपिका के बाद अब राधिका आप्टे हॉलीवुड में डेब्यू करने जा रही हैं. इस फिल्म में राधिका आपको भारत की सबसे महान जासूर नूर इनायत खान का किरदार निभाती नजर आएंगी.

यह फिल्म ब्रिटिश प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल की जासूसी सेना पर आधारित है जिसमे नूर इनायत का एक मुख्य रोल था. इतिहास का सबसे बड़ा तानाशाह हिटलर तक नूर इनायत से कांपता था और उसकी सेना ने तब तक चैन की सांस नहीं ली जबतक नूर इनायत को मार नहीं दिया.

अंग्रेजों की जासूस टीपू सुलतान की थी वंशज

आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन अंग्रेजों की जासूस नूर इनायत खान मैसूरराजा टीपू सुलतान की वंशज थी. टीपू सुलतान की मौत सन 1799 में ब्रिटिश के हाथों हुई थी.

भारत और ब्रिटिश दोनों ने ही दिया सम्मान

1914 1 जनवरी को मॉस्को शहर में जन्मी नूर इनायत पहले विश्व युद्ध के बाद फ्रांसशिफ्ट हो गई. इसके बाद 1940 में जब फ्रांस ने जर्मनी के आगे घुटने टेक दिए तो नूर को अपना घर गवाना पड़ा और वह अपने परिवार के साथ लंदन आ गई. इसके बाद नूर ने हिटलर से बदला लेने का फैसला किया और विमेन आक्सिलरीएयर फोर्स (WAAF) ज्वाइन कर ली. और यही से नूर के जासूस बनने की शुरुआत हुई.

भारत की ओर था खास झुकाव

अंग्रेजों की जासूस

अंग्रेजों की जासूस नूर भले ही भारत से दूर हो लेकिन फिर भी उसके प्रति अपना प्यार नहीं भुला पाई थी. नूर ने अपनी माँ को खत में लिखा “यदि भारत विश्व युद्ध में अंग्रेजों का साथ देगा तो उन्हें भात को आजादी देनी ही पड़ेगी.”

नूर ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था की पहले वह अंग्रेजों के साथ हिटलर को मात देंगी और उसके बाद भारत को ब्रिटिशर्स से आजादी दिलाने की लड़ाई लडेंगी. ब्रिटिशर्स को नूर की सच्चाई इतनी पसंद आई की उन्होंने उन्हें जासूसी की ट्रेनिंग के लिए नामित कर दिया.

1942 से ही नूर की कडी़ ट्रेनिंग शुरू हो गई थी. जिसके दौरान उन्हें मोर्सकोड और फिजिकल ट्रेनिंग से गुजरना पडा था. नूर की नरमदिली और साफगोई कई बार उनके ट्रेनर को चिंता में डाल देती थी लेकिन तमाम बाधाओं को पार करते हुए अंत में नूर जासूस बन ही गई.

अंग्रेजों की जासूस

नूर की ट्रेनिंग पुरी होते ही उसे हिटलर के कब्जाई देश फ्रांस भेजा गया, जहा उनका बहरूपिया नाम रखा गया. जासूसी दुनिया मेंनूरमेडलिन के नाम से जानी जाने लगी. कई महीनों तक नूर ने हिटलर के सिपाहियों के छक्के छुडाए और कभी पकड़ में नहीं आई.

लेकिन अक्तूबर महीने में अंग्रेजों की जासूस नूर का जसूसी करियर शुरू करवाने वाली फ्रांसीस महिला ने कुछ रुपयों के लिए नूर का भेस नाजियों को बता दिया. इसके नाजियों ने नूर को उसके घर पर ही पकड लिया और कई महीनों तक प्रताडित कर जानकारी उगलवाने की कोशिश की लेकिन नूर ने कभी अपना मुँह नहीं खोला. अंत में हिटलर की सेना ने नूर समेत 3 अन्य ब्रिटिश जासूसों को गोली मार हत्या कर दी.

अंग्रेजों की जासूस नूर का अपने देश के साथ गद्दारी ना करने के साहस को देखते हुए उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा सम्मानित भी किया गया था.