ENG | HINDI

बिकनी के व्यवसाय से इस महिला ने खड़ा किया अपना करोड़ों का साम्राज्य ! ब्रा-पेंटी का काम करने पर कभी नहीं आई, इनको शर्म

जिवामे

कभी रिचा को यह भी बताने में शर्म आती थी कि वह ब्रा-पेंटी का काम करना चाहती है.

घर वालों को बताने से डर लगता था और साथियों को अगर बताया तो वह मजाक बनाते थे. तब रिचा के सामने यह एक बड़ी समस्या थी कि आखिर वह बात किससे करे. तब बड़ी हिम्मत करके, आज ‘जिवामे’ कम्पनी की मालकिन रिचा ने यह आईडिया घर वालों को बताया.

घर वालों ने यह सुनते ही कि वह ब्रा-पैंटी का काम करना चाहती है अजीब सी प्रतिक्रिया दी. रिचा कई बार खुद इस बात को स्वीकार करती हैं कि मेरे पिता समझ ही नहीं पा रहे थे कि आखिर यह किस तरह का काम है.

अपने कई साक्षात्कारों में खुद रिचा भी यह बात मान चुकी हैं कि तब उनकी मां ने कहा था, ‘मैं अपनी सहेलियों से क्या कहूंगी. मेरी बेटी कम्प्यूटर पर ब्रा और पैंटी बेच रही है. लेकिन भारतीय समाज से इससे अलग कोई उम्मीद करना भी सही नहीं होगा. इसके बाद भी रिचा ने हिम्मत नहीं हारी. कहीं ना कहीं रिचा को अपने आईडिया पर पूरा विश्वास था. उन्हें पता था कि ऑनलाइन लेडीज अंडरगारमेंट बेचने वाली उनकी कंपनी भारत में एक नई शुरुआत करने वाली हैं.

क्या है जिवामे ?

जिवामे एक ऑनलाइन शोपिंग स्टोर हैं जहाँ महिलायें अपने अंडरगारमेंट खरीदती हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि यह ऑनलाइन स्टोर महिलाओं को उनके अंडरगारमेंट को लेकर जागरूक भी कर रहा है. भारत के अन्दर आज भी कोई महिलाओं के अंतर्वस्त्रों पर बात करना नहीं चाहता है लेकिन जिवामे ने सारी हदे पार करते हुए, महिलाओं को यहाँ पूरी आजादी दी. उनके लिए क्या सही है और क्या गलत है, यह सब रिचा ने कम्पनी के द्वारा महिलाओं को बताया है.

कैसे आया पैसा ?

पत्रिका मीडिया की एक रिपोर्ट की मानें तो रिचा ने जब जिवामे की शुरुआत 2011 में की थी तो उनके पास महज 35 लाख रुपए थे. इसमें उनकी सेविंग्स और दोस्तों व परिवार से मिली रकम थी. कुछ समय में उनका बिजनेस तेजी से बढ़ा तो वर्ष 2012 में कलारी कैपिटल और आईडीजी वेंचर्स ने जिवामे में बड़े निवेश का एग्रीमेंट किया. इसके बाद कई निवेशकों ने जिवामे में निवेश किया है. इनमें रतन टाटा, यूनीलेजर वेंचर्स, जोडियस टेक्नोलॉजी फंड और खजानाह नेशनल बेरहद भी शामिल हैं.

तोड़ दिए सारे रिकार्ड्स

आज कम्पनी के टर्नओवर की बात की जाये तो यह 270 करोड़ से ऊपर जा चुका है.

जब इस आंकड़े को कोई देखता है तो ऐसे में वह रिचा को गूगल पर जरूर खोजता है. इनकी मेहनत और लगन आज सभी को कुछ नया करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है.

जो लोग काम को छोटा या बड़ा करके देखते हैं उनके लिए भी एक सीख ही है.

काम कभी भी कोई छोटा या बड़ा नहीं होता है और इसी तरह से कुछ भी असंभव नहीं होता है.

रिचा की इस कहानी से हर वो व्यक्ति कुछ सीख सकता है जो अपनी जिन्दगी में कुछ नया करने की सोच रहा है.

Article Categories:
कैरियर