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गुरु पूर्णिमा: गुरु गोविन्द दोहु खड़े काके लागूं पाय

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आषाढ़ मास में आने वाली पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहा जाता हैं.

गुरु पूर्णिमा मनाने के पीछे की मुख्य  वजह हैं “गुरु व्यास” जिन्हें वेदव्यास के नाम से भी जाना जाता हैं. गुरु व्यास ने ही चार वेदों कि रचना की थी इसलिए उन्हें वेदव्यास कहा जाने लगा.

पुराने समय में भारत में गुर-शिष्य परंपरा हुआ करती थी. इस परंपरा में सभी शिष्य अपने गुरु के आश्रम में रह कर विद्या अर्जित करते थे, जिसे गुरुकुल कहा जाता था. लेकिन इस पूरी परंपरा में एक खास बात यह थी कि गुरु के आश्रम में रहकर भी उन शिष्यों को दी जा रही विद्या के बदले उनसे कोई मूल्य नहीं लिया जाता था.

गुरुकुल में रहते हुए सभी शिष्य किसी एक दिन अपने गुरु द्वारा मिल रही इस विद्या के बदले गुरु की पूजा करते और अपनी क्षमता के अनुसार उन्हें दक्षिणा के रूप में कोई उपहार भेट दिया करते थे. गुरु पूर्णिमा की यह परंपरा भारत में वैदिक काल से शुरू हुई हैं. हिन्दुस्तान और नेपाल में सबसे अधिक मनाई जाने वाली यह परंपरा हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म मानने वाले सबसे अधिक मनाते हैं.

कहा जाता हैं कि गुरु पूर्णिमा वर्षाकाल के आरम्भ में आती हैं और यह समय न अधिक गर्मी का होता हैं न अधिक ठण्ड का इसलिए इस मौसम को विद्या के लिए बहुत उपयुक्त माना जाता हैं.

कहते हैं कि गुरु शिष्य परंपरा की शुरुआत गुरु वेदव्यास ने ही की थी.

महाभारत के रचियता “कृष्ण दवैपायन वेदव्यास” का जन्म आषाढ़ की इसी पूर्णिमा को हुआ था इसलिए भी गुरु पूर्णिमा गुरु वेदव्यास के याद में मनाई जाती हैं.

शास्त्रों मे “गुरु” शब्द के बारे में कहते हैं कि गु का अर्थ होता हैं “अन्धकार” और रु का अर्थ होता हैं “निरोधक”

इस शब्द में अन्धकार का मतलब अज्ञानता से लिया गया हैं. अर्थात गुरु वह है जो हमें अन्धकार रूपी अज्ञानता हमसे दूर करे.

आज के दिन हमारे गुरु या आजकल जिन्हें हम टीचर कहने लगे हैं, उनके सम्मान के लिए होता हैं. हमारे जिंदगी में हमने जिनसे से भी कोई सिख हासिल की होती हैं, उसके आभार स्वरुप हम उनका सम्मान करते हैं. चाहे वह हमारे स्कूल-कॉलेज के टीचर हो या हमारे मात-पिता. क्योंकि हमारे माता-पिता ही हमारे पहले गुरु होते हैं. हमारी परंपरा में गुरु का दर्जा भगवान् से अधिक माना गया हैं. इस बारे कबीर ने अपने एक दोहे में कहा हैं कि

हरि रूठे गुरु ठौर हैं, गुरु रूठे नही ठौर.

इस दोहें में कहा गया हैं कि अगर भगवान् हमसे रूठ जाये तो हम अपने गुरु के पास जा सकते हैं लेकिन हमारे गुरु ही हमसे रूठ गए तो हमें कही और शरण मिलना असंभव हैं.

इसलिए अपने गुरुओं के सम्मान करें.

अपने सभी गुरुओं द्वारा मिली सिख के लिए मेरा यह पोस्ट उनके लिए एक आभार हैं. आप सभी को गुरु पूर्णिमा की शुभकामनाएं.