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चाँद देख कर ही क्यों मनाई जाती हैं ईद?

Eid-Al-Fitr

जब हम ईद या रमज़ान की बात करते हैं, तब सबसे पहले हमारे ज़ेहन में शिराकोरमा जिसे सेवइयाँ भी कहते हैं और इस तरह के कई लज़ीज़ पकवानों की याद आते हैं.

रमज़ान के पुरे महीने में हर तरफ इफ्तारी के लिए बनने वाली तरह-तरह की डिशेस मुह में पानी लाती हैं. पर ईद और रमज़ान का ये महिना खाने की इन स्वादिष्ट चीज़ों से कहीं ज्यादा हैं.

रमजान के 30वें रोज़े के बाद चाँद देख कर ईद मनाई जाती हैं.  इस साल भी इसी तरह 17 जुलाई को ईद मनायी जानी हैं.

पर क्या आप जानते हैं कि ईद और चाँद का क्या कनेक्शन हैं?

क्यों ईद चाँद दिखने के बाद अगले दिन मनाई जाती हैं?

ईद को ईद-उल-फ़ितर भी कहा जाता हैं जो इस्लामिक कैलंडर के दसवें महीने के पहले दिन मनाई जाती हैं. इस्लामिक कैलंडर के बाकि महीनो की तरह यह महिना भी “नया चाँद” देख कर शुरू होता हैं.

ईद मनाने का मकसद वैसे तो पूरी दुनिया में भाईचारा फैलाने का हैं पर इस के पीछे की कहानी ह्रदयविदारक हैं.

जंग-ए-बद्र की लड़ाई जो सन 624 में नए बने मुस्लिम गुट और कुरैश कबीले के बीच हुई थी, जिसका उद्देश्य पुरानी ख़ानदानी रंजिशों का बदला लेना था. इस लड़ाई में पैगम्बर मुहम्मद ने मुस्लिमो का नेतृतव किया था, जिसमे इस्लाम और मुस्लिमों की जीत हुई थी. इस लड़ाई के बाद इस्लाम को मानने वाले लोगों ने पैगम्बर मुहम्मद को ईश्वर का दूत मानने लगे और उनके साथ मक्का की ओर जा कर रहने लगे. इसी युद्ध के बाद 624 ईस्वी में पहला ईद-उल-फितर मनाया गया था. इस्लामिक कैलंडर में दो ईद मनायी जाती हैं. दूसरी ईद जो ईद-उल-जुहा या बकरीद के नाम से भी जानी जाती हैं.

ईद-उल-फितर का यह त्यौहार रमजान का चाँद डूबने और ईद का चाँद नज़र आने पर नए महीने की पहली तारीख को मनाया जाता हैं. रमज़ान के पुरे महीने रोज़े रखने के बाद इसके ख़त्म होने की ख़ुशी में ईद के दिन कई तरह की खाने की चीज़े बनाई जाती हैं. सुबह उठा कर नमाज़ अदा की जाती हैं और ख़ुदा का शुक्रिया अदा किया जाता हैं कि उसने पुरे महीने हमें रोज़े रखने की शक्ति दी. नए कपड़े लिए जाते हैं और अपने दोस्तों-रिश्तेदारों से मिल कर उन्हें तोहफ़े दिए जाते हैं और पुराने झगड़े और मन-मुटावों को भी इसी दिन ख़त्म कर एक नयी शुरुआत की जाती हैं.

इस दिन मज़्जिद जा कर दुआ की जाती हैं और इस्लाम मानने वाले का फ़र्ज़ होता हैं कि अपनी हैसियत के हिसाब से ज़रूरत मंदों को दान करे. इस दान को इस्लाम में ज़कात उल-फितर भी कहा जाता हैं.

आने वाली ईद में भी हम सभी यही उम्मीद करते हैं ये ईद ख़ुशहाली और भाईचारा लायें.

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