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हिंदी दिवस विशेष: हिंदी नहीं आना अंग्रेजी ना आने से कहीं ज्यादा शर्मिंदगी की बात है

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अरे तुम्हारी इंग्लिश तो देखो….ठीक से लिखना तो आता नहीं बड़े आये ज्ञान देने.

हिंदी में लिखा है यार कैसे पढूं मुझे तो याद भी नहीं लास्ट टाइम हिंदी कब लिखी या पढ़ी थी.

आजकल कौन हिंदी में लिखता है

अरे तुम हिंदी राइटर हो, कौन पूछता है हिंदी को इस ज़माने में.

अगर आप हिंदी का उपयोग ज्यादा करते है या अंग्रेजी की तुलना में हिंदी को ज्यादा महत्व देते है तो ऊपर लिखी गयी बातें या कहे कि ऊपर लिखे कटाक्ष सुनने की आपको भी आदत हो गयी होगी.

वैसे ये भी देखने वाली बात है कि आज हिंदी दिवस है और कितने लोग इसके बारे में जानते है ये तो ऊपरवाला ही जाने.

कहने को तो हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है पर राष्ट्र भाषा की कितनी इज्ज़त है ये तो आप और मैं हम सब जानते है.

विश्व भर में सबसे प्रचलित भाषा अंग्रेजी है इसमें कोई दो राय नहीं है. लेकिन भारत ही एक मात्र ऐसा देश है जहाँ राष्ट्र भाषा को दोयम दर्जे की माना जाता है. यहाँ जो लोग हिंदी भाषी प्रान्त से होकर भी हिंदी का उपयोग सिर्फ इसलिए नहीं करते कि कहीं लोग उन्हें पिछड़ा हुआ ना माने. और कुछ लोग ऐसे होते है जिन्हें गर्व महसूस होता है कि उन्हें हिंदी नहीं अंग्रेजी आती है.

दुनिया भर के देशों में अंग्रजी को मान्यता प्राप्त है पर किसी भी देश में ऐसा नहीं है कि वहां की राष्ट्र भाषा को हेय माना जाए.

चीन, फ्रांस, रूस, जर्मनी, इटली, स्पेन चाहे किसी भी देश में चले जाइये वहां के नागरिक हमेशा अपनी राष्ट्रभाषा को अंग्रेजी से ज्यादा महत्व देते है. अंग्रेजी कामकाज की भाषा के रूप में भली ही इस्तेमाल होती हो पर आम जिंदगी में लोग अपनी भाषा में ही बात करना पसंद करते है.

वहीँ दूसरी ओर अगर हम हमारे देश की स्थिति देखें तो आजकल का युवा वर्ग हिंदी को गंवारों की भाषा मानता है. दैनिक बोलचाल में चाहे व्याकरण की दृष्टि से कितनी ही गलत अंग्रेजी बोले लेकिन हिंदी बोलने में उन्हें शर्म महसूस होती है. एक तबका ऐसा भी है जो हिंदी में बात करने वालों को पिछड़ा समझने में भी देर नहीं करता.

खुद चाहे अंग्रजी में कितनी भी बे सिर पैर की बातें करें अगर कोई हिंदी भाषी सही बात भी करे तो उसका मखौल उड़ाने से नहीं चूकता.

हममें से आज कितने लोग है जो सही रूप से हिंदी लिख और पढ़ सकते है. ये बात समझनी होगी टूटी फूटी अंग्रजी बोलना इतनी शर्मिंदगी की बात नहीं है जितनी शर्मिंदगी की बात हिंदी नहीं बोल पाना है.

एक महापुरुष ने बहुत अच्छी बात कही थी “अगर मेरी अंग्रेजी अच्छी नहीं है इसका मतलब ये है कि मैं अपनी मातृभाषा को अच्छे से जानता हूँ और उसका इस्तेमाल करने में शर्म महसूस नहीं करता ”

आजकल एक और नयी भाषा ईजाद हुई है.. हिंगलिश

इसे सबसे ज्यादा इस्तेमाल वो लोग करते है जिन्हें हिंदी बोलने में शर्म आती है. इन लोगों के मापदंड इतने दोहरे होते है कि अगर आप अंग्रेजी में कोई व्याकरण सम्बन्धी छोटी सी गलती भी कर दो तो ये आपकी शिक्षा से लेकर आपकी बुद्धिमता तक हर बात की बखिया उधेड़ देंगे.

लेकिन यही लोग हिंगलिश का इस्तेमाल धड़ल्ले से करते है. मतलब भाषा सम्बन्धी शुद्धि केवल अंग्रजी में ही होनी चाहिए, हिंदी में ना व्याकरण का पता ना सही शब्दों का.

हिंदी की इस दयनीय हालत के उत्तरदायी हम सब है. पश्चिम से बराबरी करने के नाम पर हम केवल उनकी भौंडी नकल ही करने में लगे है. हमें लगता है कि अंग्रेज़ी बोलने या चाल चलन में अंग्रेजियत लाने से ही हम विकसित और बुद्धिमान बन जायेंगे.

ऐसा नहीं है कि अंग्रेजी का विरोध किया जाए या अंग्रेजी सीखी ही नहीं जाए. भाषा सीखना बहुत अच्छी बात है इससे ज्ञान के नये द्वार खुलते है. लेकिन अपनी राष्ट्रभाषा को उपेक्षित करना और उसका इस्तेमाल करने वालों का मज़ाक बनाना गलत है.

हमारे देश की ही विभिन्न राज्यों में देखिये वहां के लोग अपनी प्रादेशिक भाषा का कितना सम्मान करते है और जहाँ तक हो सके उसी भाषा का इस्तेमाल करते है, लेकिन हिंदी भाषी क्षेत्रों खासकर शहरों में हिंदी को हे दृष्टि से देखा जाता है. ऐसे में कभी कभी हिंदी का अच्छा ज्ञान रखने वाले बहुत से योग्य लोग सिर्फ इसलिए हीनभावना का शिकार हो जाते है कि उन्हें अच्छी अंग्रेजी नहीं आती और उनकी योग्यता का मापदंड उनके ज्ञान से नहीं उनकी अंग्रेजी से किया जाता है.

हिंदी की आज हालत ये है कि राष्ट्र भाषा होने के बाद भी इसे हिंदी दिवस, हिंदी पखवाड़े के भरोसे रहना पड़ता है.

अगर हमें हिंदी का प्रचार प्रसार करना है तो हिंदी दिवस, हिंदी पखवाड़े से आगे निकलकर दैनिक जीवन में हिंदी का अधिक से अधिक उपयोग करना होगा और आज की पीढ़ी को हिंदी साहित्य से परिचित कराना होगा.

इसके अलावा सबसे महत्वपूर्ण हमें हिंदी बोलने पर गर्व करना होगा.

हिंदी दिवस की शुभकामनायें और आशा करते है कि हम हिंदी और हिंदी बोलने वालों का मजाक उड़ाने से पहले लोग सोचें की कौन है मजाक का पात्र वो जो राष्ट्रभाषा में वार्तालाप करता है या फिर वो जिसे राष्ट्रभाषा ठीक से लिखनी या बोलनी नहीं आती.