धर्म और भाग्य

उत्तराखंड के इस प्राचीन शिव मंदिर में आखिर पूजा करने से क्यों डरते हैं लोग !

मान्यता है कि भगवान शिव के भक्त चाहे उनके किसी भी स्वरुप की पूजा करें, भगवान शिव भक्ति मात्र से प्रसन्न होकर अपने भक्तों की समस्त मनाकामनाओं को पूरी करते हैं.

वैसे देशभर में भगवान शिव के अनगिनत देवालय स्थित हैं जहां जाकर लोग ना सिर्फ अपनी हाजिरी लगाते हैं बल्कि अपनी मुरादों की झोली भरकर वहां से घर लौटते हैं.

लेकिन हमारे देश में भगवान शिव का एक ऐसा मंदिर भी मौजूद है जहां भारी तादात में शिव भक्तों का जमावड़ा तो लगता है लेकिन वो सभी बाहर से ही मंदिर का दीदार करके वापस लौट जाते हैं क्योंकि इस मंदिर में पूजा करने से सभी भक्तों को डर लगता है.

अभिशप्त है शिव का यह देवालय

दरअसल भगवान शिव का यह प्राचीन मंदिर उत्तराखंड के चंपावत जिले के हथिया नौला में स्थित है जिसका नाम है एक हथिया देवाल. कहा जाता है कि भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर अभिशप्त है.

हालांकि इस मंदिर में भगवान शिव के दर्शन करने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं. यहां आकर वो इस मंदिर की अनूठी स्थापत्य कला को निहारते हैं और वापस अपने घरों को लौट जाते हैं, लेकिन वो यहां पूजा नहीं करते हैं.

एक हाथ से बना था यह मंदिर

इस मंदिर का नाम एक हथिया देवाल इसलिए पड़ा था क्योंकि इसका निर्माण एक हाथ से किया गया था. यह मंदिर बहुत प्राचीन है जिसका जिक्र पुराने ग्रंथों में भी मिलता है.

कहा जाता है कि किसी समय यहां राजा कत्यूरी का शासन हुआ करता था. उस दौर के शासकों को स्थापत्य कला से बहुत लगाव था. यहां तक कि वे इस मामले में दूसरों से प्रतिस्पर्द्धा भी करते थे.

लोगों का मानना है कि एक बार यहां किसी कुशल कारीगर ने इस मंदिर का निर्माण करना चाहा. इसके लिए वो काम में भी जुट गया और उसकी खासियत यह थी कि उसने एक हाथ से मंदिर का निर्माण शुरू करके एक रात में ही इसे साकार रुप दे दिया.

इस वजह से यहां नहीं होती है पूजा

मान्यताओं के अनुसार इस गांव में एक मूर्तिकार रहता था जो पत्थरों को काटकर मूर्तियां बनाया करता था लेकिन एक बार किसी दुर्घटना के चलते वो अपना एक हाथ खो देता है. एक हाथ गंवाने के बाद भी वो मूर्तियां बनाने का काम जारी रखना चाहता था लेकिन गांववाले उसे अक्सर ताने दिया करते थे कि एक हाथ के सहारे वो क्या कर सकेगा.

बार-बार गांव वालों के ताने सुनकर उसका मन एकदम खिन्न हो गया था, जिसके बाद उसने ये ठान लिया कि वो उस गांव में नहीं रहेगा, यह प्रण करके वो एक रात अपनी छेनी, हथौड़ी और दूसरे औजार लेकर गांव के दक्षिणी छोर की ओर निकल पड़ा.

अगले दिन सुबह जब गांव का एक आदमी इस दिशा में गया तो उसने पाया कि रातभर में किसी ने चट्टान को काटकर एक देवालय का रुप दे दिया है.

यह देखकर सबकी आंखे फटी की फटी रह गई और सारे गांववाले इकट्ठा होकर एक हाथ वाले उस कारीगर का इंतजार करने लगे. लेकिन वो वापस नहीं लौटा  क्योंकि अपने प्रण के अनुसार वो इस गांव को छोड़कर जा चुका था.

उसने एक रात में भव्य मंदिर तो तैयार कर दिया था लेकिन शिवलिंग का अरघा उत्तर दिशा में बनाने के बजाय दक्षिण दिशा में बना दिया था. यहां के लोगों का यह मानना है कि विपरित अरघा वाला यह शिवलिंग पूजन के योग्य नहीं है और इसे पूजने से से कोई अनहोनी हो सकती है इसलिए आज तक किसी ने भी इस शिवलिंग की पूजा नहीं की.

गौरतलब है कि भगवान शिव के इस मंदिर में शिल्पकला का अद्भुत नमूना देखने को मिलता है लेकिन मंदिर में स्थित शिवलिंग का अरघा विपरित दिशा में होने के चलते लोग यहां सिर्फ दर्शन करने आते हैं और बिना पूजा किए ही वापस लौट जाते हैं.

Anita Ram

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