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क्यों दुनिया बनाने वाले ब्रह्मा की नही होती पूजा?

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हिन्दू ग्रन्थ और पुराणों में ये बात कही गयी हैं कि इस सृष्टि के रचनाकार ब्रह्मा जी हैं.

उन्होंने ही इस पूरी दुनिया का निर्माण किया हैं, पर आप को यह बात जान कर आश्चर्य होगा कि इस पुरे संसार के निर्माणकर्ता भगवान ब्रह्मा की ही पूजा नहीं की जाती हैं.

ब्रह्मा ही एक ऐसे देव हैं जिनकी इस पूरी धरती में केवल दो मंदिर हैं. एक मंदिर दक्षिण भारत के कुम्भ-कनिम में हैं और दूसरा मंदिर राजस्थान के पुष्कर में स्थित हैं.

लेकिन इन दोनों मंदिरों में से एक में भी ब्रह्मा की पूजा-अर्चना नही होती हैं.

इस वजह के पीछे पुराणों में कई दिलचस्प कथाएँ प्रचलित हैं.

कहा जाता हैं कि भगवान ब्रह्मा ने स्वयं को समझने के लिए इस सृष्टि का निर्माण किया था और जब सृष्टि बनी तो वह स्त्रीरूप में थी. भगवान ब्रह्म ने इस सृष्टि का नाम सतरूपा रखा. सतरूपा का अर्थ होता हैं जिसके एक से ज्यादा रूप होते हैं. सतरूपा के हर वक़्त बदलते रूप को देख कर ब्रह्म देव उस पर आसक्त हो गए. ब्रह्म देव की आसक्ति इतनी अधिक बढ़ गयी कि सतरूपा को हर वक़्त देखने के लिए उन्होंने चार सर धारण कर लिया. ब्रह्मा जी मकसद सतरूपा को अपने वश में करने का था, जिसके लिए वह उसके पीछे भागने लगे. भगवान् ब्रह्मा सतरूपा को अपने नियंत्रण में करने के लिए खुद कई रूप बदले लगे.

बाकि देवतागणों ने जब भगवान ब्रह्म की आसक्ति को देखा तो उन की इस दशा पर बहुत क्रोधित हुए. उन्हें ब्रह्म देव की अवस्था अच्छी नहीं लगी और सब ने उन्हें उनके इस कृत्य के लिए धिक्कारा भी. देवताओं के अनुसार कोई पिता अपनी पुत्री के लिए कैसे आसक्त हो सकता हैं.

देवताओं की इन बातों का यह अर्थ था कि, हम खुद अपनी दुनिया का निर्माण करते हैं और उसके सभी सुख-दुःख हमारे मन से निकले होते हैं और एक समय के बाद हम इसी दुःख-सुख की माया में फंस जाते हैं.

जो व्यक्ति ऐसे मोह माया के बंधन में पड़ता है वह पूजनीय नहीं हो सकता हैं. इसलिए भगवान ब्रह्मा भी पूजा करने योग्य नहीं हैं.

राजस्थान में जगत पिता बह्मा का मंदिर पुष्कर में भी स्थित हैं, जो अपने पुष्कर मेले के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं. पर इस मंदिर में भी ब्रह्म देव की पूजा नहीं की जाती हैं. इस के पीछे भी एक रोचक कथा हैं.

एक बार ब्रह्मा जी को धरती के कल्याण की बात सूझी तो उन्होंने एक यज्ञ करने का सोचा और उसके लिए पुष्कर का चुनाव किया.

उस यज्ञ में बैठने के लिए ब्रह्मा जी पहुच गए, पर उनकी पत्नी सावित्री समय पर नहीं पहुची थी.

मुहर्त निकलता देख ब्रह्मा जी ने पुष्कर के एक ग्वाले की पुत्री से विवाह कर लिया और उस के साथ यज्ञ आरम्भ कर दिया. कुछ समय बाद जब सावित्री वह पहुची और अपने स्थान में किसी और स्त्री को देखा तो क्रोधित होकर, उन्होंने ब्रह्मा जी श्राप दे दिया कि उनकी इस पूरी धरती में कही भी पूजा नहीं की जाएगी.

सावित्री के इस क्रोध से बाकि देव भी डर गए और उन्होंने सावित्री से अपना श्राप वापस लेने की विनती की. पर सावित्री इतनी क्रोधित थी कि उन्होंने अपना श्राप वापस नहीं लिया और उसका नतीजा ये हुआ कि, ब्रह्म देव आज भी पूरी धरती में कही भी पूजे नहीं जाते.