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जानिए भगवानों के वाहन हमेशा ‘पशु’ ही क्यों होते है?

भगवान के वाहन पशु

अक्सर आप मंदिर में जाते है और वहां अलग-अलग भगवान के दर्शन करते है, लेकिन क्या आपने कभी भगवान से जुड़ी एक सामान्य सी बात पर ध्यान दिया है?

हम बात कर रहे है भगवान के वाहन की।

जी हाँ लगभग सभी भगवान के वाहन पशुओं को ही माना गया है। जैसे भोलेनाथ के नंदी, माँ दुर्गा के शेर, भगवान विष्णु के गरुढ़ से लेकर इंद्र के ऐरावत हाथी तक सभी पशु है।

हर भगवान के वाहन पशु है – लगभग सभी देवी-देवता पशुओं पर ही सवार है।

लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि सर्वशक्तिमान देवताओं को आखिर क्यों पशुओं की सवारी करनी पड़ी।

जबकि वे तो अपनी शक्तिओं से एक पल में कही भी जा सकते थे। आखिर ऐसा क्यों है कि हर भगवान के साथ कोई ना कोई पशु जुड़ा हुआ है? आखिर ऐसी क्या वजह है कि भगवान के वाहन पशु ही बने?

वैसे आपके मन में भी इस तरह का सवाल उठता होगा कि भगवान की सवारी के लिए कोई पशु ही क्यों बेहतर माना गया। तो हम आपको बता दें कि पशुओं को भगवान से जोड़ने के पीछे कई सारे कारण है। दरअसल इसके पीछे कई आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और व्यावहारिक कारण है। देवताओं के साथ पशुओं को उनके व्यवहार और स्वभाव के अनुरूप जोड़ा गया है।

जैसे भोलेनाथ का स्वभाव भोला-भाला है लेकिन क्रोध आने पर भयंकर हो जाते है तो उनका वाहन नंदी है जो स्वभाव से भोले-भाले है लेकिन क्रोध आने पर किसी के काबू नहीं आते है। ठीक उसी प्रकार माँ दुर्गा तेज शक्ति और सामर्थ्य की प्रतिक है तो उनकी सवारी सिंह है या शेर है। इसी प्रकार बाकी देवताओं के स्वभाव के आधार पर उनके साथ पशुओं को जोड़ा गया है। वहीं इसका दूसरा सबसे बड़ा कारण है पशुओं की रक्षा क्योंकि पशुओं को भगवान से जोड़े जाने के कारण उनके खिलाफ हिंसा नहीं हो सकती है अगर ऐसा नहीं होता तो बहुत से ऐसे पशु है जिनका अब तक अस्तित्व ही ख़त्म हो गया होता।

हर भगवान के साथ एक पशु को जोड़कर भारतीय मनीषियों ने प्रकृति की और जीवों की रक्षा का संदेश दिया है।

इस तरह भगवान के वाहन पशु है – हर पशु किसी ना किसी भगवान का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए उनके साथ कोई हिंसा नहीं किया जाना चाहिए बस इसका मूल सन्देश यही है।