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लड़कियाँ ही क्यों अपना नाम बदलें शादी के बाद? लड़के क्यों नहीं?

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लड़कियाँ लक्ष्मी का रूप होती हैं!

लड़कियाँ सरस्वती भी होती हैं!

लड़कियों को दुर्गा का रूप भी माना जाता है!

लेकिन एक बात बताईये, जब लक्ष्मी माँ या सरस्वती माँ या दुर्गा माँ की मूर्ती या तस्वीर अपने घर में लेके आते हैं, तो क्या उनका नाम बदल देते हैं? या उनसे यह अपेक्षा की जाती है कि वो अपना काम बदल दें, अपना स्वभाव बदल दें, अपने आप को हमारे घर के रीति-रिवाज़ों के अनुसार ढाल लें?

नहीं ना?

तो क्यों यह अपेक्षा हर लड़की से की जाती है कि शादी के बाद उसे अपना जीवन बदलना होगा? नए घर, नए रिश्तेदारों के अनुसार ख़ुद को ढालना होगा? अपनी इच्छाओं, सपनों को नए परिवार की अपेक्षाओं के अनुसार बदलना या शायद बिलकुल ही छोड़ देना होगा?

सब कुछ लड़की करे, लड़के सिर्फ पाओं पर पाओं चढ़ा के हुक्म चलाएँगे कि ऐसा कर लो, वैसा कर लो, मुझे यह पसंद नहीं, मेरी माँ को वो पसंद नहीं वगेरह वगेरह! क्यों भाई, लड़के क्या आसमान से टपके हैं या प्रकृति की कोई नायाब देन हैं कि सब कुछ उनकी मर्ज़ी से ही होगा?

अगर तो लड़का और उसका परिवार लड़की के अनुसार अपने आप को बदलने के लिए तैयार है, कुछ हद तक लड़की के सपनों और व्यवहार के अनुसार जीवन जीने को तैयार है, तब तो ऐसी शादी सफल समझी जाए| वरना साफ़ शब्दों में कहा जाए तो यह लड़कियों का शोषण ही है! बुरी लगेगी यह बात आपको लेकिन सोच के देखिये, लड़की और लड़का दोनों ही उपरवाले ने बनाये हैं, दोनों के अंदर एक सा ही खून बहता है, दोनों को प्रकृति ने एक सा मौका दिया है ज़िन्दगी जीने के लिए तो फिर यह आदमी द्वारा बनाया गया शादी का बंधन क्यों किसी लड़की को अपना जीवन जीने से रोके या उसमें बाधा डाले?

अगर लड़की ख़ुद को बदल रही है तो लड़के को भी उतनी ही कोशिश करनी पड़ेगी अपनी पत्नी का साथ देने की, उसके लिए ख़ुद को बदलने की| जहाँ तक नाम की बात है, अब तो भारतीय क़ानून ने भी हर औरत को यह हक़ दे दिया है कि शादी के बाद ये ज़रूरी नहीं है कि वो अपने पति का उपनाम इस्तेमाल करे!

तो दोस्तों, जागो और लड़कियों के हक़ की सिर्फ बातें मत करो! यह कोशिश करो कि हर लड़की को शादी के बाद उसका हक़ मिले और ऐसे नहीं कि भीख दी जा रही हो, बल्कि ऐसे कि जैसे यह तो उसे मिलना ही था! बिलकुल जैसे हर लड़के को बिना कहे हर चीज़ दी जाती है!

सोच बदलनी ज़रूरी है, आज और अभी!