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असहिष्णुता और आमिर का बवाल, आइये मिलते है घृणा फ़ैलाने वाले असली अपराधियों से

intolerance

सोशल मीडिया 

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सोशल मीडिया एक साधन है. अपनी आवाज़ लोगों तक पहुँचाने का. शुरुआत में ऐसा हो भी रहा था, अब ऐसा लगता है कि सोशल मीडिया एक अदालत बन गया है जहाँ हर कोई एक जज है.

सब अपने अपने हिसाब से चीज़ों को तौलते है और फैसले सुनाते है. सबसे कमाल की बात ये है कि इन फैसलों में तथ्य या सच का कोई स्थान नहीं होता है. इनका मकसद होता है प्रसिद्धि चार पल की प्रसिद्धि.

मेरा ट्वीट इतनी बार रीट्वीट हुआ, मेरा पोस्ट इतना शेयर हुआ, इतना लाइक हुआ और इतने कमेन्ट आये बस यही चाहिए. कौनसी बात सच है कांसी झूठ ये सब जाए भाड़ में. सामाजिक सरोकार रखने का नाटक तो ऐसे किया जाता है कि अच्छे से अच्छा कलाकार भी शर्मा जाए.

देश और देश के नागरिकों के बारे में सोचने वाले जितने लोग सोशल मीडिया में है उसके 10% भी अगर असल जीवन में मिल जाए तो देश का क्या दुनिया का भला हो जाए. पर दुःख की बात ये है कि सोशल मीडिया के क्रांतिकारियों का किसी मुद्दे के प्रति सरोकार उसके ट्रेंडिंग रहने तक ही रहता है.

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