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सफ़ेद चमड़ी देख के क्या हो जाता है हिंदुस्तानी मर्दों को?

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जहाँ दिखी नहीं फिरंग,

वहीँ आ गया जीवन में नया रंग!

क्यों यही हैं आपके ख्याल भी?

ऐसा ही होता है जब आप बाज़ार में, ट्रेन में, रेस्टोरेंट्स में अचानक किसी गोरी यानि कि फिरंग महिला को देखते हैं?

दिल धड़कने लगता है और जी करता है कि झट से दोस्ती कर लें?

अगर हाँ तो आप भी उन्हीं हिंदुस्तानी मर्दों में से हैं जो एक औरत को उसकी त्वचा के रंग से जानना पसंद करते हैं ना कि उसके स्वभाव से या उसके दिल से| और फिर उस से भी बड़ी बात यह है कि एक औरत तो औरत ही होती है, चाहे वो हमारे देश कि सांवली या भूरे रंग कि हो या विदेशी गोरी! फिर गोरी औरत से हमारी अपेक्षाएँ अलग क्यों? उनके लिए हमारे मन में अलग विचार क्यों?

यह हमारा सफ़ेद रंग का प्यार ही है जो विदेश से इतनी सारी चीयरलीडर्स को आई पी एल में खींच लाया है| या फिर हिंदी फिल्मों के गानों में सभी विदेशी लड़कियां देसी ठुमके लगाती पायी जा रही हैं| मतलब ये कि हमारे देश की लड़की है तो ना ना, उस को छोटे कपडे मत पहनाओ, उसकी इज़्ज़त करो, वो माँ-बहन समान है पर अगर विदेशी गोरी है तो चालू होगी, उसको कपड़ों की क्या ज़रुरत है, वो तो सब के लिए बनी है, है ना?

यही कारण है कि आये दिन जहाँ हम अपनी बेहेन-बेटियों के बलात्कार की खबरें सुनते हैं और हमारा खून खौल जाता है, वहीँ विदेशी महिला पर्यटकों के साथ हो रहे अनचाहे शोषण, बलात्कार और छेड़-छाड़ को ख़ास तवज्जो नहीं दी जाती| बल्कि हंस के टाल दिया जाता है कि क्या फर्क पड़ता है, वो हमारी माँ-बहन थोड़े ही ना है!

आखिर हो क्या जाता है मर्दों को? हंसने के लिए, मज़े करने के लिए हमें सफ़ेद चमड़ी वाली औरत चाहिए और घर चलाने के लिए, दुःख झेलने के लिए देसी लड़की? हम मर्द क्या सफ़ेद चमड़ी लेके पैदा हुए हैं? या हमने कोई ख़ास योगदान दिया है इस सृष्टि के संचालन में कि उपहार स्वरुप हमें सफ़ेद चमड़ी दी जाए? औरत तो औरत होती है, उसकी इज़्ज़त करना हमारा फ़र्ज़ है| चाहे वह हमारे देश की है या विदेश की!

इस रंग के दोगलेपन से बाहर निकलेंगे तो जीवन में कुछ कर पाएंगे! हड्डी और खाल से बढ़कर भी इस दुनिया में, इंसान में, जीवन में बहुत कुछ है कर दिखाने के लिए!

इंसान अच्छा ढूँढिये अपने जीवन साथी के रूप में, उसकी चमड़ी आपके किसी काम की नहीं है!