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ईश्वर कहाँ रहता है? इस प्रश्न का जवाब छिपा है इस कहानी में!

ईश्वर हमारे भीतर ही मौजूद है

ईश्वर कहा है?

अक्सर लोग मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा, चर्च, मठ, तीर्थो और ना जाने कहाँ-कहाँ ईश्वर को ढूंढते रहते है।

लेकिन ईश्वर आज तक किसी को नहीं मिला है। क्योंकि ईश्वर हमारे भीतर ही मौजूद है फिर चाहे उसे हम राम कहे, अल्लाह कहे, या गॉड कहे ईश्वर एक ही है। हमारे जिंदा होने का मतलब ही हमारे अंदर ईश्वर के होने का वजूद है।

ईश्वर हमारे भीतर ही मौजूद है –  ये हम इस कहानी की मदद से ज्यादा अच्छे से समझ सकते है।

एक बार शरीर की सभी इंद्रियों में इस बात को लेकर लड़ाई छिड़ गई की हम में से सबसे बड़ा कौन है। वाणी कहने लगी मैं बड़ी हूँ, अगर में नहीं हुई तो कोई भी इंसान बोल नहीं पायेगा। कान कहने लगे में बड़ा हूँ, मैं नहीं हुआ तो कोई सुन नहीं पायेगा। आँखे कहने लगी मैं नहीं हुई तो कोई देख नहीं सकेगा। इसी तरह मन कहने लगा मैं नहीं हुआ तो किसी व्यक्ति को कुछ पता नहीं चलेगा।

प्राण अपनी तारीफ में कहने लगा मैं नहीं रहा तो यह शरीर ही मृत हो जायेगा, इसलिए मैं ही सबसे बड़ा हूँ।

इस विवाद को बढ़ता देख सभी इन्द्रियों ने कहा क्यों ना हम इस सृष्टि के रचयिता ब्रह्माजी से ही जाकर पूछ ले कि हममें सर्वश्रेष्ठ कौन है।

सभी इन्द्रियाँ ब्रह्मा के पास गई और इस समस्या का हल निकालने का कहने लगी। ब्रह्मा बोले तुम में से जिसके चले जाने से शरीर बेजान यानि निष्क्रिय हो जाएगा समझ लेना वही तुममें से श्रेष्ठ है।

इन्द्रियों ने ऐसा ही किया, सबसे पहले वाणी शरीर से अलग हो गई, इससे व्यक्ति बोल नही पाया लेकिन शरीर को कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

ऐसा ही आँखों ने भी किया, फिर कानों की बारी आई उनके जाने पर भी शरीर में कोई प्रभाव नहीं पड़ा। फिर मन ने भी शरीर छोड़ दिया हालाँकि इससे मानसिक विकार जरुर हुआ लेकिन शरीर वैसे ही चल रहा था।

सबसे आखिर में प्राण ने कहा कि अब मेरी बारी है शरीर छोड़ने की तो सारी इन्द्रियां व्याकुल हो उठी।

उन्होंने अनुभव किया की प्राण निकल जाने पर हम सभी बेकार हो जाएँगी। इसलिए उन्होंने प्राण की श्रेष्ठता स्वीकार कर ली।

यह प्राण शक्ति ही ईश्वर से मिलती है। शास्त्रों में परमात्मा को ही प्राण कहकर पुकारा है। अर्थात ईश्वर हमारे भीतर ही मौजूद है और हमारा जिंदा रहना ही ईश्वर के हमारे अंदर मौजूद होने का प्रमाण है।