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जानिये अलग अलग धर्म कामवासना के बारे में क्या कहते है!

आज के इस दौर में कोई भी इंसान कामवासना या लस्ट या जिसे हम “सेक्स करने की इक्छा” भी कहते हैं से खुद को दूर नहीं रख सकता हैं.

बच्चे जैसे ही अपने बालपन से किशोरावस्था की ओर बढ़ते हैं उनके शरीर में होने वाले हार्मोनल चेंजेस उनमे कामवासना को और जगा देते हैं और यदि यह कामइक्छा नियंत्रण से अधिक हुई तो व्यक्ति का भविष्य एक अन्धकार की ओर जाने लगता हैं.

संस्कृत भाषा में एक कहावत बड़ी प्रचलित हैं कि “अति सर्वत्र वर्जयेत”. संस्कृत में कही गयी इस बात का अर्थ यह हैं कि किसी भी चीज़ की अति हानिकारक होती हैं.

मनुष्य में सेक्स करने की प्रवृति कृत्रिम नही हैं. सेक्स करना हर इंसान के स्वाभाव का एक अहम् हिस्सा होता हैं. यह प्रवृति इस संसार में जन्मे हर तरह के जीव और प्राणी में पाई जाती हैं. जीवों में उपस्थित सेक्स करने की प्रवृति पूरी तरह प्राकृतिक होती हैं.

लेकिन दुनिया में व्याप्त सभी धर्म में सेक्स और उससे जुड़ी कामभावना को लेकर उन के अलग अलग विचार हैं. धर्म से जुड़ी कई किताबों में सेक्स को लेकर उसकी विचारधारा को खुले रूप से व्यक्त किया हैं. सेक्स के मामले में कई धर्मो की सोच लगभग एक समान हैं.

आईएं जानते हैं अलग अलग धर्म कामवासना के बारे में क्या कहता है!

1.   हिन्दू धर्म-

भारत में प्रमुख धर्म के रूप में विद्यमान हिन्दू धर्म के अनुसार प्रकृति ने सेक्स की प्रवृति सभी प्राणियों में संतान उत्पन्न करने और अपने वंश की वृद्धि करने के उद्देश्य से दी हैं, लेकिन कभी कामवासना को सही नहीं ठहराया. इसके अनुसार काम का उपभोग जब आवश्यकता पूर्ति से ज्यादा होने लगे तो यह हर मनुष्य के लिए वर्जित हैं.

2.   बौद्ध धर्म-

गौतम बुद्ध द्वारा शुरू किये गए इस धर्म में तो कामवासना को जीवन और खुशियों की राह का सबसे बड़ा बाधक बताया गया हैं. इन बातों के अलावा सेक्स से जुड़े स्वाभाव को बौद्ध धर्म की ग्रंथों में “सबसे बड़े अपराध” की संज्ञा दी गयी हैं.

3.   ईसाई धर्म-

कैथलिक धर्म में कामवासना को लेकर बाकि धर्मो की तुलना में थोड़ी उदारता बरती गयी हैं. इस धर्म में काम वासना को गलत नहीं बताया गया हैं, लेकिन यह ज़रूर कहा गया हैं कि मनुष्य की ज़िन्दगी में सेक्स विवाह के बाद हो तो उचित हैं और इसमें भी यह ध्यान में रखना होगा कि सेक्स के चलते विवाह नियम में किसी भी तरह छेड़खानी न की जाये.

4.   इस्लाम धर्म-

मुस्लिम धर्म भी कामवासना के विषय में ईसाई धर्म से मिलती-जुलती सोच रखता हैं. इस्लाम धर्म से जुड़े लोगों के लिए सेक्स निकाह के बाद ही जायज़ कहा गया हैं, साथ ही ब्रह्मचर्य जैसी किसी भी विचारधारा का बिलकुल समर्थन नहीं किया गया हैं. इस धर्म में यह बात भी कही गयी हैं कि अगर कोई मर्द समृद्ध हैं तो वह अपने वंश वृद्धि के लिए एक से अधिक निकाह कर सकता हैं.

5.   सिख धर्म-

सिख धर्म में काम को पूरी तरह से गलत बताया गया हैं. कामवासना को इस धर्म में पांच प्रमुख अपराध क्रोध, लालच, अहम्, लगाव और काम की श्रेणी में रखा गया हैं. इस धर्म के अनुसार कामवासना बलात्कार जैसे अपराधों को बढ़ावा देती हैं.

दुनिया में फैले तमाम धर्म में काम को लेकर अपनी अलग अलग परिभाषा दी गयी हैं लेकिन किसी भी धर्म में अति से अधिक काम को गलत ही कहा हैं.

Sagar Shri Gupta

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