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क्या कहता है पुराण प्रलय के बारे में?

प्रलय

प्रथ्वी के आदिकाल में कुछ भी नहीं था. ना तो आकाश था, ना नक्षत्र, न वायु.

उस समय अगर कुछ था तो वो एक था जो बिना वायु की अपनी शक्ति से सांस ले रहा था. उसके सिवा कुछ भी नहीं था इस सृष्टि में.

प्रलय का अर्थ

प्रलय का अर्थ है विनाश.

इस पूरी सृष्टि का अपने मूल प्रकृति में लीन हो जाना. सारी सृष्टि का ब्रम्ह में लीन हो जाना हीं प्रलय है. इस पूरे ब्रह्मांड को प्रकृति कहा जाता है और इसे ही शक्ति भी कहते हैं.

इस बात को कोई नहीं झुटला सकता है कि जिसने इस सृष्टि में जन्म लिया है उसकी मृत्यु अवश्य होनी है. जिस तरह पित्र और देवताओं, पेड़-पौधे, मनुष्य, प्राणी सभी की आयु नियुक्त है. ठीक उसी प्रकार इस पूरे ब्रह्मांड की भी आयु निश्चित है. आयु के इस चक्र कि समझ जिनमें है, वो इस बात को भली – भांति समझते हैं कि आखिर प्रलय है क्या?

पहले जन्म, मृत्यु और फिर से जन्म की एक प्रक्रिया ही है. जन्म सृजन है तो मृत्यु प्रलय.

वैसे तो हर वक्त प्रलय होती रहती है. लेकिन महाप्रलय जब होता है तो सारी सृष्टि एकत्रित हो भस्मीभूत हो जाता है. इसके बाद प्रकृति सूक्ष्मातिसूक्ष्म अनुरूप में परिवर्तित हो जाती है और सिर्फ ईश्वर ही है जो यहां विद्यमान रहते हैं.

जब प्रलय होगी तो माहौल कैसा होगा

श्री मदभागवत के द्वादश स्कंध के अनुसार ज्यों-ज्यों घोर कलियुग का आगमन होता जाएगा, त्यों – त्यों उत्तरोत्तर धर्म, क्षमा, पवित्रता, सत्य, आयु, दया, बल और स्मरण शक्ति का लोप होता चला जाएगा. लोगों की आयु में भी लगातार कमी आती चली जाएगी.

जब कलयुग के अंत में कल्कि अवतार होगा, उस समय मनुष्य की आयु सिर्फ 20 – 30 वर्ष की होगी.

सभी प्राणियों की लंबाई छोटी होती चली जाएगी. बरसात नहीं हुआ करेगी. विनाशकारी तूफान चलेंगे और विनाशकारी भूकंप भी होते रहेंगे. मनुष्य मकानों में नहीं बल्कि गड्ढ़े खोद कर रहा करेंगे. धरती का लगभग साढ़े 4 फुट अंश नीचे तक नष्ट हो जाएगा. मनुष्यों का स्वभाव गधे जैसा हो जाएगा. ऐसी बुरी परिस्थिति में धर्म की रक्षा के लिए भगवान का अवतार होगा.

सूक्ष्म वेद के अनुसार राजा हरिश्चंद्र जी, जो स्वर्ग में हैं भगवान विष्णु की आज्ञा से कल्कि अवतार धारण करेंगे.

पुराणों के अनुसार ब्रह्मांड का क्रम विकास इस प्रकार हुआ है.

1 – गर्भकाल
करोड़ों वर्ष पहले पूरी धरती जल में समाहित थी. और जल में हीं अलग-अलग वनस्पतियों का जन्म हुआ. और फिर एक कोशिकीय बिंदु के रूप में जीवन की उत्पत्ति हुई. ये जीव ना तो मादा थे ना नर.

2 – शैशव काल
संपूर्ण पृथ्वी जब जल में डूबी हुई थी, तब केवल वायु युक्त और मुख वाले जीवों की उत्पत्ति हुई.

3 – कुमार काल
कुमार काल में नेत्र, श्रवण इंद्रियों, कीट भक्षी, हस्तपाद युक्त जीवन की उत्पत्ति हुई. इसमें मानव के रुप में वानर, वामन और मानव भी थे.

4 – किशोर काल
किशोर काल में आखेटक, भ्रमणशील, गुहावासी, वन्य संपदा भक्षी, जिज्ञासु अल्पबुद्धि प्राणियों की उत्पत्ति हुई.

5 – युवा काल
युवा काल में गोपालन, कृषि, प्रशासन और समाज के संगठन की प्रक्रिया हजारों वर्षों तक चली.

6 – प्रौढ़ काल
वर्तमान समय में प्रौढ़ावस्था चल रहा है. प्रौढ़ावस्था का यह काल विक्रम संवत के अनुसार 2042 पूर्व शुरू हुआ माना गया है. इस काल में विलासी, चरित्रहीन, लोलुप और यंत्राधीन प्राणी सृष्टि का विनाश करने में मग्न है.

7 – वृद्ध काल
सृष्टि के वृद्ध काल में आगे तक त्रस्त, साधन भ्रष्ट और दुखी जीव रहा करेंगे.

8 – जीर्ण काल
इस काल में वायु, जल, अग्नि और मेघ इन सब का अभाव छीन होगा. और धरती पर जीवन की विनाश लीला होगी.

9 – उपराम काल
उसके बाद आगे तक चंद्र, सूर्य, अनियमित ऋतु, मेघ सब के सब विलुप्त हो जाएंगे. पूरी धरती ज्वालामुखी में बदल जाएगी. अकाल, प्रकृति प्रकोप के बाद ब्रह्मांड में आत्यंतिक प्रलय होगा.

इस तरह संपूर्ण सृष्टि की आयु निहित्त है और पुराण के अनुसार जब सृष्टि का अंत होगा, तो प्रलय होना निश्चित है. जिसके बाद पूरे ब्रह्मांड का विलय हो जाएगा और फिर से दूसरी सृष्टि का जन्म होगा.

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