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कौन था महाभारत का सबसे शक्तिशाली योद्धा ! पांडव और कृष्ण भी नहीं दे सकते थे इसको टक्कर!

विदुर

महाभारत में एक से एक बलशाली और शक्तिशाली योद्धा थे.

कुछ लोग धर्म के साथ खड़े हुए थे तो कुछ अधर्म की तरफ से मात्र अपने फर्ज को निभा रहे थे.

लेकिन महाभारत की कहानी ने जिस एक व्यक्ति के साथ न्याय नहीं किया है वह हम सबके प्रिय विदुर हैं.

भाषा और ज्ञान के आधार पर तो हम इनको दूसरा कृष्ण बोल सकते हैं. ऐसा बोला जाता है कि वे धर्मराज का ही रूप थे.

महाभारत का सबसे शक्तिशाली योद्धा

अगर पूरे महाभारत में सबसे शक्तिशाली योद्धा कोई था तो वह विदुर ही थे.

वे अगर चाहते तो अपने चमत्कारी धनुष से एक तरफ की पूरी सेना को पल भर में खत्म कर सकते थे. यह चमत्कारी धनुष खुद कृष्ण ने उनको दिया था. लेकिन उनको भली-भांति पता था कि अगर मुझको लड़ना भी पड़ा तो कौरवों की तरफ से लड़ना होगा. तभी शायद उन्होंने युद्ध लड़ने से इंकार कर दिया था.

आज हम आपको एक शक्तिशाली योद्धा के जन्म से लेकर और युद्ध न लड़ने तक की कहानी बताने वाले हैं.

तो आइये पढ़ते हैं कि कौन थे विदुर और क्यों इन्होंने युद्ध में शामिल होने से कर दिया था इंकार-

जन्म की कहानी:-

ऋषि मंदव्य को एक राजा ने चोरी के आरोप में सूली पर चढ़ा दिया था. लेकिन कई दिनों तक सूली पर लटकने के बाद भी ऋषि मंदव्य की मृत्यु नहीं हुई. इस पर राजा हैरान हो गया. उसने अपने निर्णय पर फिर विचार किया. तब राजा को ज्ञात हुआ कि उसने गलत इंसान को सूली की सजा दी है. राजा ऋषि से माफ़ी मांगता है और तब ऋषि की मृत्यु हो जाती है.

जब ऋषि मंदव्य यमलोक पहुँचते हैं तो वह यमलोक से पूछते हैं कि उनको इतनी भयानक सजा क्यों दी गयी है? तब यमराज ने बताया कि जब वह 12 साल के थे तो उन्होंने एक पतंगें को सुई से मारा था. यह सुन ऋषि को गुस्सा आता है और वह कहते हैं कि तब वह बालक थे और ज्ञान का अभाव था. यह सजा न्याय नहीं है और उन्होंने यमराज को श्राप दिया था कि उनको पृथ्वी पर अछूत के घर जन्म लेना होगा. इसके कारण विदुर का जन्म एक दासी के पेट से हुआ था.

विदुर को कृष्ण से कम आंकने की गलती किसी ने भी नहीं की है. जब वे अपनी बात रखते थे तो सभी बड़े ध्यान से उनकी बात सुनते भी थे. दुर्योधन को लेकर तो उन्हों ने कई बार अपनी बात बिना डरे रखी थी.

जब दुर्योधन ने किया था विदुर का अपमान

दुर्योधन को जब विदुर युद्ध ना करने की सलाह दे रहे थे तो इस बात ये वह काफी खफा हो गया था. बात ही बात में वह विदुर को कौआ और गीदड़ बोल देता है. विदुर इस बात से नाराज होकर अपना चमत्कारी धनुष तोड़ देते हैं और प्रण लेते हैं कि वह युद्ध नहीं करेंगे. इसके साथ विदुर, अंधे पिता को यह भी ज्ञान दे देते हैं कि दुर्योधन आपके कुल को खत्म करने के लिए पैदा हुआ है. अच्छा रहेगा कि आप सभी दुर्योधन का परित्याग कर दें.

किन्तु तब उनकी बात किसी ने नहीं मानी थी.

विदुर को पांडव हमेशा प्रिय लगते थे. इसलिए असंभव था कि महात्मा विदुर पांडवों के खिलाफ युद्ध लड़ते. किन्तु यह बात सत्य है कि अगर विदुर लड़ते तो युद्ध के मैदान में इनसे शक्तिशाली योद्धा कोई हो नहीं सकता था.