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भैरवनाथ के दर्शन के बिना क्यों अधूरी मानी जाती है वैष्णो देवी की यात्रा!

भैरवनाथ के दर्शन

भैरवनाथ के दर्शन – जम्मू जिले के कटरा में स्थित वैष्णो देवी मंदिर हिंदूओं के प्रमुख मंदिरों में से एक है.

यह मंदिर 5,200 फीट की ऊंचाई पर बसा है. इस मंदिर के बारे में कहा जाता है जब माता रानी बुलाती है, तभी कोई वहां जा सकता है और सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद माता रानी पूरी करती हैं.

वैष्णों देवी की खास बात ये है कि कटरा ने करीब 12 किलोमीटर की चढ़ाई का रास्ता बहुत ही सुंदर है.

माता रानी का त्रिकूट पर्वत पर गुफा में हैं. वैष्णों देवी मंदिर के तीन पड़ाव है पहला है अर्धकुमारी गुफा, दूसरा माता रानी का भवन और तीसरा भैरवनाथ मंदिर. जी हां, भैरवनाथ के दर्शन के बिना वैष्णों देवी की यात्रा पूरी नहीं होती.

भैरवनाथ के दर्शन

भैरवनाथ के दर्शन – 

क्या है मान्यता?

माता वैष्णो देवी को लेकर कई कथाएँ प्रचलित हैं. एक पुरानी मान्यता के अनुसार माता वैष्णो के एक भक्त श्रीधर ने अपने गांव में माता का भण्डारा रखा और सभी गांववालों व साधु-संतों को भंडारे में आने का न्योता दिया. पहली बार तो गांववालों को विश्वास ही नहीं हुआ कि गरीब ब्राह्मण श्रीधर भंडारा कर रहा है. श्रीधर ने भैरवनाथ को भी उनके शिष्यों के साथ आमंत्रित किया गया था. भंडारे में भैरवनाथ ने खीर-पूरी की जगह मांस-शराब का सेवन करने की बात की तब श्रीधर ने मना कर दिया.

अपने भक्त श्रीधर की लाज रखने के लिए मां वैष्णो देवी कन्या का रूप धारण करके भंडारे में आई. मांस और शराब की मांग पर अड़े भैरवनाथ को कन्या के वेश में आई माता वैष्णो देवी ने समझाने की कोशिश की किंतु भैरवनाथ ने उनकी एक ना मानी. जब भैरवनाथ ने कन्या को पकड़ना चाहा, तब वह कन्या वहां से त्रिकूट पर्वत की ओर भागी और उस कन्या रूपी वैष्णो देवी ने हनुमान जी को बुलाकर कहा कि भैरवनाथ के साथ खेलों मैं इस गुफा में नौ माह तक तपस्या करूंगी.

इस गुफा के बाहर माता की रक्षा के लिए हनुमानजी ने भैरवनाथ के साथ नौ माह खेला.

आज इस पवित्र गुफा को ‘अर्धक्वाँरी’ के नाम से जाना जाता है. अर्धक्वाँरी के पास ही माता की चरण पादुका भी है. यह वह स्थान है, जहां माता ने भागते-भागते मुड़कर भैरवनाथ को देखा था. कहते हैं उस वक्त हनुमानजी माता रानी की रक्षा के लिए मां वैष्णो देवी के साथ ही थे.

भैरवनाथ का वध

त्रिकुट पर्वत पर वैष्णो देवी ने भैरवनाथ का वध किया, भैरवनाथ का वध करने पर उसका सिर माता के भवन से 3 किमी दूर जिस स्थान पर गिरा था, आज उस स्थान को ‘भैरोनाथ के मंदिर’ के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि अपने वध के बाद भैरवनाथ को अपनी भूल का पश्चाताप हुआ और उसने माता रानी से माफी मांगी. माता रानी ने भैरनाथ को अपने से ऊंचा स्थान दिया कहा कि जो भक्त मेरे दर्शन के बाद तुम्हारा दर्शन नहीं करेगा उसकी यात्रा पूरी नहीं होगी.

यही वजह है कि लोग माता वैष्णो देवी के दर्शन के बाद भैरव बाब के दर्शन के लिए ज़रूर जाते हैं.

आप भी अगर वैष्णों देवी की यात्रा का प्लान बना रहे हैं, तो पहले अर्धकुमारी गुफा, फिर माता का भवन और आखिर में भैरवनाथ के दर्शन ज़रूर करें, माता रानी आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी करेगी.