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यंगिस्थान का एकवर्षीय स्वच्छता अभियान – कूड़ेदान के दैनंदिन प्रयोग की आधारभूत आदत

कूड़ेदान का प्रयोग

कूड़ेदान का प्रयोग – सफलता के लिए सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कुंजी हैः अपने निजी स्थान को पहचानना। यह जीवन का मूलभूत सत्य है कि हम अपने स्थान के प्रति जागरूक अवचेतन मनश्चेतना से जीते हैं ।

प्रत्येक व्यक्ति अपने बिस्तर में अधिक आराम से सोता है। यह अलग बात है  कि वही व्यक्ति रेलगाड़ी के डिब्बे की कम चौड़ाई में भी संतुलित होकर सो जाता है ।

हमारा अवचेतन मन एक कुशल संचालक की तरह कार्य करता है।यह प्रश्न है कि आप अपने कार्य स्थल अथवा डैस्क पर कैसा महसूस करते हैं ? आपको सार्वजनिक स्थल या बस अथवा अपनी कार में कैसा महसूस होता है ?

आप कृपया अपने अनुभव को लिखें ।

यह आपको राह दिखलाने वाला तारा बन जायेगा। आप इस राह पर स्वतंत्रतापूर्वक पीछे मुड़कर देख सकते हैं और ज़रूरी सुधार कर सकते हैं ।

आप अपनी इस डायरी को खोलकर देख सकते हैं कि आप अपनी असुविधाजनक स्थिति का विश्लेषण कर सकते हैं । क्या आपकी असुविधा का कारण गन्दगी है ? क्या आपको किसी खास चीज़ की कमी महसूस कर रहे हैं ?

कया आपने कभी अनुपस्थित कूड़ेदान का प्रयोग करने की कोशिश की है ?

कूड़ेदान का प्रयोग – यही स्वच्छ भारत की कुंजी है ।

जितने अधिक लोगों को कूड़ेदान की ढूंढ होगी उतना ही अधिक भारत स्वच्छ होगा।

जी हाँ! हमे ज़रूरत है कि हम कूड़ेदान के प्रयोग की स्वभाविक आदत विकसित करें ।

जितने ज्यादा बच्चे दुकान, मॉल, घर, सड़क, रेलगाड़ी, बस, कार, पार्क, लिफ्ट, सीढ़ी, पहाड़, नदी या झील किनारे, समुद्र तट, अस्पताल या क्लिनिक, होटल या रेस्टोरेंट या चाय की दुकान या डाब्बा या कहीं भी अथवा हर जगह पर कूड़ेदान को खोजेगें उतना ही ज्यादा भारत साफ होगा ।

यह कूड़ेदान का प्रयोग सभ्य जीवन जीने का सलीका सिखाता है ।

छोटे से छोटा कागज़ का टुकड़ा या केले का छिलका हो या मूंगफली के छिलके हों सीधे कूड़ेदान में ही गिरने चाहिए। अन्य कोई विकल्प नहीं है अथवा अपना कूड़ा या बेकार सामान अपने बैग, पर्स या जेब में साथ ले जाएँ।

यह बात निश्चित है कि कोई भी किसी के शौच, फालतू या बेकार सामान या कूड़े के लिए खाली नहीं है । सार्वजनिक स्थान कूड़ादान नहीं है।

हमें हर स्थान पर कूड़ेदान स्थापित करना होगा । हमें प्रत्येक स्थान पर कूड़ेदान की व्यवस्था सुनिश्चित करनी होगी चाहे इस कार्य के लिए चन्दा ही क्यों ना एकत्रित करना पड़े। यह कूड़ेदान इस प्रकार केन्द्रीय बिंदुओं पर रक्खे जाने चाहिए ताकि सब लोगों के लिए कूड़ेदान तक पहुंचना सुलभ हो। इन कूड़ेदानों की आकर्षक रंग से पहचान हो सके और कूड़ेदान के प्रयोग के लिए खुला आमंत्रण संदेश हो ।

कूड़ेदान की ऊंचाई बच्चों और दिव्यागों के लिए भी पंहुच में रहनी चाहिए ।

इस दिशा में पंचायत और नगरपालिका सक्रिय भूमिका का निर्वहन कर सकते हैं ।

यह निकाय इस कार्य विशेष के लिए अनुदान ले सकते हैं या शुल्क इकट्ठा कर सकते हैं। गन्दगी फैलाने वालों से दण्डात्मक शुल्क लिया जा सकता है। हम आदर्श स्वच्छ परिसर विकसित करना चाहते हैं । यह तभी संभव होगा जब प्रत्येक को कूड़ेदान प्रयोग करने की आदत हो वरना गन्दगी तो अनन्त है । गन्दगी ना फैलाना ही एकमात्र उपचार है ।

आओ हम मिलजुल कर प्रत्येक सड़क पर कूड़ेदान की व्यवस्था करें । यह कूड़ेदान पच्चीस मीटर से अधिक की दूरी पर ना हों।

सभ्यताएँ कई शताब्दी तक जिन्दा रहतीं हैं । हम दावा करते हैं कि हमारी सभ्यता अति प्राचीन है । भारतीय सभ्यता सिंचाई के लिए नहरों और गन्दगी निकासी के लिए नालियों के सुनिर्माण हेतु जाना जाता है ।अब निश्चित रूप से हमारी सभ्यता को कूड़ेदान का प्रयोग की समुचित व्यवस्था के लिए भी जाना जाए तो हमें स्वच्छ भारत अभियान  पर गर्व होगा ।