ENG | HINDI

पति जाते हैं बैंगकॉक “उस तरह” के मनोरंजन के लिए! पत्नियां कहाँ जाएँ?

bankok-fun

सबसे पहले: जो पति या मर्द यह समझते हैं कि पत्नियां उनकी पाँव की जूती हैं और उनका जन्म अपने पति की सेवा के लिए हुआ है, अगर उन्हें यह कहानी पढ़ के ठेस पहुंचे या उनकी भावनाओं का अपमान हो तो भैया हम कुछ नहीं कर सकते!

महान बाबा श्री यो यो हनी सिंह की भाषा में कहें तो, “जाके अपनी भैंस चराओ!”

और बाकी खुले दिमाग़ के और औरतों को बराबर समझने वाले मर्द इधर आओ, हम बातें करेंगे!

अब यह तो सभी जानते हैं कि मर्द बैंगकॉक क्यों जाते हैं? वह शहर दुनिया के कुछ चुनिंदा ऐसे शहरों में आता है जहाँ वेश्यावृति खुल के होती है और भारतीय मर्द ख़ास तौर पर बैंगकॉक सिर्फ इसी लिए जाते हैं!

क्यों भाई, अपनी पत्नी से खुश नहीं हैं या लालच की दूकान खोल के बैठे हैं कि पत्नी के साथ धोखा करना ही है? चलो मान लिया कि आपकी हवस की भूख पत्नी के साथ नहीं मिटती, तो इस बात की क्या गारंटी है कि आपकी पत्नी को आपके साथ पूरा आनंद मिलता है? क्या वो आपके साथ खुश है या आपको इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता? देखिये हुज़ूर, साइंस ने यह सिद्ध कर दिया है कि सेक्स की ज़रुरत जितनी एक आदमी को होती है, उतनी ही एक औरत को भी| तो फिर अगर आपको हक़ है बैंगकॉक में जाकर मज़े उड़ाने का, तो आपकी पत्नी को भी पूरा-पूरा हक़ है!

अगर आप नहीं जानते तो बता दें कि आजकल पुरुष वेश्यावृति भी खूब उछाल मार रही है और जितनी आसानी से एक स्त्री-वेश्या का इंतज़ाम हो सकता है, उतनी ही आसानी से पुरुष-वेश्या भी मिल जाती है! इसका सीधा-सीधा अर्थ यह है कि औरतें अब किसी भी काम में मर्दों से पीछे नहीं हैं और उन्हें होना भी नहीं चाहिए! अगर पति ऐसे उलटे काम कर के छाती चौड़ी कर के जी सकता है तो पत्नियों को भी बराबर का हक़ है!

ख़ास बात यह है कि जिनके पास इतना पैसा है कि वो विदेश जाके पुरुष-वेश्यावृति का आनंद उठा सकें, उनके लिए अब भारत में भी इस तरह के कई विकल्प खुल गए हैं| ज़ाहिर है जो विदेश नहीं जा सकतीं, उनके लिए तो आसान हो गया ना?

क्यों, सुन के ज़मीन सरक गयी ना पैरों तले?

अब जाना है बैंगकॉक? कैसे ख्याल आ रहे हैं? क्या लग रहा है कि अब बीवी से धोखा हो पायेगा?

शांत रहो, ऐसा नहीं है कि सभी औरतें मर्दों जैसी होती हैं और पति के घर से निकलते ही अपनी वासना की प्यास बुझाने चल पड़ती हैं| सच कहें तो अभी भी हमारे देश की ज़्यादातर महिलाएँ चुपचाप अपने पति का अन्याय सहती हैं, उसकी रंगरलियों पर पर्दा डालती हैं और ऐसा कुछ नहीं करतीं जिस से कि परिवार की मान-मर्यादा पर कोई कीचड़ उछले| यह सारे काम सिर्फ मर्द ही करते आये हैं और दोष मढ़ा जाता है औरतों पर! लेकिन अगर

हालात जल्दी नहीं बदले तो औरतें वो सब करने पर मजबूर हो जाएँगी जिनके सिर्फ इलज़ाम अभी तक सर पर लिए घूमती थीं!

तो दोस्तों, अभी भी वक़्त है, सुधर जाओ!

पत्नी की तरफ वफादारी निभाओ और बैंगकॉक के सपने देखना छोड़ दो!

वरना पत्नी ने अगर घर-मोहल्ले में बैंगकॉक खोल दिया ना, फिर मत कहना कि पहले से किसी ने चेतावनी नहीं दी!