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पाकिस्तान ने कहा और एक दिन सारे हिन्दू ख़त्म हो जायेंगे

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देश चाहे कोई भी उसमे रहने वाले अल्पसंख्यक समुदाय की स्थिति हमेशा से दयनीय ही रही हैं.

अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को कभी भी पहले दर्जे का नागरिक नहीं समझा जाता हैं. बात चाहे भारत में रहने वाले अल्पसंख्यक समुदाय की हो या पाकिस्तान में रह रहे अल्पसंख्न्य्क समुदाय की, इनकी बातें, इनकी तकलीफें, इनकी ज़रूरतें उस देश की सरकार के लिए दोयम दर्जे की ही रहती हैं. भारत देश के उदार रवैयें और मीडिया के सशख्त होने के चलते यहाँ का अल्पसंख्यक समुदाय अपनी बात तो पुरे देश और दुनिया से कह पाता हैं, लेकिन पाकिस्तान के अल्पसंख्यक समुदाय अपनी बात दुनिया तो दूर वहां के प्रशासन तक भी बमुश्किल ही पहुच पाता हैं.

जिस तरह भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यको में सबसे अधिक हैं उसी तरह पाकिस्तान में भी हिन्दू अल्पसंख्यक समुदाय में सबसे आगे हैं. लेकिन भारत में रहने मुसलमानों को जिस तरह से यहाँ हर तरह की सुविधाएं प्राप्त हैं, आज़ादी मिली हुई हैं पाकिस्तान में ऐसा न के बराबर हैं.

मानवाधिकार संगठनों की एक ख़बर के मुताबिक हैं पिछले 50 वर्षों में तकरीबन 90% हिन्दू पाकिस्तान छोड़ चुके हैं और उनके धार्मिकस्थल, मंदिर आदि भी तेज़ी गायब हो रहे हैं. इस तरह की बात उठने की वजह अभी हाल ही में हुई एक घटना हैं, जिसे पाकिस्थान में रहने वाले सभी हिन्दू बुरी तरह आहात हैं.

दरअसल मामला लगभग 17 साल पहले पाकिस्तान के सुप्रीमकोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसलें से जुड़ा हैं. पाकिस्तान के ‘खैबर पख्तुनक्वा’ जिले के टेरी नामक गाँव में “कृष्ण द्वार” नाम की एक मंदिर हुआ करती थी, जिसके साथ में हिन्दुओं के नेता परम हंसजी महाराज की एक समाधि भी थी. 1929 में उनकी मृत्यु के बाद इस समाधि को उनके मानने वालों ने बनवाया था. 1998 में कुछ हिन्दू जब उस समाधि के दर्शन करने वहां पहुचे तो उन्हें मालूम हुआ कि, इस समाधि को तोड़ने की कोशिश की गयी हैं और उसके आस-पास की जगह एक पक्का मकान मिला जिसमे लोग रह रहे थे.

उस मकान में रहने वाले मुफ़्ती इफ्त्खारुदीन ने कहा कि पाकिस्तान सरकार की 1961 की एक योजना जो 1975 में लागु हुई के तहत हमें यह मकान मिला हैं. सरकार के उस वक़्त के इस फैसले में यह बात कही गयी थी कि ग्रामीण इलाके में खाली पड़ी ज़मीन, जिनकी कीमत 10000 से कम हैं वह लोगों को मुफ्त में दे दी जाएगी.

इस घटना के बाद पाकिस्तान में हिन्दुओं के लिए काम करने वाली संस्था ‘पाकिस्तान हिन्दू परिषद्’ ने इस मामले को कोर्ट में उठाया. क्योकि इस समाधि में कई हिन्दू भक्त परम हंस महराज को पूजने आते थे. सुप्रीमकोर्ट ने पूरी मामले की जांच कर अप्रैल 2015 में खैबर पख्तुन्क्वा की प्रांतीय सरकार को फैसला दिया कि समाधि में होने वाली तोड़-फोड़ रोके और हिन्दुओं को उनका स्थान वापस लौटाएं.

कोर्ट के इस आदेश के बाद भी प्रशासन की तरफ से अभी तक कोई खास कार्यवाही नहीं हुई हैं.

पाकिस्तान की एक शोधकर्ता रीमा अब्बासी हिन्दुओं की हालत पर बात करते हुए कहती हैं कि यहाँ हिन्दुओं की कंडीशन इतनी ख़राब हैं कि कई जगह तो उन्हें अपना नाम बदल कर रहना पड़ता हैं. सियासत की अनदेखी इस मामले के लिये ज़िम्मेदार हैं. जब पाकिस्तान और बांग्लादेश अलग हुए थे तब उस वक़्त पकिस्थानी आबादी में 15% हिन्दू थे जो 1998 में हुई गणना में मात्र 1.6% रह गए हैं. साथ ही आतंकवाद के कारण भी यहाँ रहने वाले हिन्दुओं में असुरक्षा की भावना  इतनी भीतर तक घुस गयी हैं कि उनका यहाँ से पलायन कर देना ही एक मात्र रास्ता बच जाता हैं.

पाकिस्तान में रहने वाले एक पंडित जयराम कहते हैं कि 1971 के बाद इस देश में हिन्दुओं की हालत बद्दतर हो गयी हैं. न तो यहाँ हिंदी पढ़ाई जाती हैं न ही संस्कृत. इस तरह के कई विधेयक यहाँ संसद में पास करने की कोशिश की गयी लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. हिन्दुओं की इस दयनीय हालत को देख कर जयराम कहते हैं कि इस तरह से चलता रहा तो “एक दिन ऐसा आएगा कि यहाँ एक भी हिन्दू नहीं बचेगा”

बीबीसी द्वारा कवर की गयी यह ख़बर विश्व मिडिया के मुह पर एक ज़ोरदार तमाचा हैं जो भारत के अल्पसंख्यक मुसलमानों की छोटी सी भी ख़बर पूरी ज़िम्मेदारी से दुनिया में दिखाती हैं, खैबर पख्तुन्क्वा के इलाक़े की रहने वाली “मलाला” को तो बहुत फुटेज दी हैं, लेकिन इसी इलाके के अल्पसंख्यक समुदाय के लिए उनके दिल में ज़रा भी रहम नहीं दिखाती.